लिखने की बिलकुल ही इच्छा है नहीं, तबियत थोड़ी नरम है। सुबह से काम तो कुछ किया नहीं है, बस बैठा रहा ऑफिस पर और दोपहर को घर चला गया था। तीन बजे वापिस आया, और एकाध बिल था, बना दिया। बुखार सा लग रहा है।
शुभरात्रि।
(३०/०१/२०२५, १९:१७)
लिखने की बिलकुल ही इच्छा है नहीं, तबियत थोड़ी नरम है। सुबह से काम तो कुछ किया नहीं है, बस बैठा रहा ऑफिस पर और दोपहर को घर चला गया था। तीन बजे वापिस आया, और एकाध बिल था, बना दिया। बुखार सा लग रहा है।
शुभरात्रि।
(३०/०१/२०२५, १९:१७)
31 दिनों की डायरी, 31 भावनात्मक मुलाक़ातें... यह किताब उन अनकहे एहसासों की आवाज़ है जो हर किसी के दिल में कहीं न कहीं दबे होते हैं। अगर आपने कभी अकेले में अपने आप से बात की हो, तो ये किताब आपके बहुत क़रीब लगेगी।
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