2024 की रात और प्रियंवदा: डायरी
प्रियंवदा.. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अंतिम दिवस पर आज तुम्हे ही याद कर रहा हूँ। 2024 के दिसम्बर की 31 तारीख की रात्रि है, और अभी रात के दस बज रहे है। हर तरफ आज लगभग पार्टियां ही चल रही है। मैं.. मैं कहीं नही गया। मुझे तुम्हारे बाद ऑफिस से आकर्षण है, उसके बाद नशे से। वैसे आज सूफी हूँ। मंगलवार है इस लिए नही। आज दोपहर तक तो खूब इच्छा थी, लेकिन फिर पता नही क्यों इच्छा ही खत्म हो गई। 2024 कोई इतना अच्छा नही गया है वैसे भी।
खर्चों की सीख और पुरुषत्व की परछाईं
जीवन दो तरीके से जीया जाता है प्रियंवदा। एक अपनी इच्छा के आधीन, दूसरा नियति या समय के आधीन। आसान तो दोनो ही नही है पर शायद इच्छा के आधीन जीना थोड़ा ज्यादा संघर्षपूर्ण है। क्योंकि इच्छा की आपूर्ति के लिए प्रयत्नशील होना पड़ता है। और प्रयत्न के लिए साहस लगता है। साहस को पुनः इच्छा ही बल देती है। मेरी ही बात करूं यदि, तो मेरे लिए तो यह वर्ष नियति के आधीन गया है। मेरी इच्छाओं के अनुसार नही। जनवरी में कुछ दिन गांव वाली जिंदगी का लाभ मिला। फरवरी उस लाभ का आर्थिक भरपाई करने में गुजरा। मार्च में इस जीवनाधार फोन का खर्चा करना पड़ा, अप्रैल में मोटरसायकल का। अप्रैल में हुए रुपाला विवाद के चलते भाजपा से मोहभंग भी हुआ।
मे महीने में एक इच्छा का अनुसरण अवश्य ही हुआ। वोट देने के तुरंत बाद सहपरिवार सोमनाथ के दर्शन, तथा गिरनार आरोहण का लाभ हुआ। बस भगवान सोमनाथ की ऐसी कृपा हुई कि जून, जुलाई, अगस्त लगातार किए खर्चे फोन, बाइक और ट्रिप की बनी खाई भरने में लगे। अगस्त में फिर से एक छोटी सी बाइक-ट्रिप जरूर लगी। और अगस्त से ही मुझे एक मेरा नियमित पाठक भी मिला। सितंबर और अक्टूबर भी खर्चे वाले ही गए। इसी कारण मेरा दीवाली पर निश्चित महाराष्ट्र रोड मैप ठंडे बक्से में चला गया। दीवाली तो आई और गई। नवम्बर में कुछ भी नया न हुआ। और दिसम्बर… इसकी क्या कहूँ.. इसे तो काटा है। आज यह रात्रि भी कट जाएगी। कल से बदलता कैलेंडर मेरी इच्छाओं को मुझ तक ले आए यही आशा है।
लेखनी, प्रियंवदा और एक नई नियमितता
2024 में और कुछ खास तो नही हुआ। लेकिन हाँ, लिखने में कुछ बढ़ोतरी अवश्य ही हुई। कारण है प्रियंवदा। गजा और प्रीतम के पश्चात प्रियंवदा के ख्यालो ने इस लेखनी को एक बड़ा धक्का दिया। पिछले कुछ महीनों से तो यह बिना रुके ही चली है। एक नियमितता बन गई है। कारण.. कारण है प्रियंवदा की डायरी के कुछ पन्ने.. प्रेरणा बन गए मेरे लिए। (जैसे गजा, और प्रीतम(पत्ता) नाम के कई सारे व्यक्ति है, वैसे ही प्रियंवदा भी है।) yq पर प्रतिदिन लिखता था, मन पड़े वह लिख देता। yq छूटने के बाद नियमितता भी गई, लेकिन लगभग अगस्त से पुनः एक नियमितता लौट पायी, श्रेय सारा प्रियंवदा को।
सोशल मीडिया, सिगरेट और सूफीपन
मैदान में बैठना, प्रियंवदा को संबोधित करते कुछ न कुछ ख्याल लिखना.. सिगरेट्स, प्रेम को कोसना.. रिल्स देखना, और हाँ, दो बेकार सी पंक्तियां लिखकर इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते रहना, सिगरेट छोड़ देना, सर्दियां आते ही आग सेंकना, स्टोरी लगाना, फिर से सिगरेट किसी किसी दिन पीना.. यही नियति है शायद.. क्योंकि इच्छाएं तो कुछ और ही है जो मैं व्यक्त कर नही सकता यहां। खुली डायरी है, लेकिन निजता नामका भी कउनो चीज है वो हम जानते है।
