दिलायरी : १४/०१/२०२५ || Dilaayari : 14/01/2025

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प्रियंवदा, आज दिलायरी में तुम्हे याद कर रहा हूँ। मकरसंक्रांति की शुभकामनाए। ऑफिस पर भी भंडारा था। सरदार ने लगभग दोसो थाली ऑर्डर की थी। लेकिन मुझे एक फेमिली फंक्शन में जाना था तो छुट्टी ले ली थी। सुबह जगा तब घर मे एक ऑलरेडी मेहमान बैठे हुए थे। जगते ही मेहमान के पैर छूने थोड़ा अजीब तो लगता है।



खेर, दस बजे जगन्नाथ जी के यहां बड़ी भीड़ लगी हुई थी.. दर्शन कर के फंक्शन में जा पहुंचा.. दो बजे तक तो भाइयों, रिश्तेदारों से मुलाकात ही चली, भोजन लिया। और पाँचेक बजे तक वही कार्यक्रम जो ढेर सारे भाई इकठ्ठा होते है तब होता है.. मैं ठहरा सबसे बड़ा इसलिए अपन को तो एक कुर्सी पकड़कर बैठे रहना होता है, लेकिन छोटे सब एक दूसरे की बेहद टांग खींचते है। और अपने को ठहाके लगाने होते है। लेकिन वास्तव में पेट दर्द हो जाए उतना हँसा हूँ आज तो। फिर शाम को लिटल-लिटल तीन लगाए और घर जाकर खाना पीना खा लिया चुपचाप। 


शाम को प्रीतम का फोन आया था.. प्रकाशपुंज की नैनसुखप्राप्ति के लिए..! लेकिन मेरा नसीब.. प्रियंवदा.. नसीब..! मुझे समझ ही नही आया था कि प्रीतम क्या कहना चाहता है। हम मित्र कई बार कुछ ज्यादा ही कोडवर्ड में बात करते है। और कॉड्स का डिफिकल्टी लेवल उतना ऊंचा होता है कि खुद ही न समझ पाए। प्रीतम ने किसी के सामने खड़े होकर कॉडिंग शुरू की, और मैं भी भाइयो के साथ था, समझा नही। एक और प्रत्यक्ष होने की क्षण गई हाथ से.. 


ठीक है.. आज इतना ही.. पुनः एक बार आपको मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं, तुम्हे भी प्रियंवदा..!!


शुभरात्री

(१४/०१/२०२५, २२:००)


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