"बातों-बातों में ज़िन्दगी: एक दोपहर की दोस्ताना तकरार" || It is not in everyone's power to maintain patience while living in the family... ||

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उदासी से हास्य तक की यात्रा

    जितनी उदासी लिखनी आसान है, हास्य उतना ही कठिन..! ज्यादातर मैं लोगो से हुए संपर्क और संवाद को कल्पना का परिधान पहनाकर नए ही स्वरुप में लिख देता हूँ। पर कभी कभी कुछ संवाद इतने असमंजस में लाकर खड़े कर देते है, की उसे कौनसी कल्पना में ढाला जाए बहोत ही विचार-विमर्श मांग लेता है..! अभी कुछ दिनों से मैं एक विरही पुरुष की भूमिका में था, Overthinking इतनी हद तक जा चुकी थी की, दिनभर मैं भी उदास सा रहने लगा था...! जिन लोगो को मैं अपना लेखन भेजा करता था उसमे से कुछने सराहा, कुछ ने दिलासा भी दिया..! किसीने सच भी मान लिया, मैं एक टूटा हुआ आशिक हूँ..!



ऑफिस ब्रेक में बातचीत की चुस्कियाँ

    दोपहर थी, ऑफिसमें लंच ब्रेक था, काम कुछ था नही, इंस्टाग्राम में रिल्स देख रहा था, उतने में एक पुराने yq वाले महिला मित्र का मैसेज आया।


    "कैसे लिख लेते हो इतना लंबा.."


    अपन वेल्ले ही थे, त्वरित रिप्लाय दिया,


    "जो मन मे आया वो लिख देने का, अगर सोचकर लिखोगे की लोग क्या सोचेंगे तो नही लिख पाओगे।😎"


    "अरे मतलब इतना टाइप करने से थकते नही"


    "हाँजी, रात को दोनों अंगूठे पर गिला कपड़ा लपेट कर सोता हु तो सवेरे तक ठीक हो जाते है।"


    "जब देखो उल्टे जवाब ही देते हो तुम तो..🤨"


    "और क्या कहूँ, अब इसका क्या प्रत्युत्तर दूँ की टाइपिंग करने से थकते नही.."


    "हाँ तो जो सवाल आया मन में तो पूछ लिया, घमंडी हो तुम।🙄"


    "अरे नही नही घमंडी नही, अभिमानी हु मैं, और हाँ, पूरा दिन कम्यूटर के कीबोर्ड पर उंगलीयाँ पटकता रहता हूं तो इतना टाइप करने से कोई दुबला नही पड़ जाऊंगा मैं😏"


    "अच्छा, तो यही बात सीधे सीधे नही बता सकते थे?"


    "क्या करूँ शादीशुदा हूँ ना, बहेश करने की आदत सी हो गई है।🙃"


    "अच्छा, जैसे हमको इस चीज का अनुभव ही न हो..!!"


    "यह भी ठीक है, तो और बताओ, कैसे चल रहा आपका संसार?🙂"


    "कुछ नही, बच्चे ट्यूशन गए है, महाशय जी ऑफिस, और मैं और मेरी tv सीरियल्स.."


    "हाँ स्त्रीओ को सीरियल्स न मिले तो तो उनको पानी गले से न उतरे..😅"


    "नारीवाद पर मुझसे बहश करने की कोशिश भी मत करना, स्त्री ही शक्ति है।"


    "हाँ और पुरुष तो सहनशक्ति की पराकाष्ठा है न?😝"


    "🤣"


    "सच मे, पुरुष दुनिया जीत सकता है, पर कभी भी एक स्त्री को/से नही जीत सकता।"


    "मान गए न?😎"


    "अरे इसके पीछे की वजह तो जानो.."


    "बताओ"


    "स्त्री के पास दो महाशक्ति है।"


    "कौनसी?🤔"


    "एक तो वो रो सकती है.."


