प्रियंवदा, सुबह साढ़े चार के आसपास निंद्रा कैद करने लगी थी। लेकिन शादी.. आठ बजे आंख खुल गयी। बॉडी शिड्यूल नही बदला करता। आज कुछ खास काम तो नही था, लेकिन बहनोई साहब का मानमर्तबा रखने में खड़े पैर रहना पड़ता। शादी में असली मजे बहनोईसाहब, फूफाजी, और बच्चे लेते है।
भांजे का महत्व बहुत ज्यादा है। सो ब्राह्मण को भोजन जितना मूल्य एक भांजे का है। आज तो आखरी दिन था, ज्यादातर मेहमान दोपहर का भोजन लेने के पश्चात विदाई लेने तैयार थे। उन्हें तहसील तक छोड़ने जाना, कार के फेरे चलते रहे। दोपहर को मेहमानों के भोजन के बाद हम भाई भाई बचे थे, फिर एक विधि में लग गए। ढोली पैसे खूब मांगते है। आधे घंटे में ढाई हजार लग गए..
शाम को फेरे थे, लेकिन उससे पहले अश्वारूढ़ दूल्हे को ग्राम भ्रमण करवाया जाता है। बेंड बाजा के साथ.. रात का भोजन अच्छे से हो गया। फेरे चल रहे थे। हम बड़े है, बाहर बैठे गप्पे लड़ा रहे थे। तभी डणक सुनाई दी। सिंह गर्जना करता है उसे डणक कही जाती है। या कहते 'सावज हूँके छे'। शादी समारोह के पीछे ही खेत शुरू हो जाते है, दूर दूर तक खेत, खुली लहलहाती जमीन, ठंडा पवन.. अच्छा दो दिन पहले ठंडा पवन फूंका रहा था और कल से दोपहर, शाम को गर्मी मतलब पसीने छूट जाते है.. तो बेंड बाजे के लाभ के पश्चात पसीने से लथपथ थे, एक तरफ फेरे चल रहे थे, और हम तीन भाई बाहर खाट डालकर बातों में लगे थे। डणक हवा के साथ सुनते ही उत्सुकता हो आई। मैं छत पर चढ़ गया, किस दिशा से आवाज आ रही है सुनने के लिए। लम्बी गर्जना की थी उसने। फिर तो शायद दूर किसी खेतो में रखवाली करते लोगो ने स्पीकर्स बजा दिए। कोई चीख रहा हो ऐसा साउंड, एम्ब्युलेंस का सायरन, और भेडियो की आवाजें लगातार स्पीकर में बजती सुनाई पड़ने लगी। हम तो गांव में थे, जो खेतो में रखवाली के लिए रुके होंगे उन्हें क्या अनुभव हुआ होगा? बड़ी मजेदार थी, पहली बार रात को सिंह की गर्जना सुनी है। नेशनल पार्क के सिंह, और यह खुले घूमते सिंह की गर्जना में कोई फर्क नही लेकिन वातावरण का बड़ा फर्क है। फिर एक काका ने बताया कि 'यह तो हर हफ्ते का है।' और वैसे भी अपने गांव के डूंगर में भी सिंह का एक बसेरा है.. और कई बार मारण कर चुका है। मारण करना अर्थात सिंह के द्वारा शिकार करना।
फिलहाल एक बजकर दस मिनिट हुए है। सारी आवाजे शांत हो चुकी है। बस मंडप-डेकोरेशन वाले अपने मंडप वगेरह खोल रहे है तो उसकी आवाज आ रही है।
ठीक है फिर शुभरात्रि..
(१९/०१/२०२५, ०१:१०)