लिबरलिज़म और कंजरवेटिविज़म: द्वंद्व की शुरुआत
प्रियंवदा ! समझना मुश्किल है लेकिन मैं कई बार शत प्रतिशत निश्चय पर नहीं आ पाता हूँ की मुझे लिबरलिज़म (उदारतावाद) का सिद्धांत पसंद है या कंजरवेटिविज़म (रूढ़िवाद) का..! मैं दोनों का पक्षधर रहा हूँ.. समयानुसार, स्थितिअनुसार और हितो के आवश्यकतानुसार मैं उन दो में से एक का चयन करता हूँ। फिर लगता है यह तो स्वार्थ है, अपने स्वार्थ के लिए किसी एक पक्ष को चुनना.. हाँ! तो हूँ में स्वार्थी और क्या.. संत-महात्मा थोड़े हूँ? प्रगति, उन्नति के लिए किसी और की हानि न हो इस तरिके से जहाँ मेरा स्वार्थ साध सकता हूँ वहाँ मैं रुकता नहीं हूँ..!
मैं कौन हूँ? स्वार्थी या संत?
आज का मानव हूँ न.. वेदकालीन भारत का नहीं। मैं इस सिद्धांत को स्वीकारता हूँ की व्यक्ति को अपनी जीवनशैली और विचारो की स्वतंत्रता होनी चाहिए, पर मैं यह भी मानता हूँ कि वे विचार या जीवनशैली हमारे पारम्परिक सांस्कृतिक विरासत से दूर न ले जाते हो। सरकारों को नूतन सुधार के लिए अग्रसर होना चाहिए, पर परम्पराओ का भोग देकर नहीं, वो विरासत भी बनी रहनी चाहिए..!
परंपरा बनाम आधुनिकता: बीच की डगर
मुझे लगता है कि बचपन में हमे बहुत लिबरल रखा जाता है, बहुत छूट-छाट दी जाती है, सभी विचारो को, सभी बदलावों को स्वीकार करने की क्षमता का निर्माण करने के लिए। धीरे धीरे हमारा वांचन, हमारे आसपास का वातावरण, या फिर स्वयं से ही हम किसी एक वाद के प्रति आकर्षित होते है। कई बाते हम स्वीकार कर लेते है, कई कुछ हम पर थोपी भी जाती है। लिबरलिज़म और कंजरवेटिविज़म दोनों के बीच मुख्य अंतर उनके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोणों में है।
विचारों की स्वतंत्रता और विरासत की रक्षा
लिबरलिज़म जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और सरकार द्वारा कल्याणकारी हस्तक्षेप की वकालत करता है, वहीं कंजरवेटिविज़म पारंपरिक मूल्यों और सीमित सरकारी हस्तक्षेप को प्राथमिकता देता है। दोनों विचारधाराओं के अपने-अपने फायदे और निहितार्थ हैं, और दोनों ही समाज की जटिलताओं को हल करने के तरीके में भिन्नता रखते हैं। समस्या तब खड़ी होती है जब इन दोनों में से किसी एक का टैग दिया जाता है या हम खुद चयनित करते है, क्योंकि हम सोचते बहुत है। यह करेंगे तो यह कहलाएगा, वो करेंगे तो वह श्रेणी में समाहित होंगे... फिर खुद ही यह भी सोचता हूँ कि छोड़, अपन जो कर रहे है, जो चल रहा है सब ठीक है.. इन वादों के चक्कर में बाल की खाल क्यों खींचनी है ?
Instagram रील और तीस का पछतावा
देखो प्रियंवदा ! कुछ लोग हमारी वास्तव में भलाई चाहते होते है, और हम कई बार इन वाद-विवाद के चक्कर में उनसे विवाद कर लेते है। वास्तव में बहुत से प्रकरण बस दृष्टिकोण पर निर्भर है। कभी कभी अपने परिघ से बाहर आकर हमे उनके दृष्टिकोण से भी देख लेना चाहिए। इंस्टाग्राम पर एक रील देखी थी, रील में इतना ही लिखा था कि तीसीमें पहुँच गए हो तो अपनी सबसे बड़ी गलती लिखो.. लोग कमेंट्स कर रहे थे, ज्यादातर कमेंट्स में दो ही बाते थी, "अपनों का कहा मान लेता/लेती, और दूसरा ठीक से पढाई कर लेता तो आज पोज़िशन अलग होती।"
लेकिन हम समय समय पर यही भूल दोहराते है। सीखना तो आज भी सम्भव है, समय ही बहुत कुछ सीखा रहा है, फिर भी हम नजरअंदाज करते है या फिर भूतकाल की गलती पर दोषारोपण कर अपने हाथ खखेर लेते है। देखो भावुक होना सामान्य है, पर उसीको गले में बांधे पड़े रहना ठीक नहीं है। दुनिया दोरंगी है यह सत्य सदा याद रखना।
आज इतना ही बस..!
|| अस्तु ||
"तो बताओ प्रिय पाठक,
क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम लिबरल हो या कंजरवेटिव?
या फिर तुम्हें भी लगता है कि यह टैग्स सिर्फ सोचने वालों को उलझाने के जाल हैं?
नीचे कमेंट में अपनी विचारधारा साझा करो,
और हाँ — अगर तुम्हें यह द्वंद्व अपना-सा लगे,
तो एक लाइक देकर बता देना,
कि प्रियंवदा अकेली नहीं है सोच में...!"
"देखो प्रियंवदा ! जीवन में कई बार निष्ठुर होना भी ज़रूरी है... और इस बारे में कभी विस्तार से यहाँ लिखा था।"