पार्टी का व्याकरण: नशे, मर्यादा और समाज का आईना
प्रियंवदा, आज तो सुबह सुबह जगन्नाथजी बड़े व्यस्त थे। कई सारे लोग उमड़ आए थे दर्शन हेतु। घर से पहला स्टॉप जगन्नाथ, फिर वहां से एक दूकान, और फिर ऑफिस। यही डेली रूट है। लोग लगभग आज तो जल्दी जागते नहीं। रातभर झूमे सवेरे जल्दी कैसे जगे? वैसे मैं भी नहीं जागता हूँ। लेकिन इस बार कोई भी पार्टी-शार्टी की नहीं थी इस लिए सलाह देनी आसान लगती है। अच्छा, ऑफिस पहुंचा तो मिल चालु थी। आशा तो नहीं थी, क्योंकि हरबार 31st को लेबर नाभी से गले तक देशी ठूँसती है। और पहली तारीख को आराम करती है।
लेबर, बिलिंग और ऑफिस में अकेलापन
एक प्रयाग की गाडी खड़ी थी, दोपहर तक तो मशीनों ने जोर किया, दोपहर बाद बिलकुल ही सन्नाटा। दोपहर तक बिल्लिंग्स वगैरह चला। तीन बजे देखा तो लेबर नए कपड़ो में पहचान में ही ना आए। निकल लिए सारे बाजार घूमने। अपन अकेले ऑफिस पर २-३ गाड़ियों के बिलिंग्स निपटाने बैठे रहे। शांत मिल का माहौल ही अलग होता है। ऊर्जाहीन अनुभव होता है। घोंघाट की एक आदत ही लग गई है। इतनी शान्ति की आदत भी नहीं है। अभी सात बज रहे है शाम के। और यह कुछ मनघडंत लिखने बैठा हूँ। दोपहर को प्रीतम से बात हो रही थी, पार्टियों के मजे सुना रहा था। स्टोरी-स्टेटस में भी सबके यही हाल था, कोई बर्फ के लुत्फ उठा रहा था, कहीं डांस पार्टी थी, कहीं सोमरस की सुन्दर सी बोतल खुली थी, तो कहीं किसी होटल और केक कटिंग्स चल रहे थे। पार्टी ही चल रही थी।
पार्टी शब्द का सामाजिक और भाषिक विस्तार
पार्टी का हिंदी अर्थ निकाले तो प्रीतिभोज से लेकर राजनैतिक दल तक इसका विस्तरण है। अपने यहां तो दो मित्र बैठकर दारू पीए तब भी पार्टी की कहा जाता है। और बड़ा सा भोजन समारम्भ हो तब भी पार्टी ही कही जाए। जन्मदिन से लेकर तमाम हर्षोल्लास के प्रसंग में पार्टी मांगी जाती है, दी जाती है। इतना अच्छा है कि किसी के मृत्युभोज को पार्टी नही कहते। लड़को में तो पार्टी फिक्स्ड है, नौकरी लगी - दारू पार्टी, लड़की से सेटिंग हुई - दारू पार्टी, ब्रेकअप हुआ - दारू पार्टी, मोबाइल लिया - दारू पार्टी, पार्टी के लिए बस बहाना चाहिए। कई बार बहाना भी नही चाहिए होता है पार्टी करने के लिए।
पार्टी का मकसद..! अभी कहा ना, लड़को को तो पार्टी के लिए कोई भी मोटिवेशन, मकसद चाहिए ही नही। लड़कियां पार्टी के नाम पर कुछ नाश्ता करेंगी और चुगलियां। औरते किट्टी पार्टी करेंगी, और चुगलियां..! पार्टी वैसे एक से ज्यादा लोग हो तभी हो सकती है, क्योंकि अकेले अकेले करो तो उसे self-ट्रीट कही जाती है आजकल। खेर, हकीकत में तो पार्टी या दावत, या प्रीतिभोज में कुछ खास प्रसंगों में भोजन कराने का महत्व था। लेकिन धीरे धीरे इस प्रसंग को रोचक बनाने के नाम पर, या फिर अमीरों ने अपनी अमिरियत दिखाने के चक्कर मे बहुत कुछ जोड़ा।
प्राचीन काल से अब तक: भोजनों की संस्कृति
सत्यनारायण का शीरा (हलवा) भी एक तरीके से पार्टी ही हुआ करती थी। भोजन कराने का महत्त्व अपने यहाँ तो बहुत पहले से था। मद्य का सेवन भी बहुत पहले से ही चला आ रहा है। अपनी ख़ुशी बांटने के लिए भोजन कराना, या फिर कुछ वस्तुए बांटना। जैसे कोई राजा राजतिलक के पश्चात राजगद्दी पर बैठता है तो उसके सामंत, तथा कुछ नगरश्रेष्ठी या प्रजागन भी राजा के लिए भेंट-सौगात ले जाते।
