
प्रेम, पीड़ा और परछाइयाँ: सर्दियों की एक डायरी || SARD ME PURANE GHAAV.. || DIARY ||

सर्दियों में जीवित होते पुराने घाव तुम्हे पता है प्रिय? कल्पना, सत्य या भ्रम? सर्द में पुराने घाव फिर से जिन्दा ह…
सर्दियों में जीवित होते पुराने घाव तुम्हे पता है प्रिय? कल्पना, सत्य या भ्रम? सर्द में पुराने घाव फिर से जिन्दा ह…
"ઈ.સ.1818 પછી મરાઠા અધ: સ્થિતી અને અંગ્રેજોનો આગમન" અંગ્રેજકાલીન ભારતના રાજાઓ એક કાગળના ભાર હેઠે દબાઈ ગય…
“दिल तो बच्चा है जी…” – जब हृदय जिद पकड़ लेता है मन के झरने के आगे बाँध तो होता ही है न, लेकिन इस ह्रदय का क्या कर…
बियर के कैन से टपकती यादें: ठंड की एक और रात पता नही, क्या लिखूं..! सब कुछ तो तुम्हे पता है। मेरी चा (चाय) से लेकर…
"સુલ્તાન શાહઝહાં : ચાર દીકરાઓ વચ્ચેની રણપર્યાયની શરૂઆત" આગ્રાના તખ્ત ઉપર બિરાજતો મુઘલિયા સલ્તનતનો બાદશાહ…
धार्मिक नारेबाज़ी और भ्रम का तंत्र धार्मिंक कट्टरता धीरे धीरे अपने चरम को प्राप्त कर रही हो ऐसा नहीं लगता आपको? को…
हम दोनों जानते हैं… लेकिन मानते नहीं नहीं मतलब ये हो क्या रहा है..! मुझे वह तारीख बखूबी याद है, लेकिन मैं नहीं चाह…
'सेम बहादुर' क्यों चुनी जब 'एनिमल' भी लगी थी? हाँ, तो देख ही ली, "सेमबहादुर.." कल शनिवार …