जब बातें ख़त्म हो जाती हैं, और “hmmm” बचता है — बातचीत, टेक्नोलॉजी और ओवरथिंकिंग पर एक डायरी || a lot of talks, chats.. ||

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जब बातें थमती हैं "hmmm" पर

    एक बात तो माननी पड़ेगी.. आरम्भ है उसका अंत है। कोई भी कैसी भी चर्चा हो, वह अनंत तक कभी नहीं चल सकती, बाधाएं आती है, रूकावट, या फिर विषयांतर हो जाता है। प्रियंवदा ! किसी से बात करते है फिर एक समय ऐसा आता है जैसे लगता है ख़त्म.. आगे कुछ भी नहीं सूझ रहा। जैसे शून्यमनस्कता। जैसे अब कहने के लिए कुछ है नहीं, सामने वाले के साथ भी ऐसा ही होता है। फिर ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है "hmmm" का। 

टेलीफ़ोन की दुनिया: मिस्ड कॉल से वीडियो कॉल तक

    इसका अर्थ है अब तू ही आगे बता, मैं खाली हो चूका हूँ। आज सोचता हूँ हम सब बातूनी तो है ही। बस माहौल चाहिए होता है। एक समय था जब इनकमिंग कॉल्स के लिए भी पैसे लगते थे, फिर धीरे धीरे इनकमिंग फ्री हुआ, और मिस-कॉल की परम्परा का उदय हुआ। लोगो ने लाखो बचाए है बस मिस्स्कॉल मारकर। फिर एक समय आया, टाटा-डोकोमो, यूनिनॉर जैसी कम्पनियो ने लोगो का दर्द समझा, और १ पैसा पर प्रति १ सेकंड का तीर फेंका, सटीक लगा.. लोग हच को बाय बोलकर इन आगंतुकों को अपनाने लगे। 

    १ रूपया प्रति १ मिनिट के सामने १ पैसा प्रति १ सेकंड के हिसाब से १ मिनिट में ४० पैसे बच रहे थे। तब युनिनोर ने और एक बम फोड़ते १ मिनिट का दाम ही सीधा ३० पैसे कर दिया। तब भी मिस-कॉलिये तो आबाद ही थे। फिर लोगो का यूज़ और बढ़ने लगा, लेकिन लवरीये कर्जे में तब भी डूब रहे थे बेचारे। ३० पैसा भी महंगा है, जब घंटो तक बाते करनी होती। तब वोडाफोन ने बातूनी लोगो की कदर करते हुए नाइटकोलिंग फ्री कर दी थी। उन दिनों जिनकी सगाई हुई, या जिन्हे मुहब्बत थी, और दोनों युगल के पास फोन की सुविधा थी, उनके तो हाथ घी में और मुंह कढ़ाई में, महोब्बत की कढ़ाई में। 


जब शब्द खत्म हो जाएँ, तो क्या मौन बोलेगा?

    मैं अक्सर सोचता रहता, यह क्या बात करते होंगे इतनी सारी.. मुझसे तो किसी से, "केम छो" "मजामा" से आगे न बढ़ा गया था। रात्रिभोजन के पश्चात यूँही टहलने निकलता तो लोग अक्सर झाड़ियों में घुसे पाए जाते, फ़ोन पर लगे हुए। कुछ बाते करते करते डेढ़-दो फुट का गढ्ढा खोद देते, कुछ बाते करते करते इतना चल लेते की उन्हें देखकर मेरे पैर दुखने लगते। 

