डांडिया समारोह और पुराने मित्र की झलक
कल रात १ बजे घर के लिए रवाना हुआ था डांडिया-रास में से। डांडिया-रास में ख़ास उतनी कोई पहचान थी नहीं तो बस कुर्सी डाले बैठना होता है। ऊपर से मैं गया था अकेला, कोई यार-दोस्त नहीं। २-३ पुराने मित्रो को फोन घुमाया, लेकिन वे घूम रहे है महाकुम्भ-प्रयाग..! बैठा रहा, याद आया, एक बहुत पुराने मित्र है, उनकी रिश्तेदारी इस समारोह में होगी ही, वे आएँगे। फ़ोन मिलाते ही वे बोले, 'बस दस मिनिट में पहुँच रहा हूँ।' गजब ही है। कुछ लोग बड़े तेज होते है। समय देखते समझ जाते है फोन का कारण..! लगभग १ बजे तक बैठे रहे थे, फिर मैं निकल आया घर के लिए।
ऑफिस ब्रेक और सिंधी नाश्ते का स्वाद
सुबह उठा तब पौने आठ बज रहे थे। और ऑफिस पहुंचा तब नौ बजकर दस मिनिट.. आज भी कुछ ख़ास काम तो था नहीं। फिर भी छोटेमोटे काम देखकर दोपहर को मैं और गजा फिर से निकल पड़े शिकार पर..! साथ ही दो-तीन काम भी निपटा दिए, और फिर घूमते घुमाते एक सिंधी नाश्ते वाले के पास पहुँच गए। आज रोज के मुकाबले थोड़ा ज्यादा दबाके नाश्ता हो गया। दोपहर बाद वही घिसा-पिटा ऑफिस का काम। और अभी वही कल वाले के यहां भोजन के लिए जाना है।
बाकी आज मन और तबियत दोनों ही थोड़े डाउन है। मेरी ख़ास इच्छा तो है नहीं जाने की लेकिन फेमिली को लेकर जाना पड़ेगा। ठीक है फिर, इच्छा हुई तो आगे इसी में लिखूंगा, अन्यथा यही शुभरात्रि...
(२४/०१/२०२५, २०:०६)
प्रिय पाठक!
कभी अकेले डांडिया देखा है?
या थके मन से सिंधी नाश्ता किया है?
तो आइए, एक दिलायरी और पढ़िए:
२३ जनवरी की दिलायरी
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