प्रियंवदा.. पुरुषत्व का एक पड़ाव भी है। जब उसे खर्चे समझ आने लगते है। बचपन मे बापूजी को कई बार बेवजह गुस्सा करते भी देखा था। वह अब मुझे भी समझ आता है। जब कभी खुद की इच्छाओं को दरकिनार करना पड़ता है, वह पुरुषत्व की झुंझलाहट अवर्ण्य है। शाब्दिक ढांचे में उसे पूरी तरह नही ढाला जा सकता। इस 2024 में कई बार तंगी अनुभव हुई, क्योंकि खर्चे बेहिसाब किये थे। कोई प्लानिंग नही, कोई रोडमेप नही.. बस नियति के भरोसे चल दिया।
फोन का डेटा मिटा, पर स्मृतियाँ नहीं
फरवरी में जब एक शादी में अचानक ही पिछला फोन बंद हो गया, सारा डेटा समेत, तब तो लगा था जैसे लंका ही लूट चुकी हो। लेकिन कभी कभी पिछला डेटा मिट जाना अच्छा होता है, ताकि आप किसी एक ही तमगे को लिए बैठे न रहो। पिछली कहानी मिट जाने से, बिसर जाने से ही नई कहानी निर्माण होती है। हाँ वह पिछली कहानी याद जरूर रहती है, लेकिन नई भी अच्छी बन सकती है। सम्भावना। नियति। या फिर इच्छा।
बीते वर्ष में सीखने को क्या मिला? यही की प्लानिंग कितनी जरूरी है, पैसा कितना जरूरी है, उससे भी बढकर समय आने पर पैसा कितना जरूरी है। प्रेम? वो तो खरीदा जा सकता है, बहलाया जा सकता है, फुसलाया जा सकता है, दगे से भी हांसिल किया जा सकता है। प्रेम में आंसू ही बहते है। लेकिन लेकिन पैसा, वो तो जोड़-जोड़कर ही बनता है। पैसे में आंसू के साथ साथ खून - पसीना भी बहता है। दोनो अपनी जगह पर अपना मूल्य रखते है, लेकिन यह मेरा दृष्टिकोण है। आपके दृष्टिकोण से मिलता हो यह जरूरी नही है।
2025 के लिए संकल्प: मर्यादित नियंत्रण
पैसे से प्लॉट खरीदा जा सकता है, प्रेम से झोंपड़े में महल 'मानना' पड़ता है। वैसे झोंपड़े के लिए भी पैसे तो लगते है। क्योंकि मुफ्त में तो दुनिया जहर भी नही देती। इस लिए 2025 में मुझे एक बात तो तय है कि खर्चे पर एक मर्यादित नियंत्रणरेखा चाहिए मुझे। क्योंकि तंगी के कोडे खाने से अच्छी है नियंत्रण की चिमटियां। क्योंकि मेरा शुरू से मानना यही रहा है जो करो वो अनियंत्रित। एक्सट्रीम।
जीवन का हिसाब-किताब और जीएसटी का मज़ाक
प्रियंवदा, आज के दिन तो शायद सरकार भी 31st माना रही हो ऐसे e-invoice तथा e-waybill की साइट ही बंद हो गयी। एकॉन्ट्स के ग्रुप में धमाल मच गई। नौकरी करने वालो को भी जैसे सरकारी छुट्टी मिली। शाम का समय ही जैसे सरकार ने एलॉट किया हो, दो-दो लिटल लिटल लगाने के लिए। लोग खूब मजे ले रहे थे। एक व्यक्ति का फोन आया, वो तो यूँ कन्फ्यूज़ हुआ कि आज बिल बनाया है, लेकिन e-invoice बना नही, वो कल बनेगा, तो यह बिल आज की तारीख में गिना जाएगा या 1 जनवरी में?
वैसे अच्छा है सलाह-मशवरा कर लेना। क्योंकि आजकल GST में छोटी - मोटी भूल पर भी पांच- साढ़े पांच हजार के चालान भरने पड़ते है। यह सब तो चलता रहेगा, लेकिन आज संध्या भी क्या खूब खिली थी। क्षितिज पर लालाश.. जैसे रातभर जागने हुई आंखों में लाल रेखा.. तापमान के कारण उड़ते विमानों के पीछे जैसे रेखा खींची गई हो। लो.. जी.. पटाखे फूटने लगे। लोग दिवाली मना रहे है। ठीक है, तुम्हे भी यह नया साल मुबारक..
और मुझ स्वयं को शुभरात्रि..!
|| अस्तु ||
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आपका 2024 किसके साथ बीता? इच्छा या नियति?
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nice 👍✨
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