यदि युद्ध होता है तो कंगाल पाकिस्तान का जाएगा क्या?
आज भी तुम्हे बताने लायक कुछ नहीं हुआ है प्रियंवदा ! वरना तो अभी तक मेरी कलम भूमिका बांधने में व्यस्त हो चुकी होती। आजकल रात को देर तक ग्राउंड में बैठने जाता हूँ। ज्यादातर या तो रील्स देख रहा होता हूँ, या फिर कोई गेम या पत्ते से बकैती..! सुबह उठकर वही भागो दौड़ो जीवन को खर्च करो..! सुबह फिर से अस्पताल गया था, लेकिन सरकारी तंत्र तारीखे देता है। लेकिन आज डॉक्टर से मुलाक़ात जरूर हुई। उसने समझाया, ठीक लगा।
दोपहर ग्यारह बजे ऑफिस पहुंचा, काम मेरी ही राह देख रहा था शायद, मेरे पहुँचते ही घेर लिया मुझे। फिर वही दिनभर कंप्यूटर से मोबाइल, मोबाइल से कंप्यूटर..! कुछ देर खाली समय मिला, यूट्यूब पर एक चैनल पर गलती से चढ़ गया, पुरे चैनल में हॉर्स राइडिंग के अलावा कुछ नहीं था, फिर भी मैंने सारी नॉलेज ली, पता नहीं कहाँ काम आएगी? क्योंकि एक बार घोड़े पर बैठ चूका हूँ मैं, और उसकी किश्ते अभी तक चूका रहा हूँ। मजाक छोड़कर वास्तव में अश्व को एक देवप्राणी का दरज्जा मिला हुआ है। जैसे गाय को देवतुल्य मानते है हम। वैसे ही अश्व को भी.. क्योंकि इस एक पशु ने क्या क्या नहीं किया है? प्राण लेने से लेकर प्राण न्यौछावर करने तक का... अपने स्वामी के आघात में भोजन छोड़ देता है यह पशु.. अश्व को पूर्ण नर भी माना जाता है, क्योंकि नर अश्व के निप्पल्स नहीं होते। यह मैंने कहीं पढ़ा था। लेकिन आज इस अद्यतन युग में यह पशु अब बस शौक के लिए ही पाला जाता है, क्योंकि इसका पालन पोषण ही बड़ा महंगा है। वैसे अश्व किसे पसंद नहीं आते होंगे.. एक रुआबदार प्राणी है यह। इस पर कई सारे संशोधन हो चुके है। सौराष्ट्र में तो एक अलग नस्ल ही तैयार हुई थी, 'काठियावाड़ी'। ऐसी कहानी है कि एक दिन समंदर किनारे एक दैवताई मादा अश्व उतरी थी, और उससे पूरी एक अलग नस्ल तैयार हुई वही काठियावाड़ी। लेकिन काठियावाड़ी अरबी से थोड़ी मिलती है। आजकल बस शादियों में घोड़ी नाचती है, किसी दिन युद्ध मैदानों में बहादुरी दिखाती थी। कुछ होशियार लोग उसे इतनी तालीम देते थे कि आवाज पर ही पिछले पैर से लात मारती, तो कभी इशारे मात्र से ही हाथी के दंतशूल पर पैर टिका देता यह प्राणी। चेतक कितना प्रसिद्ध था, चांगी, माणकी, कई सारी अश्वकथाएँ बड़ी प्रसिद्द है।
वह समय बीत गया।
जैसे आजका दिन सरक गया.. सुबह से कोई नयापन भरा कुछ भी नहीं हुआ। न ही कुछ लिखने कि प्रेरणा मिली है। स्नेही से कोई गंभीर मुद्दा मिल नहीं रहा आजकल, कविताएं तो बिता युग हो चूका। देखता हूँ, शाम को शाखा में गया, और कुछ मन को झकझोर जाए ऐसी बात हो जाए तो अच्छा। जहां तक अनुभव है, आज पहलगाम का ही मुद्दा रहेगा। पहलगाम से याद आया, उस सिंधु समझौते के बाद पाकिस्तान कि ओर से कुछ उठापटक हुई है, लेकिन अपने पर लागू हो नहीं पायी उतनी.. वैसे भी वो आटा-लेस क्या ही कर पाएगा? फिर भी उस बन्दर के पास न्यूक्लियर बम है, मरता क्या न करता? सनकी किसी दिन फेंक न दे.. बड़ी मुश्किल से इन सब में उलझे बिना भारत पांचवी बड़ी अर्थ-व्यवस्था बना है। युद्ध में उलझना अभी पोसाएगा नहीं। ओहो ! मैं भी गिनती करने लगा हूँ। जबकि मैं तो उनमे से था जो काम करने के बाद पछताते है कि यह नहीं करने का था। मैं भी साहब के नक़्शे कदम सोच-विचार करने लगा हूँ।
वैसे सोचने में क्या जाता है...
यदि युद्ध होता है तो कंगाल पाकिस्तान का क्या जाएगा? जमीन... लेकिन वहां की मूर्ख प्रजा भी तो हमे मिलेगी.. जो दिलो में मदरसा से सीखी हुई नफरत पाले हुए है। नफरत तो अपने वालो में कहाँ कम है? वसुद्वैव कुटुंबकम कि बाते जरूर कर लेते है। हम शायद कुछ ज्यादा ही अतीत से गौरान्वित होकर जीते है। किसी दिन पर कुछ थे, उस ख्वाब से बाहर निकलने का मन नहीं होता किसी का..! आज क्या है? फाइटरजेट के इंजिन इतने वर्षो में नहीं बना पा रहे है। UPI को छोड़कर ऐसी कोई वर्ल्डक्लास इन्वेंशन अपने यहाँ आज नहीं हो रही। हाँ, इन्वेंशन के नाम पर चीज़ और बटर मिलाये फ़ूड डिशेस खूब बन रही है। ज्यादा से ज्यादा स्विगी जोमेटो टाइप चेन्स बनी है, उससे क्या बदलाव हुआ? उल्टा आलस बढ़ी है लोगो में.. कुछ दिन पहले ही एक ही सोसायटी की एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग तक की डिलीवरी का विडिओ वायरल हुआ था.. हाँ कुछ लोगो को रोजगार जरूर मिला, लेकिन प्रगति कितनी हुई? डीलीवरीबोय कोई वर्ल्डक्लास स्किल्ल्ड प्रोफेसन हुआ? दुसरो को देखकर तो AI बनाने की शुरुआत कर रहे है हम.. छठे जनरेशन के फाइटरजेट्स घूम रहे है पडोसी के आकाश में..! अपन शादी के ड्रोन भी उससे खरीदते है।
भाई भाई प्रियंवदा, बात बड़ी दूर तक नहीं चली गयी अचानक से? चलो जाने दो, बाकी कल देखेंगे, आज के लिए तो शुभरात्रि।
(२५/०४/२०२५)
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