सर्दियों में सुबह सुबह न जागने की तीव्र इच्छा न हो तो क्या ख़ाक सर्दियाँ है? रविवार का दिन, पड़े रहो पलंग पर जब तक लगे नहीं की अब कुछ ज्यादा ही लेट हो जाएगा..! सुबह नौ को पलंग का परित्याग किया, और आधे-घंटे मोबाइल लेकर बाथरूम में बैठना भी कुछ आम बात ही है। फिर नहाना, नाश्ता, और दुकान..! हाँ दो-तीन दिन जगन्नाथ से कुछ रूठना हुआ था तो घर से सीधा दुकान और फिर ऑफिस का नित्यक्रम था। दूकान पर वही एक धुम्रदण्डिका का सेवन, तथा एकाध रजनीगंधा माऊथ फ्रेशनर के तौर पर। फिर ऑफिस पहुंचा तब लगभग दस, सवा दस बज रहे थे। पूरी परेड देखि, मुझे बड़ी पसंद है। जब मिल्ट्री कदम से कदम मिलाकर चलती है। टैंक्स, हेलिकॉप्टर्स गुर्राते हुए चलते है। उसके बाद रविवारीय वित्तीय वितरण कार्यक्रम निपटाया तब चार बजने में दस कम थी..!
सवा चार को घर पहुंचा तब समय तो चाय का था लेकिन, घरवालों की मेहनत फोकट न जाए इस लिए सिर्फ दाल-चावल का सेवन करना पड़ा..! फिर निकला सीधे नाइ के पास..! मंदा चल रहा है शायद उसका, या फिर मैं असमय पहुंचा था, कोई न था उसके पास.. बालो की सेटिंग करवाई, और फिर शाखा। गजा था नहीं आज, बड़ी शाखा में राजस्थान गया है। तत्पश्चात तो बस घर-वापसी...
रात्रिभोजन के पश्चात कल की अधूरी डिस्पेच ख़तम करने की सोची..! क्या बेकार मूवी लगी मुझे..! मनोज बाजपेयी किस स्तर पर पहुँच गया है? मेरी बात करूँ तो मुझे तो यह फिल्म पसंद नहीं आयी.. पता नहीं केहना क्या चाहती है यह फिल्म.. अचानक से सिन चेंज हो जाते है, नए नए नाम आते है.. कौनसे नाम के साथ क्या बात जुडी थी यह याद हो पाए उससे पहले नया नाम और नयी बात.. इन्शोर्ट कहूं तो एक पत्रकार एक बहुत बड़े स्कैम का पर्दाफाश करने में लगा था। और आखिरकार निष्फल जाता है। मारा भी जाता है।
यह कचरा देखने के पश्चाताप स्वरुप साऊथ की हिंदी डब 'बोगनवेलिया' देखनी चाहि..! याद आया, आधी फिल्म देख चूका था, लेकिन बाद में एप ठीक से न चलने के कारन आधी मूवी देखनी छूट गई थी..! हालाँकि एन्ड पार्ट तो इसका भी देखना रह गया। बारह बजे तक निंद्रा घेर लेती है।
शुभरात्रि
(२६/०१/२०२५, २३:४३)