गुजराती में कहावत है कि 'पलाड्यू छे तो मुंडाववु पडशे..' || दिलायरी : १६/०३/२०२५

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गुजराती में कहावत है कि 'पलाड्यू छे तो मुंडाववु पडशे..'

सवेरे सवेरे आदेश छूटा की ऊपर टंकी में पानी कम है और पम्पमोटर के प्राण-पखेरू उड़ चुके है, तात्पर्य है कि नहाने में शावर के नीचे जो फालतू खड़े रहते हो उसमे कटौती करो आज..! वाह रे रविवार, क्या उगा है आज तू...! सुबह सुबह अच्छी खासी जेब छिदवा दी। खेर, गुजराती में कहावत है कि 'पलाड्यू छे तो मुंडाववु पडशे..' मतलब की सर गिला किया है तो गंजा कर दिया जाए..! सुबह नहाधोकर, फ्रेश होकर, नाश्ता-वाशता करके, पाना-पकड़ लेकर बैठ गया..! साथ मे कुँवरुभा ने भी स्क्रूड्राइवर उठाया.. मैं तो लगा था मोटर निकालने में, और उसने शुरू किए दीवार में स्क्रू टाइट करने.. बच्चे ज्यादातर बड़ो की नकल करने की ही कोशिश करते है। 

Kharche Ginte Dilawarsinh..!

कुछ चार-पांच साल उस पम्पमोटर ने आयुष्य भोगा था। लेकिन उम्र के अनुसार उसके सारे नट-बोल्ट बुरी तरह जंग पकड़ चुके थे। जैसे कई मृतप्राय शरीर जकड़ जाते है। वैसे ही इस पम्प के टंकी से जुड़ी पाइप के नट्स जकड़ चुके थे। बड़ी शालीनता से काम लेना पड़ता है ऐसे मामलों में, वरना जो अकड़ते है वे टूटते भी बड़ी जल्दी है। जंग खाया हुआ नट ज्यादा जोर पड़ने पर टूट सकता था। थोड़ा ऑयलिंग वगेरह करके आखिरकार आधे घंटे की मेहनत के फलस्वरूप सारे नट खुल गए। सोचा इसे डॉक्टर को दिखाया जाए, एक और मोटर पड़ी थी, उसे भी साथ ले ली..! दोनो मोटर को एक बोरे में बांधकर ले गया मार्किट। आदमी को अक्सर किसी से बिछड़ने के बाद ही उसका मूल्य समझ आता है। आज जब दो मोटर, लगभग दसेक किलो से ज्यादा वजन, मोटरसायकल पर ले जा रहा था तब मुझे अपनी पुरानी स्प्लेंडर की बड़ी याद आयी..! स्प्लेंडर जैसी छोटी और सस्ती बाइक्स वाकई भारतीय जीवनचर्या के लिए ही बनी है। आप उसपर सिलेंडर से लेकर वॉटरकूलर ले आओ, स्प्लेंडर कभी मना नही करती। छोटी और नीची पेट्रोल की टंकी होने के कारण उस पर भी आप कुछ भी भार ढो ले जाओ.. कोई समस्या नही होती। लेकिन आज यह यामाहा की fzx पर जब दो मोटर ले जानी थी तो बड़ा सोच विचार करना पड़ा कि कैसे ले जाया जाए? पीछे बांध नही सकते, पिछले टायर में टकराने का खतरा, आगे टंकी fzx की ऊंची आती है, पीछे सीट पर रखने से गिरने का खतरा.. जैसे तैसे इसे अपनी गोद मे टंकी के सहारे लेकर मार्केट पहुंचा.. आधी मार्किट तो संडे के कारण खुली ही न थी.. दस बज गए थे, लेकिन शहर अभी तक अंगड़ाई ही ले रहा था.. 

कुँवरुभा ने जिद्द पकड़ ली..

एक डॉक्टरसाहब अपने तामझाम सरसरंजाम निकाल रहे थे, तो अंदाजा आया कि यह जरूर मेरी मोटर को देखने मे सक्षम होंगे..! उनके पास पहुंचा, तो साहब ने कहा, 'काम बहुत है, आप अपना नंबर लिखा दो, दोपहर को देखकर कॉल करूंगा।' जैसी साहब की मर्जी, वैसे भी कारीगरों से बहस नही की जाती। मैं अपनी दोनो अमानत उन्हें सौंपकर वापिस घर लौटा, और ऑफिस बेग और हेलमेट लेकर ऑफिस के लिए निकल रहा था तो कुँवरुभा ने जिद्द पकड़ ली, 'मुझे भी ऑफिस आना है।' ले जाने में और कोई दिक्कत नही है लेकिन साहबज़ादे मेरे साथ कुछ ज्यादा ही खुलेपन में आ जाते है। और मुझे ऑफिस पर काम होता है, ध्यान कौन रख पाए भला.. बड़ी बहानेबाजी करके छटक लिया मैं। ग्यारह बजे चुके थे।

सरदार का फिक्स है बारह बजे तक आना। तो थोड़ी देर गेम वगेरह खेला। दिलायरी पोस्ट की थी उस पर स्नेही के कमेंट्स आए थे वे पढ़े। और फिर सरदार के आते ही लग गए वित्त वितरण व्यवस्था में। लगभग दो बजे तक यह कार्यक्रम चला। अन्य रविवारों के मुकाबले आज बड़ा सही और जल्दी निपट गए थे क्योंकि इस सप्ताह सिर्फ चार दिन मिल चली थी। दोपहर को घर पहुंचा, आज हुकुम गुलाबजामुन ले आये थे.. छह सात गुलाबजामुनो को न्याय देने के पश्चात पलंग पर पड़े पड़े यूट्यूब पर ट्रेवल व्लोगस देख रहा था, और आंख लग गयी..! लगभग चार बजे जागा। याद आया कि ऑफिस पर था तो उस कारीगर का फोन आया था कि इन मोटरों का कुछ नही हो सकता, भंगार में दे दो, और नई खरीद लो..!