    "अच्छा, और दूसरी..?😋"


    "वो जब चाहे तब रो सकती है।🤣"


    "ओ.. रुको रुको ऐसा नही हाँ!😡"


    "हाँ, लेकिन पुरुष का उल्टा है, वो रो नही सकता लेकिन जब बहुत ज्यादा हसने की कोशिशें करे तो समझ जाइये.. ज्वालामुखी"


    "हाँ ठीक है, नारीवाद है, वैसा ही पुरुषवाद भी होना चाहिए.."


    "फिर भी देखो, कुछ भी हो बाहर नाम पुरुष का ही आता है, छोटे से लेकर बड़ा क्राइम हो, चाहे उसने प्रेम किया हो, धोखा खाया हो, या धोखा दिया भी हो, या फिर एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर्स किया हो.. या न भी किया हो.. नाम उसीका आएगा..!"


    "सच बताना तुम तो इतना लिखते हो, तुम्हारी कितनी गर्लफ्रेंड्स है.."


    "बहोत सारी होते होते रह गई.."


    "वो कैसे?"


    "भाग्यने..😓"


    "मतलब?🤔"


    "उसने नजरे तो मिलानी चाही, लेकिन उस दिन मैं चश्मा भूल गया था, तो पता ही नही चल पाया कि मुझे देख रही है या घूर रही है..😂"


    "क्या तुम भी.. मैं ही मिली थी।"


    "हाँ आप मीले हो, आप बन जाओ.."


    "हमसे न हो पाएगा..😌"


    "क्यो?🥺"


    "बस ऐसे ही👹"


    "ये कोई एक्सक्यूज़ न हुआ🧐"


    "कहाँ फंस गई..🥴"


    "मतलब आपकी हाँ है?🥳"


    "ऐसा मेने कब कहा?😠"


    "आपने कहा ना, फंस गई, वो लवरिये एकदूजे को फंसाते ही है न.."


    "तुम तो पीछे ही पड़ गए..🙉"


    "क्या करूँ, पत्नीपीडित हूँ ना.."


    "कहाँ गया तुम्हारा पुरुषवाद, अभी तो तुम डींगें हांक रहे थे एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर्स की, और वो सेटिंग-वेटिंग.."


    "हाँ ये अच्छा है, सेटिंग न करो तो कम से कम वेटिंगलिस्ट में ही मुझे रख दो..!🤩"


    "भूखा भेड़िया सुना था आज देख भी लिया🐺"


    "अरे अरे, इतनी बड़ी उपाधि के लायक मैं हूँ नही अभी.. अभी तो मैं इस कथित प्रेम के गलियारे के प्रथम चरणमें हूँ..😌"


    "तुम जाना ही मत उस गली.. मैं ही पागल थी जो तुमसे यह विषय छेड दिया।😫"


    "देखो, अब छेड के छोड़ दोगे तो नही चलेगा, मैं लबाड़-लेखक हूँ, पीछा नही छोडूंगा..🤪"


    "अच्छा जी, धाक-धमकी पर उतर आए तुम तो? ब्लॉक मारूँगी तुम्हे😡"


    "थोड़ा धीरे से मारना, चश्मा नया है..🤓"


    "आदमी हो कि अष्टम-पष्टम?👿"


    "अष्टम-पष्टम के बारे में नही जानता, इस लिए आदमी ही हु!👨"


    "देखो अब बस हुआ.."


    "ठीक है, ठीक है, सेटिंग न करनी न सही.. गुस्सा क्यों होना?😄"


    ये वाला मेसेज उन तक पहुंचा नही, प्रोफ़ाइल फ़ोटो भी दिखनी बंद हो गई.. उन्होंने सच मे ब्लॉक कर दिया था। पुराने मित्र है, मजाक में कोई सीमा नही रखते हम, इस लिए परवाह न थी। दोपहर तीन से रात्रि के आठ ऑफिसवर्क निपटा के घर पहुंचा, भोजन इत्यादि से निवृत होकर, दस सवा दस बजे छत पर जा चढ़ा, हाँ, गर्मियां आ रही है। अष्टमी का अर्धचंद्र आकाश में विराजमान था, तारामंडल उस चंद्रिका के प्रभाव में आकर कम टिमटिमाते दिख रहे थे। उतने में ही फोन की नोटिफिकेशन वाली घंटी बजी, इंस्टाग्राम मेसेज.. उनका ही..!!


