होली खेलने का उत्साह कम हो गया है अब तो.. मतलब अब वो पहले की तरह भागदौड़ नही की जाती। बड़ी शांति और शालीनता से एक दूसरे को रंग लगा लेते है। ना ही पक्के रंगों वाला खेल है, ना ही पानी वाला.. एक समय था जब होली में कीचड़, ग्रीस, काला ऑइल, गोबर तक लोग उड़ाते थे.. कोई बुरा भी नही मानता..! अब जैसे लोग इस मामले में सभ्य हो चुके है। बच्चे भी इस तरह की होली खेलते नही दिखते। वरना तीन चार दोस्तो ने किसी एक को टिंगाटोली (उठा लिया) न किया हो यह भी आश्चर्य ही है..
मेरा प्लान फिक्स्ड था। सुबह सुबह घर से नाश्ता करके तुरंत बेग लेकर ऑफिस। बेग में सामान पड़ा था, पार्टी का। ऑफिस पहुंचते ही कुछ पुराने कलीग भी आ पहुंचे। अभी तक मैं बिना रंग में लिप्त बिल्कुल स्वच्छ ही बैठा था। शायद मेरी पोस्ट बड़ी है, इस लिए कोई पहल नही करता। लेकिन पुराने कलीग कहाँ मानते है। ऑफिस में से बाहर बुलाकर सर में ही एक थैली गुलाल की उड़ेल दी। हम चश्मा वालो की एक यह बड़ी समस्या है। कोई कलर लगाने आये तो उसे पहले रोकना पड़ता है, अपना चश्मा उतारकर वो हाथ अलग-थलग रखते है, और फिर समर्पण कर देते है कि लगा लो..! रंगने की प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात पुनः चश्मा आंखों पर धारण करते है, और फिर दोनो हाथों से सामने वाले को रंगते है। थोड़ी लंबी प्रक्रिया है..! फिर रंग झाड़कर ऑफिस में आया, कल वाली दिलायरी पोस्ट की। और फ्रीजर में तब तक सामान ठंडा हो चुका था। मैं और गजा ऑफिस की छत पर बैठकर एक-एक गटक गए।
लगभग दस ही बज रहे थे। एक कलीग बोला आज सब्जी मैं बनाऊंगा, आप लोग यही खाना खा लेना। मैं और गजा तैयार हो गए। लेकिन गजा कुछ सब्जियां नही खाता। तो उसके लिए होटल से पार्सल लाया गया। सबसे बड़ी दिक्कत है, मैं गुजराती हूँ, और कम तीखा खाता हूं। मेरी सब्जी में मिर्ची कश्मीरी होती है, जो सिर्फ सब्जी को लाल रंग दे, तीखापन बिल्कुल ही नही। अब यह राजस्थानी आदमी ने अपने अनुसार मेरे लिए कम तीखा बनाया.. जो कि मेरे लिए तो तीखेपन की पराकाष्ठा ही रही थी। लेकिन अगले की मेहनत को बिरदाने के लिए मैंने पसीने पोंछते हुए भी खा लिया चुपचाप। लगभग दो बजे तक हमारी यह पार्टी चली थी। बहादुर का रूम हमने ढंग से बिखेर दिया था।
दोपहर को घर पहुंचा तो सब सो चुके थे। तो मैं सीधे ही बाथरूम में आधे घंटे तक नहाया। कलर छुड़वाने की तो कोई समस्या ही न थी। गुलाल के रंग त्वचा पर बैठते नही है। लेकिन जो थोड़ा ज्यादा सुरूर हो चुका था उसे शांत करने के लिए आधा घण्टा नहाया.. सुबह चित्तु सो रहा था तभी उसके दोनो गाल रंग दिए थे, और अभी वापिस आया तब भी वह होली खेलकर सो चुका था तो पुनः उसके गालों को नीला कर दिया। फिर कुछ देर सोफे पर लेटा तो आंखे घिरने लगी। नियमित दिन के बदले ऐसे दिनों में थोड़ी ज्यादा भागदौड़ होने के कारण थकान अब होने लगती है। उम्र असर कारक है। सोना था नही, क्योंकि अगर मैं दोपहर को सो जाऊँ तो रात में नींद नही आती। मैं ग्राउंड में चला गया। लड़के क्रिकेट खेल रहे थे। कुछ देर उन्हें देखता रहा। सारा सुरूर छूमंतर हो चुका था। और धूप भी बहुत कड़क थी। लड़के फिर भी क्रिकेट खेलते है ऐसी धूप में। मैं वापिस घर आया, एकाध चाय पी, और चित्तु को सायकल पर चक्कर लगवाया। फिर शाम को दुकान पर कुछ देर बैठा।
हुकुम के एक मित्र, जो कि मेरे हमउम्र है, उनके घर पर रिनोवेशन का काम करवाने का है, तो मैं उनके वहां गया। tiling वगेरह का तो ऑर्डर दे चुके है, और फिर छत पर प्लास्टर से लेकर दीवारों पर tiling का काम हम लोग डिस्कस करने लगे। उनके वहां आया हुआ मिस्त्री थोड़ा सही और सस्ता भी लगा मुझे। मेरा विचार है मेरे घर की छत पर एक रूम बनवा लू। वैसे विचार मेरा नही है, हुकुम का है। उनका मानना है कि छत पर एक रूम बना लिया जाए, और उस रूम की छत पर सोलर पैनल लगवा ली जाए। साल भर बिजली के बिल की बचत हो जाए। प्लान तो अच्छा है, लेकिन मेरा विचार उनसे बिल्कुल ही विपरीत था, है। मेरा विचार है, एक नया प्लाट खरीदकर उस पर नया मकान बनाने का। लेकिन मेरे विचार और हुकुम के विचार के बीच तफावत का मूल्य बहुत बड़ा है, मेरा विचार पड़ेगा पैंतीस लाख में, हुकुम का विचार पड़ेगा पांच लाख में..! इन दोनों विचारों के बीच तफावत कुछ ज्यादा ही है.. इस लिए हुकुम का मानना है / कहना है, 'बेटमजी, हमने तो जहां हाथ-पांव मारने थे मार लिए। तुमसे न हो पाएगा।' और बात भी सही ही लगती है अब तो मुझे भी।
खेर जो होगी वह देखी जाएगी।
ठीक है फिर, शुभरात्रि।
(१४/०३/२०२०५)