    फिर एक दिन एक लवेरिया के शिकार की बाते छिपकर सुनी.. हॉस्टल की छत पर सीमेंट की टंकी के पास चढ़कर बैठता था। और बाते करते हुए टंकी पर नाख़ून घिसता, कायदे से ड्रिलिंग कर दी थी उसने उस जगह पर। कुछ दिन और चलता उनका तो टंकी लीकेज कर जाती। खेर, उनकी बाते सुनने पर पाया गया कि बेमतलब की बाते है बे। क्या खाया, क्या किया, क्या पहना, कहा गए, क्यों गए, क्या देखा, क्यों देखा, यही सब है, और दिल भरता नहीं उनका। पता नहीं, इनका बस चलता तो शायद फ़ोन पर ही एकदूसरे की आँखों में खो जाते। तब कल्पना थी बाते करते हुए एक दूसरे को देख पाना। 

    लेकिन बड़ी जल्दी सच हुई, विडिओ-कॉल्स तब लैपटॉप में ही होते थे, और जल्दी ही स्मार्टफोन्स आने लगे। फ़ोन में स्मार्टनेस आ गई, लेकिन लोगो में घटी। क्योंकि अब भी बातूनीओ को जैसे तपस्या का फल मिला। अब जब बात करना मुश्किल होता, मेसेजिंग / वॉट्सएप्प, wechat के माध्यम से बाते करते। सोसियल मिडिया भी  लेपटॉप से स्मार्टफोन में आ गया। अनजान लोग जुड़ने लगे। ढेर सारी बाते करने लगे। 

    फिर पसंदानुसार ग्रुप्स बने, लोगो के ग्रुप्स, समान विचारधारा वाले और जल्दी जुड़ने लगे। शायद प्रेम के किटक ने काटा, एक जैसे लोग फिर से ढेर सारी बाते करने लगे। फिर सोसियल मीडया में लोग अपनी पसंद ढूंढने लगे। जो मेरे जैसा सोचता है वे आगे बढ़ते गए और फिर से ढेर सारी बाते करते गए। लोग खुद को वेल्ला तक कहने लगे, और ढेर सारी बाते करने लगे।

सोशल मीडिया: अंतर्मुखी का बहिर्मुखी रूप

    अब अपनी पर आता हूँ। सोसियल मिडिया पर तो मैं बहुत पहले आ चूका था। शुरू से अन्तर्मुखी था, तो रूबरू तो परममित्रो के अलावा थोड़ी लोगो से दूरी बनाता। लेकिन सोसियल मिडिया पर झिझक न होती। फेसबुक पर आगमन हुआ, लोगो को रिक्वेस्ट भेजी गई। ठाकुरसाहब पधारे है। एक तो युवानी का तौर, और साहित्य तथा इतिहास का रसिकमन सोसियल मिडिया पर खूब खुला..! 

    जितना वास्तव में अंतर्मुखी था, सोसियल मिडिया पर उतना ही बहुर्मुखी। फिर भी विजातीय मैत्री से कभी पाला न पड़ा था। धीरे धीरे वो जमाना भी बिता, yq के कमेन्टसेक्शन में लोग बातो का ढेर लगाने लगे। मैंने तब भी किसी से उतनी चर्चाए नहीं की थी। फिर इंस्टा पर आए, और यही के होकर रह गए। लेकिन बातो का सिलसिला लोगो का यथावत था। मेरी चर्चाएं रुकी हुई थी। क्योंकि मुझमें घमंड था। अरे सोरी, मुझमे नहीं था, लोगो को लगता था। यह बड़ा घमंडी है। हालाँकि मुझे सिर्फ मेरी जाति के अलावा कोई घमंड रहा नहीं है। लेकिन जब आप किसी से ज्यादा बाते न करो तब तक उसके विषय में सिर्फ अंदाजा ही लगा सकते हो।

