अगर आप समय के अनुसार चल रहे है, फिर भी आप पीछे रहे जाते हो उसका अर्थ यह नहीं है की आपने मेहनत कम की है, या आपमें सामर्थ्य की कमी है। हो सकता है आपकी घडी ही समय से पीछे चल रही है और आपको सबसे पहले उसका सेल-बैटरी बदलनी चाहिए। योगानुयोग किसे कहते है, जैसे एक पेड़ की डाल पर कौआ बैठा, और डाली टूट गयी, इसका अर्थ यह तो नहीं की कौए के वजन के कारण डाल टूटी.. योगानुयोग हुआ। मेरे साथ भी हुआ। अभी समय हो रहा है १९:१७, ठीक १८:५० पर मुझे एक काम था। और घड़ी में तब तक १८:०० ही बजे हुए थे। मेरे पास मोबाइल है जिसमे समय दीखता है, सामने बड़ी सी कंप्यूटर स्क्रीन है उसमे भी समय दीखता है, हाथ में घड़ी है वो भी समय दिखाती है, और दिवार पर भी एक वॉल-क्लॉक टंगी है समय देखने के लिए। अब आदतानुसार मैं समय दिवार में लगी हुई घड़ी, या हाथ में बंधी हुई घडी में ही देखता हूँ। दोनों में ही शाम के छह बज रहे थे.. वास्तव में समय हो चूका था शाम के छह-पचास..! मतलब यह हुआ योगानुयोग, एक साथ दोनों वे घडी पीछे हो गयी जिसमे मैं समय देखता हूँ। यह तो अच्छा हुआ किसी का फोन आ गया, और उसने रिमाइंडर दे दिया तो मैंने कम्प्यूटर स्क्रीन का समय देख लिया। हाथोहाथ दिवार और हाथ वाली घड़ी को समय से मिलाया..!
वैसे आज भी कुछ काम था ही नहीं दिनभर..! रील्स और यूट्यूब के पॉडकास्ट देखने में समय गुजरा है। जिससे कोई भी लाभ नहीं होता..! बस समयपसार हो जाता है। सुबह नौ बजे ही ऑफिस पहुँच गया था। और दोपहर को मुझे मार्किट में कुछ काम था, तो नाश्ते के बहाने गजे को भी साथ ले लिया। कुछ मेडिसिन्स, और एटीएम का काम था, वो तो आधेघंटे में निपट गया। अब.. कुछ नहीं तेल जलाओ..! कुछ देर यूँही मार्किट में टहलते रहे। वैसे आज गर्मी तो खूब थी, लेकिन दोपहर को कुछ बदलो ने सूर्यनारायण को ढक लिया था तो उतनी राहत रही। नाश्ता-वास्ता करके अपनी एक फिक्स्ड दुकान पर कुछ धूम्रपान के लिए रुकना होता है, तो वहीँ रुका, देखा तो दूकान से बाहर निकाले हुये पतरे-शेड्स गायब थे। मतलब महानगरपालिका के रुझान आने शुरू हो चुके अपने यहाँ भी..! ऑफिस पहुंचा तब भी ढाई ही बज रहे थे, गजे ने तो BGMI शुरू की, और अपन लगे रील्स में..!
काफी दिनों से न कुछ पढ़ने की इच्छा होती है, न कुछ नया लिखने की। यही दिलायरी घसीटी जाएगी तब तक.. निःसंकोच। ठीक है फिर.. इटालियन में Buonanotte..
(१९/०२/२०२५, १९:३१)