"प्रियंवदा और सर्दियों का विरह: एक दार्शनिक हिंदी डायरी" || Winter is returning...

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सर्दी की ऋतु में लौटती चेतना और भूख

 प्रियंवदा ! 


    सर्दिया लौट रही है, मेरी प्रिय ! अब तो सूर्य भी शीघ्र ही संध्या के पल्लू में छिप जाता है। वातावरण में एक आह्लादक नमी बनी है, चित्तरंजन नमी। तुम्हे तो पसंद नहीं यह ऋतु.. शायद तुम आलसी नहीं..! तुम्हे पता है! सर्दी की सुबह एक बार उठना, और फिर जागने के लिए खुद से ही एक अंतर्द्वंद करना.. युद्ध तो यही से ही शुरू हो जाता है जीवन से.. खुद से.. बस जागने से।



तंद्रा, अनिंद्रा और कुंभकर्ण की प्रेरणा

    मुझे वास्तव में सर्दी में एक शान्ति की अनुभूति होती है। शर्वरी में चारोओर एक सूनापन छा जाता है, कहीं दूर से जाती रेल की पटरी के संघर्ष के स्वर भी यहां तक की यात्रा करते है। मेरी सालभर की अनिंद्रा इस ऋतु में लंबे विराम पर मतलब अगली गर्मियों के प्रादुर्भाव तक चली जाती है। कुंभकर्ण का उपासक बन जाता हूँ, बस उनके नक्शेकदम पर नही चल पाता। क्योंकि पापी-पेट का सवाल है, प्रियंवदा ! सर्दियों में लगती अनहद भूख के चलते यह पेट भी आगे की और चलना शुरू कर देता है..! इसी लिए यह पापी है कि मेरा होते हुए, मुझसे ही आगे बढ़ने की कोशिश करता है। और बस, मेरी अनिंद्रा को भी तंद्रा हो जाती है, सुबह छह बजे सारा मैदान हांफता दिखता है मुझे।


उम्र का बढ़ना और समाज की सौंदर्य की शर्तें

    बढ़ती उम्र के साथ मैं तो काफी सारे समझौते कर रहा हूँ प्रियंवदा ! स्वीकार करना ही पड़ता है, अब कोई सोलह की उम्र लौटकर तो नही आती.. बाल पकते है, शरीर आजबाजू और आगे फैलने लगता है, आंखे कमजौर होती जाती है, और जॉइंट्स भी.. फिर भी कौन चाहता है बूढ़ा होना? बूढ़ा होने से भी ज्यादा समस्या है बूढ़ा दिखना। देखो वो सिर्फ कहा जाता है कि, 'डोंट जज अ बुक बाय इट्स कवर' वास्तव में तो बाह्य दिखावा ही पहली इम्प्रेसन डालता है.. 


    तभी तो चश्मा की इतनी वेरायटी है, बाल के कलर्स के ग्रेड है, जिम है, जिम के पैकेजेस है। लेकिन उत्साह न हो तो क्या होगा, पैसे बर्बाद.. जिम की मेम्बरशिप को खुद डंबल उठाने हो तो उठाए, अपने से तो सवेरे सवेरे न आज जगा जाए, न कल.. लेकिन मैं उठता हूँ, आलस के मारे बस मैदान तक ही पहुंचता हूँ, हांफते बुढो को देखकर अपने को दृढ़ विश्वास दिलाता हूं कि हाँ ! उम्र इतनी भी नही बढ़ी है.. फिर कुछ दौड़ने के नाम पर टहलना, और कुछ सूर्यनमस्कार कर के पेट कम करने के लिए किए इतने पुरुषार्थ पर स्वतः राजी हो जाता हूं।


सर्दी की विरह रचना — जीवन की नमी, मन की धूप

    सर्दी की खासियत क्या है पता है प्रियंवदा ? इस ऋतु में रोग जाते अनुभव होते है, नई चेतना का संचार, नई ऊर्जा का अनुभव होता है, भूख भी खूब लगती है। युगलों के दिन कम है, विरही की रातें गम है, प्यासीके पास रम है.. फिर भी बस तुम्हे सर्दियां पसंद नही प्रियंवदा..!


 || अस्तु ||


...सभी अपने आश्रय को लौट चुके हैं, प्रियंवदा!
जैसे मैंने इस पोस्ट में कहा था —
जब प्रकृति मौन हो जाए, तो प्रश्न और तीखा सुनाई देता है: "तुम कहाँ हो?"

प्रिय पाठक..!
क्या आपके भीतर भी सर्दी किसी पुरानी याद को जगाती है?
क्या आपको भी उम्र के साथ आता एक अदृश्य बदलाव
हर सुबह, हर साँझ थोड़ा सा और बदल देता है?


कमेंट में बताइए — सर्दियाँ आपके जीवन में क्या जगाती हैं: आलस्य, भूख, विरह या कोई प्रिय नाम...?


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