दिलायरी में कुत्ताकथा : २८/०१/२०२५ || Dilaayari : 28/01/2025

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चलो आज दिलायरी का थोड़ा विस्तृतीकरण करते है। मेरे साथ हंमेशा से ऐसा ही कुछ होता है कि सोचा कुछ और होता है, होता कुछ और है। पता नहीं कौनसा चौघड़िया था, दिलायरी की शुरुआत हुई और बाकी सब बंद..! धीरे धीरे प्रियंवदा से वार्तालाप भी बंद हो गया। अन्यथा चर्चाओके मंथन से प्राप्त नवनीत ही लिख देता था। होता है, समय के साथ बहुत कुछ बदलता है। मैं बदलता हूँ, प्रियंवदा बदलती है, बाते बदलती है। बातो का तरीका भी बदलता है।


आज सुबह नियत समय पर ऑफिस पहुँच गया था, काम के नाम पर दोपहर बाद एक बिल बनाया, और पूरा दिन बस गेम खेलता रहा और रील्स तथा शॉर्ट्स स्क्रॉल करता रहा। दो दिनों से एक एक अनुच्छेद करके लिखा हुआ 'अठे द्वारका ' पोस्ट किया, और स्टोरी पर चढ़ाया.. मेरे नित्यपाठी के अलावा किसी ने भी शायद नोटिस किया नहीं। आज थोड़ा लेट होने वाला है। अच्छा हुआ जैकेट ले आया, सुबह बिलकुल ही ठण्ड न थी, गर्मी जैसा दिन था, तो सोचा था, भार कौन उठाये.. लेकिन ठीक ही हुआ की घर से निकलते हुए पहन लिया था। एक गाडी थोड़ी लेट फाइनल होगी.. तब तक रुकना पड़ेगा। तो सोचा दिलायरी ही लिख दी जाए.. लिखने बैठा तो याद आया, आज ही प्रियंवदा ने टोका है, कुछ ढंग का लिखो। प्रियंवदा तो ठीक है, लेकिन एक कुब्जा ने सीधे मेसेज में धमकी ही दे डाली कि 'यह क्या काल्पनिक प्रियंवदा के नाम पर उलूल-जुलूल लिखता रहता है। बंद कर दे यह सब बकवास..' मेरा दिमाग हिल गया, दो दिन से उसे फोन कर रहा हूँ, खाली उठा ले बस वो...

यूँ तो मैं जो अनुभव करता हूँ उसे ही मानता हूँ, प्रेम मैंने कभी अनुभव किया नहीं इस लिए मानता नहीं। लेकिन प्राणी में एक स्नेह होता है वह अनुभव किया है। हुआ कुछ यूँ कि कुछ सालो से एक नित्यक्रम बना हुआ है, कुत्तो को बिस्किट्स डालने का। मिल पर कुछ ४-५ कुत्ते है। एक मादा श्वान थी, एक बार उसे गलती से बिस्कुट डाल दिए, तब से उसने मेरे आगे पूंछ पटपटानी शुरू कर दी। कुछ दिनों बाद उसने पिल्लै दिए ६-७ और मर गई.. अब बिलकुल छोटे छोटे पिल्लै.. फिर वो छोटे बच्चो के लिए टोंटी वाली दूध की बोत्तल आती है वो मंगवाई और डेली सुबह शाम उन्हें ऑफिस के बाहरवाली दूकान से दूध मांगा कर देता रहता। बाकी सारे पिल्लै तो धीरे धीरे ठण्ड और कोई लकड़ी के निचे दब कर या फिर गाड़ियों के टायर में आकर रामशरण हो गए, एक मादा पिल्ला बच गया।


दूध से बढ़कर अब वो बिस्कुट खाने लगी थी। तो मैंने और गजे ने मार्किट से पांच किलो का डॉग-बिस्कुट का पैकेट मिलता है, वो मंगाना शुरू किया। धीरे धीरे वो बड़े रोँए वाली कुत्ती बड़ी होने लगी.. उसका रंग बहुत अलग था, थोड़ा सुनहरा, और ब्लेक.. मैंने उसका नाम रखा, 'भूरी '... अब मैं अगर मिल में चक्कर मारने जाऊँ तो भूरी साथ चले.. फिर उसे ऑफिस से बिस्कुट डालूं तब जाकर वह ऑफिस पर रुकी रहे और मैं मिल में चक्कर लगा आऊं.. सुबह ऑफिस आऊं तब गेट पर ही खड़ी मिले..! बड़ी चालाक भी थी.. गेट से कोई भी अनजान आए तो भोंके, उसे देखकर दूसरे कुत्ते भी भोंकना शुरू करते तब खुद चुपचाप चौकीदार रूम के ऊपर जाकर बैठ जाती..! एक दिन उसने भी ६-७ पिल्लै दिए। बाकी सब तो रामशरण हो गए, एक बचा। दूसरी बार भी उसने कुछ पिल्लै जने, और एक दिन लकड़ी के बड़े स्टेग के निचे दब गई, प्राणपखेरु उड़ गए उसके। 