बातों का सिलसिला और हमारी कल्पनाएँ

    खेर, फिर धीरे धीरे मेरी भी चर्चाओं को कुछ मैदान मिले। अच्छे भले मैदान, कुछ छोटे, कुछ बड़े। बड़े मैदान को देखकर मुझे भी लगता की इसे जरूर बड़ा होने का घमंड होगा। तब अनुभव हुआ की मुझे घमंडी क्यों माना गया होगा। क्योंकि यह चर्चाओं का खेल ऐसा है कि क्रिकेट के बेट से कब होकि खेलना शुरू हो जाए, कुछ तय नहीं होता। कब चर्चा कहाँ पहुंचे कोई सिमा नहीं। अच्छा अपने अनुभव हो तो दुसरो के काम आते है, और दूसरी चीज यह भी चर्चाओं के निचोड़ से जानने मिली की 'तुम एक बहुत स्पेसियल हो' यह भावना कभी नहीं पालनी चाहिए। 

चर्चाओं से उपजी लेखनी: एक रचनात्मक विस्फोट

    क्योंकि ऐसा बहुत कुछ है जो सबके साथ होता है, लेकिन हमे लगता है की सिर्फ हमारे साथ होता है। फिर वह समय आता है जब कुछ लिखने के बाद लगता है की अब आगे क्या लिखूं? बाते तो ख़त्म हो गई, जो बतानी थी। अब यह चर्चा युहीं रूकती अच्छी भी तो नहीं लगती प्रियंवदा..! फिर हम ठहरे ऑवरथींकर। स्वयं से निर्धारित कर लेते है कि अगले का बात करने से इंट्रेस्ट ख़त्म हो गया। या अब यह विषय पर बहुत बाते हो चुकी, बदला जाना चाहिए। या फिर आज तो बहुत से विषयो पर बाते बता दी। अब तो थकान हो रही है। 

    या फिर अब उसने "hmmm" भेजा है मतलब अब बस कर, कितनी बाते करेगा। या फिर अब रिप्लाय धीरे आने लगे है, मतलब उसे मुझसे बात करने में प्राधान्य देना जरुरी नहीं लगता। या फिर मेरा मेसेज seen होने में समय लग रहा है मतलब वो किसी और से बात कर रहा है। यह होती है overthinking.. या फिर मेरी कल्पना। वैसे यह कल्पना सच में ही होता होगा सबके साथ ऐसा। क्योंकि चर्चा तो मैं भी करता हूँ किसी के साथ।

और अंत में... चार्वाक दर्शन और हमारी बातों का नशा

    लेकिन प्रियंवदा.. तुम्हे कैसे समझाऊं, उन चर्चाओं से मुझ में जैसे एक स्त्रोत आ धमकता है कुछ लिखने का। फिर मैं चाहे कैसा भी लिखूं, कितना ही विषय का विस्तृतीकरण करूँ, या कितना ही किसी विषय को घसीटूं। एक ऊर्जा जरूर अनुभवता हूँ। उन चर्चाओं के पश्चात। या फिर जैसे ढक्कन खोलते ही सोडा उछलती है, वैसे ही यह ब्लॉग का पन्ना भर जाता है। दिनभर में एकाध बार उन चर्चा में से कुछ न कुछ स्मरण हो आता है। हाँ ! थोड़ी यादशक्ति पर खर्ची गया बादाम बेकार गई है मेरी, लेकिन ज्यादातर चर्चा / बाते रिपीट नहीं होती। लेकिन हाँ ! बाते जरूर ख़त्म हो जाती है। जैसे अभी अभी खतम हुई है। 

    पर इस मामले को चार्वाक के दर्शन से जोड़कर देखे तो,

    पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा, यावत् पतति भूतले।
    उत्थाय च पुनः पीत्वा, पुनर्जन्म न विद्यते।। 

|| अस्तु ||


💬 क्या आपके भी किसी “hmmm” ने आपको ठहरा दिया है? क्या आप भी कभी मिस-कॉल्स से रिश्ते बुनते थे?
आइए, कमेंट में वो अनकही चर्चाएं साझा करें — जो बस… ख़त्म हो गईं।

#OverthinkingDiaries #ConversationEnds #सोशल_मीडिया_का_सच #DigitalNostalgia #प्रियंवदा_डायरी


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1Comments
  1. बातें कभी नहीं खत्म होतीं !! 😂

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