हिसाब बराबर: एक सादा दिन, एक सधी हुई फिल्म, और महंगे पानी का हिसाब || दिलायरी : २५/०१/२०२५ || Dilaayari : 25/01/2025

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शनिवार का ऑफिस — गजे की गैरहाज़री में नमकीन और शॉर्ट्स

    प्रतिदिन की भांति ऑफिस सुबह साढ़े नौ तक पहुंच गया था। शनिवार है लेकिन स्ट्रेस तो शाम को लेना होता है। दोपहर तक कुछ खास काम था नही, कुछ हिसाब वगैरह बना लिए, और बाकी रिल्स, शॉर्ट्स, और यूट्यूब पर समय कट गया। गजे को आज ऑफिस के काम से दूसरे शहर भेजा था, तो दोपहर को मार्किट जाने का कोई अन्य कारण भी न मिला.. चार-पांच नमकीन के पैकेट्स पड़े थे, फांक लिए।



'हिसाब बराबर' — एक सादी पर असरदार फ़िल्म

    लंच टाइम में गजे की गैरहाजरी में मार्केट जाने का कोई कारण न मिला इसलिए कुछ बाकी हिसाब बनाने बैठ गया, साथ मे जी5 पर एक फ़िल्म भी देखने लगा, 'हिसाब बराबर'.. अच्छी फिल्म है। टॉपिक है बैंक घोटाले का.. हीरो आर माधवन, विलेन नील नितिन मुकेश.. स्टोरी स्टाइल तो वही है कि हीरो बैंक में हो रहे व्याज रीति का भांडाफोड़ करता है, विलेन हीरो को परेशान करता है, और अंत मे हीरो जीत जाता है। कोई फाइटिंग नही है, लेकिन मुद्दा बड़ा सही है। यूँ तो हम लोग सब्जी वाले से, या छोटे दुकानदार से पांच रुपये के लिए भी लड़ पड़ते है, मैं खुद कई बार नेशनल हाइवे पर बनी होटल्स वालो के साथ एमआरपी से ज्यादा भाव लेने के मुद्दे पर तूतू-मेंमें कर चुका हूँ। 


जब ढाबे पर पानी 30 का बिकता है

    लेकिन सर्विस अच्छी मिलने के कारण अब कुछ नही कहता। जैसे कच्छ से बाहर निकलते ही मालिया से पहले ऑनेस्ट है, बड़ी साफसुथरी प्रोपर्टी है। चमकते हुए तथा दुर्गंधरहित टॉयलेट्स, और बहुत अच्छी पार्किंग फेसेलिटी, मैं तथा लगभग सारे ही वहीं स्टॉप लेने की प्राथमिकता रखते है। लेकिन जो पानी की बोतल 20 रुपये की है, वह ऑनेस्ट में 30 कि मिलती है। 25 कि गुटखा 30 में बिकती है। दस वाली सिगरेट का 15 रुपया है। ऐसा ही कुछ नाश्ते के हाल है। अनुभव तो होता है कि कुछ ज्यादा ही महंगा है, लेकिन मैं उन बाकी फेसेलिटियो का चार्ज समझकर अब चुका देता हूँ। 


MRP से ज्यादा वसूलना: अनुभव और न्याय का द्वंद्व

    mrp से ज्यादा भाव लेना वैसे तो गुनाह है, दंडनीय अपराध है। लेकिन वहां आपने पार्किंग में नमकीन का एक खाली पैकेट भी फेंक दिया तो तुरंत कोई लड़का आकर, उठाकर उसे डस्टबिन में डाल देता है। इस लिए ज्यादातर कोई भी एमआरपी से ज्यादा भाव लेने पर चिल्लाता नही है। हजारो लोजी शाम तक वहां आते होंगे, कोई एक प्रोडक्ट पर पांच रुपये एक्स्ट्रा लेता है तब भी हजार आदमी का पांच हजार हुआ एक दिन का।


देर रात, एक और अधूरी फिल्म और नींद की दस्तक

    वह फिल्म हिसाब बराबर भी कुछ इसी सिद्धांत पर आधारित है, अगर किसी बैंक में चार करोड़ एकाउंट्स है, और बैंक प्रत्येक एकाउंट्स से सिर्फ १ रुपया भी निकाल ले, तो उसे एक ही दिन में चार करोड़ रूपये मिलते है। फिल्म अच्छी है, सादी सिम्पल, न कोई फालतू गाने, न कोई डांस वगैरह.. जस्ट कहानी.. 


    दोपहर बाद ऑफिस के कामो में लग गया था, और एक गाडी रात के साढ़े नो को फाइनल हुई, तब जाकर पौने दस को मैं घर के लिए निकला..! घर पहुंचकर, खाना पीना निपटा कर, फिर से एक फिल्म देखने लग गया.. डिस्पेच.. मनोज बाजपाई..! आधी देखि थी, लेकिन फिर नींद आने लगी, और सो गया था..!


शुभरात्रि..!

(२५/०१/२०२५, १२:०७)


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