    "खाना-वाना खा लिया या भूखे हो भेड़िये जी..?🐺"


    "मैं नही बात करता आपसे जाओ..!😶"


    "हाये मेला बच्चा, तुम तो लड़कियों की तरह रूठ गए..!🤗"


    "ओ स्त्रीलिंग के भेष में छिपे पुल्लिंग! मुझसे जुबान संभालकर बात किया करो, ठीक है!"


    "वरना कर क्या लोगे तू"


    "तू-तड़ाक मत करना मुझसे।😡"


    "अरे वो तो अधूरा मेसेज सेंड हो गया था.."


    "ध्यान रखो, छोटी बच्ची हो क्या?🤪"


    "ठीक है! ज्यादा हुशियार मत बनो..!"


    "कहीं तो होशियार बोना होगा ना.."


    "Hmmm"


    "और बताओ, का हाल बा?"


    "क्या बताऊँ, घर की ढेरों टेंशन है, बच्चे ठीक से पढ़ाई कर ले तो भी बहोत है, ऊपर से हबीजी की जॉब गई.."


    "ओह.. तो अब"


    "कुछ नही, चलता है, मैनेज हो जाता है, मेरी कुछ पेंटिंग्स थी, और कुछ हैंडीक्राफ्ट्स के ऑर्डर्स मिल जाते है..!"


    "फिर भी, घर चल जाता है..?"


    "अरे अच्छे से, टेंशन की बात नही है..तुम बताओ तुम्हारा क्या चल रहा?"


    "अपना क्या है, सुबह को ऑफिस शाम को घर.. फिर दूसरे दिन सेम चीज रिपीट.."


    "कितने बोरिंग हो तुम.."


    "तो आपको कौनसा मेरा गर्लफ्रेंड बनना है जो मैं इंटरेस्टिंग बनु?"


    "देखो अब तुम फिर से शुरू मत हो जाना?"


    "देखो, मजा किया करो, यही जिंदगी है, टेंशन तो रहती ही है, सबको होती है, लेकिन उसे सर पर मत चढ़ने दो..!"


    "ठीक है, अब ज्ञान मत बांटो, मेरे पास भी बहोत है, ऊपर से मैं स्त्री हूँ तुमसे ज्यादा ही होगा थोड़ा.."


    "देखा आ गए नारीवाद पर.."


    "सीधी सी बात है यार, कठिनाई कितनी ही आ जाए, हिम्मत रखनी ही पड़ेगी मुझे, और यह मैं जानती हूं, बच्चे कॉलेज में जाने को है, तो जब तक हबीजी कि जॉब सेट न हो जाए तो उनके हिस्से की मेहनत मैं कर लूं तो कोई फर्क नही पड़ेगा, जब वे सेट हो जाएंगे तो मुझे तो आराम है ही.."


    "हाँ! सही बात है बिल्कुल, मैं जानता भी हूँ और मानता भी हूँ कि स्त्री हंमेशा पूर्ण होती है, हर विषय में.."


    और तभी मुझे याद आयी कुछ दिन पहले ही इंस्टाग्राम पर पढा प्रेमचंद का एक सुवाक्य,


"पहाड़ो की कंदराओं में बैठकर तप कर लेना सहज है,  
किन्तु परिवार में रहकर धीरज बनाए रखना सबके वश की बात नही।"
- प्रेमचंद


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"क्या आपकी भी कोई बातचीत कभी ऐसे ही हँसी में तब्दील हो गई है, जब दिल भारी था?
तो चलिए—उस किस्से को हमसे साझा करिए, या बस इस डायरी को शेयर कर दीजिए…
क्योंकि शायद किसी और की उदासी भी हँसी बन जाए।
और हाँ, अगली बार इंस्टा चैट में ब्लॉक होने से पहले सोचिएगा… 'भेड़िया जी'!" 🐺😄


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1Comments
  1. Bahut he badiya likha hai. Padhkar soch bhi aayi or hassi bhi. Badiya laga 👏👏

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