राजा को जब वह भेंट दी जाती, तब राजा उस भेंट पर अपना हाथ लगाकर उसे जो लाया है उसे ही वापिस कर देते। और फिर पुरे नगर को सामूहिक पार्टी देते, मतलब भोजनादि की व्यवस्था। अब समय बदल चूका है, अब एक भेंट दो, तब तुम्हारे प्रसंग में तुम्हे भेंट मिलेगी। रमेश की बर्थडे पार्टी में सुरेश ने ५०० रुपये लिफाफे में दिए थे, तो सुरेश के प्रसंग में रमेश ५०१ ही देगा। एक हाथ दे, एक हाथ ले वाला सिस्टम। अब तो पार्टियों में उससे भी ज्यादा आगे बढ़ गए है। लिफ़ाफ़े में ५०० डाले हे तो भोजन की सारी आइटम्स में वसूलने भी तो है।
रील्स और बर्बादी का नशा: नये साल का चेहरा
एक बात तो तय है की खुशियां बांटने से बढ़ती है। लेकिन अब इन खुशियों को भी कई लोगो ने धंधा बना लिया है। एक पार्टी के आयोजन में टेंट्स, म्यूसिक सिस्टम, लाइट्स & डेकोरेशन, फ़ूड आइटम्स, तथा ड्रिंक्स इत्यादि तो होता ही है। अब इन सब के अलग व्यक्तिओ से संपर्क करना है, उनके चार्जेस का कम्पेरिज़न करना। बड़ा दायित्वपूर्ण हो चूका है पार्टी देना लेना। अभी यह 31st गया, रील्स में रुझान आ चुके है। कोई बिलकुल ही धुत्त होकर पुलिसवालो को सलामी मार रहा है। कुछ लड़किया छोटी ड्रेस में है, और चल भी नहीं पा रही। कुछ लड़के जमीन पर केंचुए की माफिक रेंग रहे है। कुछ लड़ रहे है, लेकिन नशे के कारण उनके मुक्के-लात हवा-फायर ही हो रहे है।
और वो सदाबहार डायलॉग, 'तू मेरा भाई है'... देखो पार्टी करनी तो चाहिए, लेकिन एक मर्यादा भी होनी चाहिए। यह नहीं कि कुत्ता मुंह पर मूत जाए और पता न चले। पार्टी के नाम पर दारु जितना फेमस तो शायद कुछ भी नहीं है। ठीक है यह लाऊड म्युज़िक, और रंगबिरंगी लाइट्स पर झूमना, और गला बैठ जाए इतना चिल्लाना अपनी जगह है। लेकिन दारु का असली मजा तो, सर्दी की ऋतु हो, खुला मैदान, या शांत जगह हो, धीमी आंच की अग्नि प्रज्वलित हो, कोई सूफी, या धीमे लय का म्यूजिक बज रहा हो। और एक एक घूंट पी जाए। कुछ यार दोस्त हो, और रसप्रद बाते, इसे कहते है एन्जॉयमेंट, या पार्टी। या फिर वह शादी वाला प्रीतिभोज। खाओ, कवर दे आओ, और घर जाओ।
नशे की मर्यादा और जीवन का संतुलन
वो नशे वाली पार्टी उनके लिए बनी ही नहीं है, जिन्हे जीवन जीना है। अमर्यादित नशा कभी जीवन बनाता नहीं, बिगाड़ता है। और वैसे भी नशा तो मर्यादित क्या और अमर्यादित क्या? दोनों ही खराब ही है। क्योंकि नशे में एक व्यक्ति नहीं उसका पूरा परिवार भुगतान करता है। लेकिन यह जो शोऑफ किया जाता है न कि मैंने पी है, वो बड़ा गलत है। कुछ हुशियार होते है। पी-पाकर ऊपर रजनीगंधा, या इलायची चबा लेते है। किसी को कानो कान.. नहीं.. नहीं.. नाकोनाक खबर नहीं होने देते। कुछ और लाक्षणिक होते है। चुपचाप पीया, खाया और सो गए।
देखो पार्टी में किसे जाना चाहिए, और किसे नहीं, वह व्यक्तिगत मामला है। लेकिन इतना तय है की व्यक्ति को अपनी मर्यादा, सीमा अवश्य ही ज्ञात होनी चाहिए। वरना दारु तो ऐसी चीज है की आज पी है, तो कल पूरा शरीर दुखाती है। फिर हैंगओवर मिटाने के लिए एक पेग और लगता है। क्या मतलब, दर्द की दवा भी दर्द ही है। छोडो यार, लगता है बहुत इधर उधर बात चली गई है।
आज फिर शाम होते होते बड़ा ही कंटाला चढ़ चुका था। मिल बंद थी, साढे सात को ही घर निकल गया था। खाना-पीना निपटाकर उठा तो आज मैदान जाने की इच्छा भी नहीं थी। बेड पर पड़ा पड़ा यह लिखते हुए कब नींद आ गई पता ही न चला।
|| अस्तु ||
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