महाकुम्भ २०२५ || Mahakumbh 2025, Prayagraj ||

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प्रियंवदा..! दुनिया मूर्खो से भरी पड़ी है। मैं भी एक मुर्ख हूँ, लेकिन मेरे जैसे और ढेर सारे है। मुझ से थोड़े बड़े वाले मुर्ख भी है दुनिया में है। पिछले कुछ दिनों में कुछ लिखा नहीं है, दो-तीन मित्रो ने पूछा भी.. समझ नहीं पा रहा था कि क्या लिखूं? आज एक चित्र थोड़ा स्पष्ट हुआ है दिमाग में। 'महाकुम्भ'..



लाखो करोडो लोग महाकुम्भ में स्नान हेतु जा रहे है। मेरे शहर से भी कई लोग गए है। खासकर इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर यह महाकुम्भ अभी ट्रेंडिंग में है। न्यूज़ रिपोर्टर्स और व्लॉगिये पहुँच चुके है। बाबाओ से उटपटांग बाते पूछ रहे है। विविध साधु अखाड़ों के आगमन, स्थापन, शाही स्नान, यही सब चल रहा है। परसो १३ जनवरी से शुभारम्भ हो चुका है। कई सारे विविधतापूर्ण, तथा वैविध्यसभर श्रृंगार वाले साधु ओ को देखकर एक रोमांच तो जरूर ही होता है। कोई भष्म रमाए हुए, कोई अपनी जटा को बांधे हुए, तो कोई खुली छोड़े हुए, कोई दण्डवत प्रणाम की स्थिति में, कोई ध्रुवासन में, कोई अपना एक हाथ ऊपर उठाए हुए। हठयोगी। हठयोग कहलाता है, जो एक निश्चित समयमर्यादा के लिए प्रण लिया जाता है। लोग बड़ा क्रूर प्रण भी लेते है। जैसे मात्र प्रवाही भोजन लेना। या सिर्फ फलाहार का सेवन, या सदा के लिए एक हाथ ऊपर की और उठाए रखना.. या मात्र वज्रासन में बैठना। कुछ प्राप्ति के लिए बड़ी कठोर साधना करते है। वह कुछ अलौकिक होता है। सांसारिक नहीं। लोग बड़ी आस्था से इन बाबाओ का दर्शन करते है। पर कुछ मुर्ख ऐसा पूछते है जिससे बाबा मारने पर उतारू हो जाते है। अब यहाँ दो बाते है। बाबा क्रोधी है, और पूछने वाला मुर्ख। क्रोधमें कुछ खराबी नहीं, क्योंकि क्रोधी तो दुर्वासा भी थे। पर यह बाबा को दुर्वासा की श्रेणी में नहीं देख सकता हूँ मैं। वैसे अपने नजरिये की बात है।


महाकुम्भ के वायरल वीडिओज़ में एक सन्यासी का भेख (साधु का वेश) लिया हुआ युवक खूब सुर्खियां बटोर रहा है। युवावस्था है, एरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग में IIT बॉम्बे से पासआउट है। यह बात मुझे रसप्रद और बड़ी गंभीर लगी है। एक तरफ देश का युवाधन धार्मिक हो रहा है, लेकिन यह धार्मिकता दिखावे की दिखाइ पड़ती है। सोसियल मिडिया पर फेम पाने की चाहत में कई लोग 'राधे राधे' जपते दीखते है। ज्ञान उतना ही है जितना सोसियल मिडिया से मिला है। मैंने स्वयं ने भी अपने माथे पर चन्दन लगाए हुए फोटो लगा रखी है। लेकिन.. मैं उन मूर्खो की श्रेणी में बहुत निचले पायदान पर स्वयं को रखता हूँ। ढोंग करना मुझे भी अच्छे से आता है। पर मैं अनावश्यक करता नहीं। एक रिपोर्टर उस एरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग वाले बाबा से कुछ सवाल करता है। जिसके प्रत्युत्तर में वह युवा साधु कुछ ज्यादा ही हँसते हुए जवाब देता है। विडिओ देखते ही समझ आ जाता है कि उसने यह सन्यास क्यों लिया है? सूखे नशे में धुत्त दिखाई पड़ता है वो.. मुझे उससे कोई मतलब नहीं उसने क्यों सन्यास लिया, क्यों नौकरी छोड़ी, अब वह ऊर्ध्वगमन करेगा या अधोगति को प्राप्त होगा... मुझे समस्या है एक तो उसने एरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग जैसी पढाई से प्राप्त देश का एक टेलेंट बर्बाद किया है। उसने एक सीट बर्बाद की है एरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग की। लोग मरते है IIT में जाने को। और उस मुरखने देश के सेवा के बदले वह चयनित किया है जिससे न देश को लाभ है न स्वयं को.. नशा..!!! मुझे नहीं लगता है उसे यह ज्ञान होगा की हठयोगी द्वारा ग्रहण किया जाता नशा का उद्देश्य क्या है? उसने जिस क्षेत्र में पढाई की है, उस क्षेत्र में देश को बहुत सी उम्मीदे है, देश को एरोनॉटिक्स के क्षेत्र में बहुत सी प्रगति चाहिए है। लेकिन हुआ क्या, उसने एक सीट रोकी, कुछ साल बर्बाद किये, और अब नशे में धुत्त सन्यासी होने का स्वांग कर रहा है। मैं साधुता, सन्यास, वैराग्य से विमुख नहीं हूँ। आत्मिक ऊर्ध्वगति के लिए बहुत अच्छा कदम है। लेकिन उस रिपोर्टर को भी जूते पड़ने चाहिए जो उस मुर्ख को आयना दिखाने के बजाए, उससे कड़े-निंदात्मक सवाल करने के बदले मूढ़ की भाँती सवाल कर रहा है। क्या होगा देश का प्रियंवदा.. क्या होगा कुम्भ के माहात्म्य का। 


