'सिद्धांतो पे जीने की बातें वो करते है जिनके पेट भरे होते है।'
है ना कड़क बात..! इंस्टाग्राम के गलियारे में सुनी है। वैसे मौसम गर्म हो चुका है। फिर से वही पुराने मैदान में बैठने जाने की परंपरा शुरू होने वाली है। कल गया था वहां बैठने, लेकिन मच्छर.. हाथ घुमाकर मुठी बंद करो तो भी चार-पांच मच्छर आपकी मुठी में कैद हो जाए उतने मच्छर..! वापिस चला आया था। दुकान पर बैठना शुरू किया है। पत्ता अभी तक राजस्थान ही है। गजा भी दूर ही है। वैसे मुझे पसंद है अकेले बैठना। और लोगो को आते-जाते देखना.. सब कितने व्यस्त है, अपनी धुन में मस्त। खैर, आज सुबह नौ बजे ऑफिस पहुंच गया था। और कल की रविवारीय दिलायरी ब्लॉग पर पब्लिश कर दी। वैसे बड़े दिनों बाद कुछ लंबी दिलायरी लिखी थी, क्योंकि रविवार के दिन कुछ ज्यादा ही प्रसंग घटित होते है, आम दिन के मुकाबले। प्रतिदिन तो क्या होता है कि ऑफिस जाओ, शाम तक वही कागझो, और कम्प्यूटर स्क्रीन को अपने मुखदर्शन कराते रहो। शाम होते ही घर भागो..! कुछ भी नया नही। ढूंढने पर भी नही।
वैसे आज भी प्रियंवदा से एक अच्छी खासी बहस हो जाती लग्न के विषय पर। विवाह क्यों करना चाहिए, और विवाह न करने के क्या लाभ है.. लेकिन आज ग्रह नक्षत्रों के योग शायद सही न थे। सुबह सुबह स्नेही ने एक गुजराती काव्यपाठ भी भेजा, भाषाकीय लहजे में भी कोई अंतर न था। बस खाली दो-तीन शब्द के उच्चारण गलत थे। तो मैंने भी उसी काव्य को ऑडियो रेकॉर्ड कर भेजा। जब मैंने खुद ने ही मेरी ही आवाज में वह ऑडियो सुना तब हकीकत में लगा कि अपन इसमें भी बहुत पीछे है। बिल्कुल रूखी-सूखी आवाज, न कोई लय, सुर, बिल्कुल ही भावरहित पठन। इतना समझ जरूर आ गया कि आगे से यह आजमाइश दोबारा नही करनी है। वैसे विवाह वाले मुद्दे पर इतना तो जरूर मानना पड़ेगा कि प्रत्येक चीज के प्रो&कॉन्स होते है। इसके भी है।
देखो सिम्पल फंडा है वैसे तो ये, कि शादी करने के फायदे गिनाऊँ तो सबसे पहला स्त्री अच्छी मिलनी चाहिए। वरना सारे प्रो वहीं के वहीं कॉन्स में बदल जाएंगे। दूसरी बात, पत्नी अच्छी है, तो साथ मे अपन भी अच्छे होने चाहिये, वरना फिर से प्रो को कॉन्स में बदलते देर नही लगती। अब दोनो स्त्री पुरुष अच्छे है तो pros के नाम पर, अच्छा भोजन, संतोषी जीवन, और खुशियों की लहर साथ मे गृहस्थी धर्म का पालन, और एक अच्छे परिवार का निर्माण हो सकेगा। दोनो ही अच्छे नही है तब तो बताना ही क्या? वही स्त्री झाड़ू-बेलने से पति को कुटेगी, पति चप्पल से पत्नी को मारेगा.. वगेरह वगेरह, खुशियों के नाम पर पडोशी ही मजे लेंगे। अब बात करते है, पुरुष सही है, स्त्री गलत है। इस मामले में, पुरुष के पास डिवोर्स लेकर एलिमोनी भरने के अलावा कोई ऑप्शन नही है। वहीं पुरुष गलत और स्त्री सही वाले मामले में स्त्री ज्यादातर जीवन ही खत्म कर लेती है। यह हकीकत है, सब जानते है। अब कुछ छोटे-मोटे पंगो कि बात बताऊं तो, विवाह के लाभ में, शारीरिक सुख, समयसर भोजनादि का प्रबंध, एक नियंत्रित जीवन, और गृहस्थी का अनुभव। विवाह के नुकसान में, कुछ दिनों बाद मन का उब जाना, अनियंत्रित जीवन की चाह, छोटी-मोटी बातों पर झगड़ा, रूठना-मनाना में समय की बर्बादी, वगेरह वगेरह..! शायद लाभ से ज्यादा हानि है।
अगर विवाह ही न करे तो? सबसे गंभीर समस्या होगी अकेलापन खाने लगेगा..! मानसिकता स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ेगा। घर मे भी अकेले रहने के कारण, और बोलचाल के लिए कोई भी न होने के कारण अकेलापन और काटने को दौड़ेगा। शारीरिक सुख से वंचित। सारे काम खुद से करने पड़ेंगे, कपड़े से लेकर बर्तन झाड़ू पोछा तक। कमाओ भी खुद, और फिर घर के भी काम करो.. विवाहितों से ज्यादा परेशानी अविवाहित रहने में। हाँ फायदे के नाम पर अपने जीवनसाथी का नियंत्रण न होगा। कीच-कीच के कोई चांस नही। जब मर्जी पड़े तब जो चाहो वह कर सकते हो। लेकिन शायद एक उम्र के बाद किसी का साथ भी चाहिए होगा। तब साथ मे कोई नही आएगा। और शायद पश्चाताप भी हो सकता है।
अरे कुछ ज्यादा ही नही हो गया दिलायरी में यह सब? आज दोपहर को ज्यादा भूख न थी इस लिए कहीं भी नाश्ते के शिकार पर न गए। और मैं कम्प्यूटर पर मैप देखने मे व्यस्त हो गया। पता नही क्यो? मुझे गूगल मैप्स देखना बड़ा पसंद है। सेटेलाइट मोड़ में, किसी गांवों में क्या क्या ऐतिहासिक है वह खोजना, एक चैलेंजिंग गेम जैसा लगता है मुझे। दोपहर बाद तो सरदार ने थोथे पकड़ा दिए, वही चलाओ कलम, घिसो कागझ पर..! लगभग सवा आठ को ऑफिस से निकल चुका था। और अभी बज रहे है २३:२१.. सो जाना चाहिए अब..!
स्पेनिश में बोले तो buenas noches..
(१७/०२/२०२५, २३:२४)