दिलायरी | जब बैगन से बैर हुआ और प्रयागराज बुलाने लगा
प्रियंवदा !
तुम्हे पता है मैं तुम्हारे नाम से ही शुरुआत क्यों करता हूँ? क्योंकि यह किरणों सी कलम का प्रेरणास्त्रोत आदित्य सी तुम हो। शुभ शुरुआत की शुभ तुम हो। मेरे शब्दों की तारणहार तुम हो। मेरे विचारो का विस्तृतीकरण तुमने किया है। फिर मैं तुमसे ही शुरुआत क्यों न करूँ?
संत श्री क्लॉस, सोमवार और इंस्टा रील्स
वैसे आज संत श्री क्लॉस का दिन था। लेकिन अपना ऑफिस नियत समय को ही था। वही घिसीपिटी दिनचर्या। सुबह उठो, भागो, और ध्येयप्राप्ति तक लगे रहो। फ़िलहाल का ध्येय अर्थ है। कल की दिलायरी लिखते हुए रात्रि का एक बज गया था, तो सुबह आठ से पहले तो आँख ही नहीं खुली। दो-तीन बार तो मैंने ही एलार्म बंद किये थे, लेकिन बंद के बदले स्नूज़ हुए उन्होंने भी प्रति पांच मिनट मेहनत की पर अपने घोड़े बिक गए थे तो जागना जरुरी नहीं समझा। जब नौ बजे तक ऑफिस पहुँचने का ख्याल हावी हुआ तब आठ बजे उठा, और बड़ी जल्दी जल्दी तैयार होना पड़ा। फिर भी साढ़े नौ तक नाश्ता हुआ। और पौने दस को ऑफिस। वैसे काम तो था नहीं आज दिनभर। फिर भी छोटे मोठे हिसाब निपटा दिए। और लगे इंस्टा की रील्स में।
प्रयागराज की ओर: कुम्भस्नान का मोह
एक स्नेही ने कहा, "महाकुम्भ होने वाला है, कुम्भस्नान कीजिए।" और वास्तव में मैं सोच में पड़ गया, पाप का घड़ा काफी समय से भर रहा है, गंगास्नान एक बार कर तो लेना चाहिए। फिर क्या? गूगल किया, "how to reach prayagraj from my city.." अगले ने तीनो ऑप्शन दिए। ढेर सारी ट्रेन की लिस्ट दे दी, और मानो कह रहा हो, अपनी औकात के अनुसार पसंद कर ले। समस्या यह है की अपन को ट्रेन के सफर का अनुभव ही नहीं है। एक ही अनुभव है और वो भी first impression is the last impression वाला मामला हो गया था।
ट्रेन, कार और "अभिगम परिहार" संघर्ष
तब से आजतक अपन कभी बैठे नहीं इस बला में। फिर एक एजेंट दोस्त को फोन मिलाया, बोला, "मत जाओ, बहुत भीड़ होगी।" फिर सलाह भी उसी से ली कि, बायरॉड कार से कैसा रहेगा?" वहां भी उसने हामी नहीं भरी। रिटर्न ३२०० किलोमीटर की ड्राइव है। मुझे तो समस्या नहीं है ड्राइविंग से, लेकिन जब ऊपराउपरी मनाही हो रही हो फिर फैंसला अभिगम परिहार में चला जाता है। फिर डायरेक्ट ट्रेन्स वगैरह खुद से ही सर्च की, सब कुछ प्लान बैठा दिया फिर याद आया, उन तारीखों में पहले से शादियों के प्रसंग में हाजरी देनी पड़ेगी। अभी अभी ख्याल आया, जनवरी में नहीं जा सकता, फरवरी तो खाली पड़ा है। ६ फरवरी के बाद हो सकता है। यह कैलेंडर में सेट कर लूंगा अभी।
जब बैगन सामने आया: साहित्यिक गुस्सा
दोपहर को बिहारी के छोले समोसे से जठराग्नि को प्रदीप्त किया, और दोपहर बाद कुछ भी नहीं किया, चार पंक्तियाँ वसन्ततिलका में लिखी है जो ऊपर शायद आपने फोटो में पढ़ ली हो। बाकी छुट्टी जैसे दिन में ऑफिस में पड़े रहने में क्या ही नयापन आए? अभी पौने आठ हो रहे है, और घर पर बना है भरथा, मेरे जन्मजात शत्रु करेले का बांया हाथ बैगन.. मेरा बस चले तो बैगन की चोटी पकड़कर पटक पटक कर पृथ्वी से नामशेष कर दूँ। फिर जिन्हे बैगन पसंद हो उनकी भावना को आहत न करने का ख्याल भी आ जाता है।
खेर, अभी हो रहे है सवा दस। आसमान में आज सितारे दिख रहे है। गुरु ग्रह ठीक ऊपर है शायद। अग्निशिखाएँ थोड़ी मंद है। अंगारे धधक रहे है। अरमानो के नहीं, असली वाले। हाँ ! बताना पड़ता है। थोड़ा साहित्यिक शब्द है "अंगारो का धधकना"..
चलिए फिर, आज्ञा दीजिये.. कल फिर दिलायरी में कुछ दिलधड़क हो उसके लिए सोना तो पड़ेगा।
(२५/१२/२०२४)
|| अस्तु ||
इस पर विस्तार से यहाँ पढ़िए — जब मन कहे हाँ, और डर कहे ना।
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