दिलायरी : ०३/०३/२०२५ || Dilaayari : 03/03/2025

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वाह, क्या व्यस्त दिवस था आज..! सुबह ऑफिस पहुँचा लगभग सवा नौ बजे। काम के नाम पर ढेर था, क्योंकि महीने के शुरुआती दिन है, ऊपर से Financial Year का आखरी महीना। किस की क्या उधारी है, किस से कितना लेना है, बैंकिंग, यही सब। और सात तारीख से पहले भरा जाने वाला tcs और tds.. केल्कुलेशन्स..! निरी केल्कुलेशन्स..! सुबह से दोपहर तक किससे कितने लेने है उसी की लिस्ट बनाने में हो गयी..! आधी ही बन पाई, और हाँ, कल रविवार को लोड हुए माल के बिल भी बनने थे..! वे खड़ी गाड़ियां अलग से। दोपहर एक बजे तक यही सब चला, और सेलेरी वाले भी थोड़ी थोड़ी देर में ऊंचे नीचे हो रहे थे.. 'आज मिलेगी क्या?'



दोपहर का मेरा और गजे का प्लान फिक्स्ड था.. शनिवार को ही तय कर लिया था, सोमवार की दोपहर को पापा लुईस पिज़्ज़ा में जाना है.. ठीक एक बजे हम निकल गए.. लेकिन वहां पहुंचते पहुंचते पौने दो बजे गए, क्योंकि लगातार फोन-कॉल्स चालू थे। आज एक नया रिश्ता भी तो जुड़ा है। या यूं कहूँ की रिश्तों में मुझे एक अपग्रेडेशन मिली है। खेर, पौने दो को पापा लुइस में पहुंचे, लगभग दसेक जन थे..! सवा छःसो में अनलिमिटेड.. पिज़्ज़ा, और स्टार्टर्स..! आप गले तक ठूंस लो दम है तो। नाश्तों का तो शौकीन हो चला हूँ मैं अब। अनलिमिटेड का सिस्टम उल्टा है। पहले पैसे दो फिर खाओ। पता नही, ऐसा क्यों है। खेर अपने को क्या..! अपने को तो भूख भाँगनी थी..! गजे ने शुरुआत पानीपुरी से की.. लगे हाथ मैंने भी वहीं से शुरुआत की। चार पीस सर्व करता है वो। उसके बाद 'चाट-पापड़ी' जो मुझे और गजा दोनो को उतनी पसंद नही आई। अब जब तक वो चाट-पापड़ी बना रहा था तब तक मैंने कुछ दूध की आइटम थी वो चख ली, और एक पेस्ट्री का पीस भी..! ठीक ठाक था। उसके बाद प्लेट ही ले ली। पावभाजी टेस्ट की, लेकिन सालो ने कितने साल के पाव रखे होंगे पता नही, वो चुप चुप के मूवी की तरह उधर के वेटर को मैने भी कहा, 'आरी मिलेगी?' वो प्लेट ऐसे ही वेस्ट गयी.. भाजी का टेस्ट अच्छा था। उसके बाद 1 चम्मच बिरियानी, और पुलाव दोनो ही एक साथ, और साइड में मंचूरियन भी टेस्ट किये। पुलाव और मंचूरियन ठीक थे, बिरियानी बेकार लगी..! मैगी, और नूडल्स भी थे, वो मैंने लिए ही नही। बाकी ढेर सारा मेनू था। भिगोए हुए मसाला कॉर्न्स थे, काजू शेप वाले मसाला बिस्कुट्स, भाखरवड़ी, खाते खाते याद आया, सुप तो चखा ही नही। तो लगे हाथ उसका कटोरा भी उठाया। पैसे दिए है भाई, वसूलने है। अरे हां, थम्सअप और मिरिंडा भी अनलिमिटेड थी। जिराराइस और दाल तड़का भी थी। और मिठाइयों में गाजर का हलवा, गुलाबजामुन, और भी पता नही क्या क्या था.. इतने नाम भी लिखने बैठूंगा तो मैं ही थक जाऊं। उसके बाद पिज़्ज़ा का राउंड शुरू हुआ..! एक तो इनके नाम मुझे कभी याद नही रहते.. तो मैंने अपने नाम देने शुरू किए.. सबसे पहले ले आया चीज़ बर्स्ट.. अच्छा यह लोग स्मॉल पिज़्ज़ा की एक सिंगल स्लाइस सर्व करते है। उसके बाद शायद वेजिस था, उसके बाद पनीर, उसके बाद बर्गर पिज़्ज़ा, उसके बाद एक वो बड़ा बेकार था, नाम हर बार भूल जाता हूँ, बिल्कुल दुबला सा होता है, बिस्कुट जैसा, ऊपर चीज़ की लेयर होती है, और क्रंची होता है। शायद नाम मे भी कुछ क्रंची ही था। लगभग दसेक यह स्लाइस खाने के बाद वो गार्लिक ब्रेड ले आया। इस पर वो मोजरेला चीज़ लगा हुआ रहता है, और बाईट लेते ही लंबा लंबा रेसा खींचा जाता है इसका.. चबाना बहुत पड़ता है इसे। टेस्ट इसका भी ठीक ही था। मार्गरीटा बंद कर दिया है इन लोगो ने, वरना उसका टेस्ट मुझे ज्यादा पसंद है, और एक वो गोल्डन कॉर्न..! अच्छा पहली बार मेरे पिज़्ज़ा में मशरूम आया.. लोग तो खूब खाते है, पर मुझे देखकर ही उतना पसंद नही है। कारण है एक, मशरूम को गुजराती में 'बिलाड़ी नो टॉप' कहते है। मशरूम एक तरह की फंगस है। बचपन मे बिलाड़ी नो टॉप के विषय मे कहा जाता था कि बिल्ली जिधर पोट्टी करती है वहां यह उगता है। हालांकि यह एक बाल मनोरंजन की कहानी मात्र थी। लेकिन मन मे घर जाती है फिर बाते। शायद वेजिस वाली स्लाइस में था यह.. पहले तो मुझे लगा ऑलिव है। मैं खाने ही जा रहा था कि समझ आ गया कि फंगस है यह तो.. पूरी स्लाइस ही साइड कर दी, और वेटर को कह भी दिया इसे रिपीट मत करना। लेकिन उत्सुकता भी होने लगी, लोग खाते है तो क्या यह स्वादिष्ट होगा? फायदा होता होगा इसका भी कुछ? मैंने नाखून से उस मशरूम का एक रत्तीभर टुकड़ा तोड़कर चखा.. टुकड़ा तोड़ते समय जैली जैसा लग रहा था। थोड़ी हिम्मत जुटाई और जीभ पर रखा, कोई स्वाद अनुभव हुआ ही नही। दांतो में भींचा, तब कुछ जेली चबाने जैसा लगा, लेकिन मुझे समझ नही आया वो। 


