आज तो सुबह शायद ब्रह्ममुहूर्त में हुई है। पौने चार को जागना पड़ा था। शादियों में बड़े के पास बड़ी जिम्मेदारियां होती है। वो जिम्मेदारी है हाजिर रहने की। खड़े रहने की। देखते रहने की। अचानक से गांव की शादी में थोड़ी प्लानिंग्स चेंज होने के कारण सुबह जल्दी गांव के लिए निकलना पडा। कच्छ से बाहर निकलने के दो ही एग्जिट पॉइंट्स है। सौराष्ट्र की ओर जाने के लिए सामखियाली ब्रिज, और उत्तर गुजरात जाने के लिए आडेसर.. चार बजे जाग चुका था, लेकिन घर से निकलते निकलते छह बजे गए। बड़ा हादसा होते रह गया सामखियाली ब्रिज पर.. नेशनल हाइवे है, लगातार ट्रक-डम्पर्स के चलने के कारण गढ्ढे बनते है, हाइवे ऑथोरिटी फटा कपड़ा सिला करती है। सुबह सुबह उजियारा हुआ नही था, कार सब एक दूसरे के पीछे बड़ी तेजी से गुजर रही थी.. एक जगह ब्रिज पर बड़ा गढ्ढा था, एक कार ने सड़न-ब्रेक मारी, उसके पीछे दूसरी, तीसरी, और चौथा मैं.. मेरे पीछे ट्रक.. एक बार तो मुझे लगा कि गए अब, अगली कार में टकराने ही वाली है, लेकिन ब्रेक पेडल पूरा ही दबा दिया, कार रुक तो गई, लेकिन शीशे में देखा तो ट्रक आ रहा था पीछे.. बड़ी जल्दी से फिर से कार को राइट साइड डिवाइडर तक खींची.. लेकिन सौभाग्य से कुछ भी हादसा न हुआ।
फिर तो मोरबी, राजकोट, और आटकोट के स्टेशन बड़ी तेजी से गुजरे। बाबरा से पहले एक बढ़िया होटल है। आधे घंटे का वहां ब्रेक लिया। कुछ चाय नाश्ता किया। और फिर से कार दौड़ा दी। चावंड से एक शॉर्टकर्ट लिया, बड़ा महंगा पड़ा। लगभग साठ किलोमीटर सड़क के नाम पर गढ्ढो में गाड़ी कूदती रही है। कार के सारे पुर्जे आवाज करने लगे थे। लगभग पौने एक को गांव पहुंचा। दूल्हे को राम-राम किया। शाम को फिर तहसील घूमने चले गए, शेविंग करवानी थी, और डांडिया-रास के लिए एक कुर्ता खरीदना था। लगभग दस बारह कुर्ते ट्राय किये, जो पसंद आए वे फिटिंग में सही नही थे। जो नही पसंद थे वे परफेक्ट फिटिंग के थे।
ठंड यहाँ कर्मभूमि के मुकाबले कम है, थोड़ा भेद है, वहां ठंड है, लेकिन जोरो की है, यहां ठंड है, लेकिन तेज पवन के साथ है, तो यहां ज्यादा लगती है। अभी खुल्ले में सो रहा हूँ, अपनी मर्जी से। लोगो ने खूब कहा, बाहर नही सोना चाहिए। लेकिन तीन भाई पड़े है, बाहर, खुले में, दो - दो गुदड़ी ओढ़े हुए।
Anand lijiye fir gaanv ke !
ReplyDelete