एक और बड़ा वायरल विडिओ है, सुंदर साध्वी का। लोग उसके भेख के बदले उसकी सुंदरता देख रहे है। और वह साध्वी भी शायद जानती है स्वयं की सुंदरता के विषय में। विडिओ देखने पर समझ में आता है। मतलब क्या समाज निर्माण हुआ है। एक साध्वी की सुंदरता के चर्चे हो रहे है। न कि उसके भेख के। कुछ साधु के वेश में सज्जित केमेरा देखकर उतावले हुये दीखते है, इंटरव्यू देने को। कुछ रिपोर्टर भी शायद जानबूझकर ऐसा दिखाते है जो कि सोचने पर मजबूर करता है.. मुझे लगता है कि ऐसे महा-मेला का आयोजन जरूर होना चाहिए, लेकिन लोगो को भी इतनी समझ होनी चाहिए की क्या देखना चाहिए, क्या दिखाना चाहिए। सिख साधुओ का निशानसाहिब स्थापित हुआ वह विडिओ रोमांचकारी था। साधु जब भष्म लेपन करते है, अलौकिक लगता है, धूनी के आगे बैठा कोई ध्यानस्थ, या फिर त्रिवेणी में डुबकी लगाता आस्थावान जरुरी है धार्मिक सम्पदा के लिए। लेकिन वहीँ कुछ एरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग वाले पढ़े लिखे मुर्ख देखता हूँ तो लगता है कि यह कौनसी अधोगति की और शीघ्रगमन कर चुके है हम। 


हमे आदर करना चाहिए उस वेश का, उस वैराग्य के प्रतिक समान भगवे वस्त्र का, जो कभी राम ने धारण किये होंगे, सप्तर्षिओं का परिधान रहा होगा, इस देश की, इस पृथ्वी की अलौकिकता को जिवंत रखता वह रंग है। साथ ही उस रंग को दूषित करने वालो से सावधान भी रहना उतना ही जरुरी है। यह समझ हमे स्वयं ही खड़ी करनी होगी, यह विवेक हमे होना चाहिए। उस परिधान का, उस वेश के प्रति आदर का। 


एक और बात, इस महाकुम्भ में आज के इस अध्यतन टेक्नोलॉजी युक्त ज़माने में भी लोग बिछड़ रहे है, खो जा रहे है। कितना विचित्र है। कुम्भ के प्रथम दिवस पर आए श्रद्धालु लम्बी कतारों में लगे है, शरीर पर मात्र एक अंतर्वस्त्र में, ठण्ड में ठिठुरते हुए। क्यों? क्योंकि खो गए है, अपनों से बिछड़ गए है। पुलिसबल अथाह मेहनत करता दीखता है, लेकिन फिर भी लोग खो जाते है। जगह जगह पर चिन्हीकरण होना चाहिए। लोग एक निश्चित चिन्ह पर संपर्क द्वारा एक दूसरे से पुनः भेंट सके। खोया-पाया के केंद्र बन रखे है, लेकिन लम्बी कतारों में स्नान करके आए हुए भीगे शरीर कांपते है। फिर भी एक विडिओ देखा, जहाँ लोग बिछड़े हुए की मदद करते है, ओढ़ने के लिए शॉल दे देते है। कोई कपडे दे देते है। लेकिन २०२५ के कुम्भ में खो जाना, बिछड़ जाना, दो-तीन घंटो के लिए कपकपाना... आयोजन की कमियां झलक जाती है। मानता हूँ कि इतने बड़े आयोजन में होता है यह सब, लेकिन स्वीकार नहीं सकता मैं।


ठीक है प्रियंवदा... आज थोड़ी बाते की है, कड़वी है, लेकिन विचारणीय लगती है मुझे, इसी लिए तुम्हे बताई है। 

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