पेट भर चुका था लेकिन मन नही, तो एक और चीज़ी मंगा लिया। थम्सअप के लगभग चार-पांच ग्लास गटक चुके थे। अब बारी थी आइस्क्रीम की। दो ऑप्शन थे, एक ब्रॉउनी या फिर चॉकलेटी। चॉकलेटी जाना पहचाना है, ब्रॉउनी नया था हम दोनों के लिए। अब आखिर आखिर में कहीं इस अच्छे-भले मूड की ऐसी-तैसी नही करनी थी इस लिए चॉकलेटी ही मंगा लिया। एक एक कप निगल गए। हालांकि अभी तक हम दोनों ही गले तक तो नही ही आये थे, चाहते तो दो-तीन स्लाइस और दबा सकते थे। लेकिन पौने तीन बजे चुके थे और ऑफिस भी पहुंचना था।


सवा तीन को ऑफिस पहुंच गए। और मैं फिर से एक बार कम्प्यूटर स्क्रीन पर किस से कितने लेने है उन कलमों कि केसरकयारी में टहलने लगा। शाम होते होते कुछ चार-पांच स्टाफ की सेलेरी पेंडिंग थी वे भी चुका दी। गजे ने भी उठा ली, बचा था मैं.. तो मैंने भी सरदार से कह दिया, लगे हाथ समंदर से लोटाभर मुझे भी ट्रांसफर करो ..! हो गयी बल्ले बल्ले.. घर पहुंचा तो वो दोपहर के अपग्रेडेशन का हाल जानने हॉस्पिटल चला गया। नवजात लक्ष्मी जी सो रहे थे। वापिस घर आया। अभी समय हो रहा है बारह बजकर चार मिनिट.. और अब सो जाना चाहिए। कल सुबह थोड़ा जल्दी भी जागना है।


शुभरात्रि।

(०३/०३/२०२५)


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