अब उसका पहली बार का, दूसरी बार का और उसकी सखी का एक पिल्ला, तीनो बड़े हो चुके है। और तीनों ही बड़े शर्म में डालते रहते है मुझे। दिनभर ऑफिस में बैठे रहने के कारण कुछ कुछ देर बाद मैं ऑफिस से निकलकर बाहर रोड पर थोड़े दूर तक चलने जाता हूँ। लगातार बैठे रहने से अच्छा है थोड़ी थोड़ी देर में एकाध चक्कर लगा लेना। होता कुकह ऐसा है मेरे बाहर निकलते ही यह तीनों कुत्ते मेरे साथ चलने लगते है। हम इंसान हर किसी को कुछ न कुछ नाम देते है। उसकी पहचान के तौर पर, नाम एक ऐसी चीज है जो है अपनी, लेकिन उपयोग दूसरे ही करते है। तो मैंने भी 'भूरी' के बच्चे को 'भूरिया' नाम दिया है। भूरी की सखी का बच्चा 'शेरू' नामधारी है। और तीसरा अनामी है। लेकिन अब मैं जब टहलने जाऊं तो मेरे साथ इन तीनो के चलने के कारण नए नाम दे दिए मैंने, छगन, मगन और गगन.. वैसे तो अच्छे है लेकिन अब इन तीनो से मुझे एक समस्या होती है। जब भी मैं बाहर निकलता हूँ रोड पर, तो यह तीनों रोड पर दूसरे कुत्तों को भगाने लगते है। जैसे मुझे प्रोटेक्ट कर रहे हो। दूर दूर रोड पर इन्होंने दूसरे कुत्तों पर भौकाल मचा रखा है। यहां तक तो ठीक था, लेकिन अब यह तीनों छगन, मगन और गगन कोई मोटरसायकल मेरे बाजू से गुजरे तो उनके पीछे पड़ जाते है। कई देर तक पुचकारने पर वापिस लौटते है। एक दिन तो गजे ने भी मजे लेते हुए कहा, 'बापु होकर कुत्तों की फौज साथ लेकर घूमते हो?'

एक समस्या और है, कई बार पैदल चलते समय यह तीनों पैर में आने लगते है, किसी दिन गिराएंगे अगर ध्यान न रहा तो.. भूरी तो और तेज थी.. वो तो अपने दो पैरों पर खड़ी होकर अगले दो पैर मेरी कोहनी तक हाथ पर रख देती, उसका यह अंदाज इस लिए मुझे पसंद नही था क्योंकि वो कीचड़ में नहाकर आने के बाद भी ऐसा करती थी.. कायदे से सावधानी हटी दुर्घटना घटी वाला मामला था.. बारिश में बड़ा ध्यान रखना पड़ता था कि वो आए तो दूरी बना लेनी पड़ती.. वरना सीधे ही मेरी छाती पर अपने दोनों पैर टिकाती..! मुझे यूँ तो कुत्तों से परहेजी नही लेकिन उन्हें छूने के बाद तुरंत हाथ धो लेता हूँ, अब बार बार हाथ धोने की भी आलस होती है इस लिए ज्यादा छूता भी नही हूँ। यह भूरिया उर्फ गगन कभी मस्ती में आता है तो नाचता हो ऐसे कूदता है, और हाथ चाटने की कोशिश करता है, मुझे थोड़ी घिन्न अनुभव होती है, और तुरंत हाथ धोने भागना पड़ता है। 

शेरू उर्फ मगन छोटा था तो बड़ा शरारती था। उसने किसी के जूते नही छोड़े होंगे.. मेरा वुडलैंड का बूट बर्बाद कर चुका था, सरदार का एक बार जूता गायब हुआ है, एक बार एक पार्टी वाले का। मैं और गजा तो हर हफ्ते में एक दिन सिर्फ मेरा या गजा का बूट ढूंढने निकलते थे। मिल तो जाता, लेकिन बड़ी खस्ता हालत में। फिर मैंने और गजे ने शेरू को कूटना शुरू किया था। जहां दिखे वहां से दौड़ा देते.. धीरे धीरे उसे समझ आ गया कि यूँ तो यह लोग बिस्कुट खिलाते है, जिस दिन जूता गायब होता है उस दिन दौड़ाते है। फिर तो वो हमारे पास आने से गभराता था। लेकिन धीरे धीरे अब वो भी सहज हो गया..!

तीसरा अनामी उर्फ छगन अभी उन दोनों के मुकाबले छोटा ही है, चारो और कूदता रहता है। वह थोड़ा अपनी माँ भूरी पर गया है, उसे रास्ता पता है, जिस रास्ते से मैं चक्कर मारने जाता हूँ। वह आगे चलता है, और रोड के दूसरे कुत्तों को भगा देता है, लेकिन अब आदमीयों पर भी भौंकता है। मेरे चुटकी बजाने पर कूदता है, जैसे मस्ती में आ गया हो..

ठीक है प्रियंवदा, आज तो कुत्ताकथा ही कर दी मैंने दिलायरी के नाम पर..

यह लिख रहा हूँ, साढ़े दस बज रहे है। शुरू तो ऑफिस में ही किया था लिखना, लेकिन फिर वो बिल बनाना था, बिलिंग के लिए हिसाब किताब करते समय अनुभव हुआ शरीर तपने लगा है। पूरे शरीर मे हल्का दर्द अनुभव होने लगा। बुखार चढ़ा है। छाती में कफ.. ऑफिस में मेडिसिन्स रखता हूँ। कफ-कोल्ड की एक टेबलेट ली है। लेकिन शरीर अभी भी जैसे टूट रहा हो.. बुखार तो है। सरदार बाहर गया है, कल से फिर से कुछ दिन पूरी ऑफिस का भार मुझ पर है। छुट्टी रख पाने की संभावना कम है। और वैसे भी मुझे घर पर रहना रास नही आता।

ठीक है, अब सो जाना चाहिए। शुभरात्रि।
(२८/०१/२०२५, २२:१७)

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