तो चाय पीकर चला गया वहीं, उससे मोटर उठायी, और एक दुकान पर गया उससे नई मोटर के लिए पूछा। मुझे सौदा कुछ यूं करना था कि पुरानी मोटर ले लो, उसका कुछ दाम नई मोटर में से काट दो। दुकानदार से कुछ भावताल में जमी नही। अपने यहां की विचित्र सिस्टम है, रविवार को दोपहर बाद भी लोग बड़ी लेट दुकाने खोलते है। मुख्य मार्किट भी अभी तक सोई पड़ी थी, दोपहर की नींद में..! एक और दुकान पर गया, तो वो नई मोटर बेचने को तैयार था लेकिन पुरानी खरीदने को नही। अब एक मोटर सायकिल पर तीन मोटर कैसे ले जाऊँ। उससे भी बात बनी नही। आखिरकार एक भंगार कबाड़ी वाला दिखा, उसे यह दोनो मोटर दे दी..! फिर एक और दुकान पर गया, उससे भावताल लिया, और एक नई ब्रांडेड मोटर खरीद ली..! कितना सही होता कि बात यहीं खत्म हो जाती.. लेकिन नही, अभी भागादौड़ी बाकी है।

खर्च बचा भी लिया..

मोटर ले आया, ब्रांडेड कंपनी की थी, और डिज़ाइन थोड़ी अलग थी। मैंने दुकानदार से कहा था कि यह कुछ अलग लग रही है मुझे, लेकिन उसने कहा कि ऐसे वर्टिकल नही तो हॉरिजोंटल फिट हो जाएगी, लेकिन फिट तो हो ही जाएगी। समस्या सबसे बड़ी यह थी कि प्लम्बर नही है कोई पहचान में जो कि आज के आज फिट कर दे.. फिटिंग तो मुझे ही करनी थी। नट-बोल्ट जितनी फिटिंग तो मैं खुद ही कर लूं, लेकिन पाइप लंबा-छोटा पड़ जाए फिर तो प्लम्बर के अलावा काम ही न बने अपना। और मैंने दुकानदार से कहा भी था कि भाई पहले वाली थोड़ी अलग डिज़ाइन की थी। लेकिन उसके समझाने पर मैं यह अलग वाली ही ले आया। घर पहुंचा, फिर से पाने-पकड़ लेकर बैठा तो जिसका डर था वही हुआ, पाइप के कनेक्शन रह गए नीचे, मोटरपम्प हो गयी ऊंची..! फिर एक पहचान वाले प्लम्बर को फोन किया, लेकिन उसकी आदत है, उसकी एडवांस बुकिंग करनी पड़ती है, तत्काल अवेलेबल नही होती उसकी..! फिर से मोटर को बॉक्स में पैक की, वापिस दुकान पर गया, फिर से दूसरी वाली मोटर उठायी, वापिस घर आया। शायद एक ही ब्रांड की अलग अलग मोटर के मॉडल्स पर दुकानदारों की कमाई का मार्जिन अलग अलग होगा। वरना पहले जो ले आया था वो थी पैंतीससौ की, दूसरी ले आया वो थी बावनसौ की। अगला छोटी वाली मुझे क्यों बेच रहा रहा समझ नही आया.. खेर, दो धक्के खिलवाने के नाम पर मैंने दोसो कम दिए। आखिरकार इस मोटर के चक्कर मे पाँचसौ का तेल फूंका, लेकिन मैंने ही फिटिंग करके प्लम्बर का खर्च बचा भी लिया।

होता होगा इसमें भी कुछ अच्छे के लिए। वो कहते है ना जो होता है अच्छे के लिए होता है। पाँचहजार में पड़ा यह 'अच्छा'। अच्छा तो हुआ वैसे, बाजार से लौटते हुए मेरी पसंदीदा 'टेटी' ले आया था। गुजराती में साकरटेटी कहते है, अंग्रेजी में muskmelon.. मुझे बड़ी पसंद है। शाम को जलेबियाँ और दे गया कोई, दोपहर को गुलाबजामुन, शाम को जलेबियाँ.. वैसे रविवार बेकार नही गया बिल्कुल..! हाँ मेहनत थोड़ी कम रह गयी होगी, तो हुकुम ने आदेश दिया कि 'मेरे रूम का पंखा सही नही चल रहा, कैपेसिटर बदल दे इसका।' पास ही एक इलेक्ट्रिक समान की शॉप है, उससे कैपेसिटीर ले आया और बदल दिया। हालांकि मुझे तो पहले और बाद की दोनो पंखे की गति समान ही लगी..

ठीक है फिर, अभी समय हो रहा है २३:२९.. अभी कुछ देर मोटो-व्लोगिंग देखूंगा और फिर सो जाऊंगा.. अब त्यौहार खत्म हो चुके है, और मार्च अपनी एंडिंग की और बढ़ता हुआ मेरे कंधों पर और वजन लादने वाला है। कल से फिर से एक बार व्यस्तता की ओर..

शुभरात्रि।
(१६/०३/२०२५, २३:३१)

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1Comments
  1. sach me, jo hota hai achhe ke liye hota hai !!

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