सहिष्णुता: भारत की आदत या मजबूरी?
सहिष्णुता.. सीधा अर्थ है असहमति के साथ समझौता करना.. बस लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए...! कहीं सुना है बहुमति प्रजा सहिष्णु है? भारत के अलावा? मुझे कभी कभी समझ ही नहीं आता, फिर लगता है भारत में भी इजराइल बनेंगे..! विचारणीय बात है, आज बांग्लादेश में जो हो रहा है उसे देखकर छप्पन की छाती सिकुड़ क्यों रही है? इस्कॉन संस्था मुझे तो बिलकुल पसंद नहीं है लेकिन बांग्लादेश में इस्कॉन के साधु चिन्मय दास को उठाकर जेल में डाल दिया तब भी सरकार बस दो शब्द ही कह रही है? क्या तुम्हारा हिन्दुत्ववाद सिर्फ भारतभूमि तक सिमित है? फिर वसुधैव कुटुंबकम की बात मत किया करो..!
बांग्लादेश में इस्कॉन साधु पर अत्याचार
अरे एक न्यूज़ सुनी, बांग्लादेश में जिसने चिन्मयदास की बेल के लिए वकालत करनी चाहि उस वकील को कूट दिया गया, उस वकील का चैंबर तोड़ दिया गया.. इस्कॉन जब यह कह रहा हो कि चिन्मयदास ने जो कुछ कहा होगा वह उनके अपने शब्द है, इस्कॉन उनके शब्दों का समर्थन नहीं करता.. सोचो तो सही इस्कॉन पर कितना दबाव होगा? कोई वकील यूनियन के प्रमुख ने कहा है कि चिन्मयदास का केस कोई वकील लेगा तो वह कूटा जाएगा, और उसे बॉयकॉट किया जाएगा.. यही है तुम्हारी लोकतान्त्रिक पद्धति...? हमारे यहाँ अजमल ससुराल में आए दामाद की तरह कई साल तक रहा था, उस अपराधी के लिए भी वकील खड़े थे।
भारत में बढ़ती हुई बाहरी भीड़ और पहचान का संकट
अनपढ़ लोग है वहां.. छात्र कहते है खुद को.. और दीखते अधेड़ से भी ज्यादा उम्र के है। मुझे लगता भारत सरकार को अब खुला हस्तक्षेप करना चाहिए। यहाँ मजदूरी करने आए आसामी ओ में कितने वे सीमापार के टिड्डे है किसे पता? ज्यादा नहीं, दस साल पहले तक हमारे शहर की मस्जिद पर शुक्रवार की दोपहर को मैंने कभी भीड़ नहीं देखि थी.. लेकिन जब से यह कथित आसामी आए है, मैं शुक्रवार को दोपहर को बाजार जाता हूँ तो छोटे भाई का पायजामा और बड़े भाई का कुरता पहने कई लोग रोड पर छकड़े/रिक्शा के इंतजार में खड़े पाए जाते है। छोटी कद-काठी और लम्बी दाढ़ी.. काश यह लोग वास्तव में छात्र होते हुए पढ़ लेते.. तो आज हमारे यहाँ लकड़ियां न उठा रहे होते। आजकल शुक्रवार को जाम लगता है वहां। लोकल तो वहां कोई ही होगा, ज्यादातर यह बाहरी पब्लिक ही भीड़ करती है। जिनके पास पैसे है उनमे कट्टर-धार्मिकता कम होती है, इतने में समझ जाना बेहतर है। और हम तो है ही सहिष्णु...
मेरा हाथरूमाल / नेपकिन गलती से किसी कलर छोड़ते कपड़े के साथ रहकर जैसा संग वैसा रंग को सार्थक करते हुए हरा हो गया। देखो मुझे कलर से इतना फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जगन्नाथ के मंदिर से मैंने लाल तिलक किया, और गलती से रुमाल पर कुमकुम की एक बूँद गिरी। अब पुरे हरे रुमाल के बिच में एक लाल वर्तुल, ऐसा रुमाल रखने में थोड़ी असहजता लगती है, तो अब उससे में बाइक के टायर पोंछता हूँ। अपने यहाँ गाय बहुत पवित्र पशु है, तो गाये तो लोगो ने सम्हाल ली लेकिन खूंटे (बैल) यहाँ वहां खुले घूमते रहते है बेचारे, जो मिले खा लेते है, और यहाँ-वहां गोबर कर देते है। अब कभी कभी बाइक का टायर उनपर से चलता है, तो उस रुमाल को गोबर से पवित्र कर लेता हूँ। यह तो मेरा पडोशी का लड़का कल बोला की यह आपका रुमाल तो किसी देश के झंडे सा लग रहा है, तो अब उससे टायर नहीं पोंछता। सोचता हूँ ऑफिस की डोरस्टेप-मेट पुरानी हो गयी है, बदलनी पड़ेगी...
कनाडा में खालिस्तान – एक विडंबनापूर्ण हास्य
इनके जैसे ही एक और जाहिल है। सिख-सरदार जैसे दीखते है, लेकिन सिख है नहीं। रिक्तस्थान चाहिए उनको... रिक्त मतलब खालिस्तान। यहाँ तो मिला नहीं, गधो ने केनेडा में मांग लिया। अक्ल के अंधे, पागलखाने में खाने का मेनू मांग रहे है। अबे तुमको यहाँ खालिस्तान चाहिए, और तुम मांगते हो केनेडा में बैठकर, यहाँ आओ यार। वहां अभी तुम गोरो को शायद पूरा जानते नहीं हो बे। गोरे किसी दिन सटक गए न तो खाली छोडो, तुम्हारा भरा हुआ घर ले लेंगे.. लगा देंगे चोरबाजार में, मतलब लन्दन म्यूज़िम में। इनकी जाहिलियत का उदाहरण बिच में खूब वायरल हुआ था, गधे केनेडा में गोरो को ही कह रहे "जो बेक टू यूरोप..." मजे तो पुरे देते है वैसे ये लोग..!
ठीक है फिर, अपन तो यही चाहेंगे की यह जो शांतिदूत है वे वास्तव में शांतिदूत बने, नाममात्र के न रहे। छात्र है तो पढाई करे, पॉलिटिक्स नहीं। और हो सके तो जरा से जहन्नुम में चले जाए।