दिलायरी : २०/०१/२०२५ || Dilaayari : 20/01/2025

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आज कुछ भी काम न था। शादी समारोह बढ़िया तरीके से शांतिपूर्ण हो चुका। अब बस समेटना था सब.. सुबह आठ बजे आंख खुल गयी थी। नहाधोकर फ्रेश होकर नाश्ते के लिए पहुंचा। तो शादी की भागदौड़ में थके हुए हाथों ने ज्यादा नमक डाल दिया। अच्छी बात यह थी कि चाय में सक्कर ही थी। चाय वगेरह पी कर लगे कामो में। रसोड़े के बर्तन और पानी के ड्रम-कैन, कुर्सियां-टेबल और जो भी सामान आया था वो वापिस पहुंचाना था। मिनी ट्रेक्टर ने लगभग चार चक्कर मारे।



दोपहर को अपना घर भी लॉक करना था। साफसुफ़ किया, दरवाजे अच्छे से लॉक किये, डेली (बड़ा सा मैन गेट) भी आगे पीछे से लॉक की। याद आया, गांव वाली बैंक की चेकबुक पंचायत में पड़ी थी, किसी की बाइक लेकर पंचायत ऑफिस पहुंचा, मंत्री जी थे नही। फोन करके बुलाया, वे आए, चेकबुक ले ली मैने। लगभग एक साल से उन्ही के पास पड़ी धूल खा रही थी। अब मेरे घर पड़ी पड़ी धूल खाएगी। गांव से साढ़े-तिनसों किलोमीटर दूर मेरा बसेरा है। 


दोपहर बाद दूल्हे-दुल्हन को गांव के देवस्थानों में दर्शन करने जाना था। लेकिन जिस कार में जाना था, वह किसी और काम से तहसील चली गई। मुझे दोपहर का भोजन करके तुरंत एक बजे निकल जाना था, लेकिन अब दूल्हे के पास कार नही थी, तो मुझे ही रुकना पड़ा। बड़े वाले बेर कार में रखे थे। बड़े बेर बिल्कुल ही दारू जैसी गंध रखते है। दूल्हे दुल्हन की कार मैं नही चला सकता, एक मेहमान को बिठाया कार चलाने के लिए, उन्हें चाबी दी मैने, तो उन्होंने दरवाजा खोलते ही मुझे बुलाया, बड़ी देर लगी उन्हें समझाने में कि भाई कार में पार्टी नही की है, बेर रखे थे। फिर भी वे तिरछी नजरो से मुझे देखकर मुस्कुराते हुए कार ले गए। लगभग पाँचेक बजे वे लौटे। और हम लगभग सवा पांच तक निकल गए थे। 


रास्ता फोरलेन है सारा, लेकिन शुरुआती रास्ता गढ्ढो से भरपूर है। अच्छी खासी स्पीड पकड़ी हो और तभी अचानक से कोई गढ्ढा आ जाता है, गाड़ी कूद जाती है, और अंदर बैठे मुझ पर चिल्लाते है। लगभग पांच किलोमीटर में चार गढ्ढे कुदाने के बाद कार को बिल्कुल लेफ्ट साइड रखकर तीस की स्पीड मात्र में चला हूँ। तीस किलोमीटर के बाद बढ़िया रास्ता है, एक स्टॉप लिया चाय-पानी के लिए, सरधार में। उसके बाद नॉनस्टॉप माळीया-ऑनेस्ट में कार रोकी है। वहां थेपला दही और चाय.. हल्का नाश्ता सोचा था, लेकिन भूख के चलते थोड़ा हैवी हो गया। सामखियाली टोल गेट से निकलने के बाद आंखे बंद होने लगी। लगभग रात का एक-सवा एक बज रहा था। फेमिली के साथ नाइट ड्राइव नही हो सकती। हुकुम पास में बैठे थे, वरना कुछ पान-मसाला टाइप चबाते रहने से नींद नही आती। वे तो मुझे बातों उलझाए रखने की कोशिश में लगे थे कि नींद ना आए, लेकिन छह-सात घंटे से न तो मावा खाया था, न ही धूम्रपान, और हुकुम के साथ चुपचाप बैठे रहने से आंखों को निंद्रा द्वारा घेर लेना लाजमी ही था.. भचाऊ से निकला तो आंखे लगातार बन्द होने लगी, थोड़ा भय भी उपजा, कार साइड में रोकी, पानी से आंखों में छिड़काव किया, आंखों को आधी बोतल पानी से धोया.. अब बस तीस किलोमीटर ही काटने थे। अकेला होता हूँ तो नींद नही आती, क्योंकि सिगरेट पी लेता हूँ, या फिर कुछ रजनीगंधा वगेरह खा लेता हूँ। आंखों में पानी मारने से कुछ राहत हुई। फिर सो के पार कार दौड़ा दी। सिक्स लेन हाईवे है। लगभग दो बजे घर पहुंच गया था। ढेर सारे सामान से लदी कार को घर पहुंचने के पश्चात ही आराम मिला। लगभग ढाई बजे बेड पर पसर गया.. पूरा अस्तबल बिक गया था...


शुभरात्रि...

(२०/०१/२०२५)


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