दिलायरी : १८/०१/२०२५ || Dilaayari : 18/01/2025

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आज सुबह साढ़े पांच को एक छोटे भाई ने जगा दिया। नींद तो बहुत आ रही थी, लेकिन शादियों में सोना हराम है, वह भी घर-परिवार में हो तब तो निंद्रा होती है क्या कुछ? सुबह गर्म पानी तो मिला नही, ठंडा जिंदाबाद। बस थोड़ी सी हिम्मत चाहिए होती है। वेल लेने जाना था। सवेरे साढ़े आठ को निकले, नौ बजे तक पहुंच गए थे। फिर तो बस मेहमाननवाज़ी के लाभ.. बैठे बैठे पानी, चाय, मावा-बीड़ी, कसुम्बापान, डायरो...

दोपहर को बस अच्छा मावा खाने के लिए तहसील चले गए। ठीक रहा, दोपहर बाद साढ़े चार तक विदाई दी गई।

वापिस गांव लौटते ही डांडिया-रास की तैयारियां... शाम को कसुम्बा पान.. तीन-तीन केनिये कब गले से उतर गए पता नही.. कैफ बिल्कुल ही नही। मौज ही मौज.. सुबह के चार बजे दिए थे। स्टेज कलाकार और वायरल गीत यह जुगलबंदी हमेशा से टॉप एंड ट्रेंड रही है।

लगभग, सुबह साढ़े चार को शुभरात्रि हुई..!
(१८/०१/२०२५)

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