दिलायरी : १८/०२/२०२५ || Dilaayari : 18/02/2025

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आज कई दिनों.. नही महीनों बाद उस खुले मैदान में आकर बैठा हूँ, जहां से प्रियंवदा से संवाद शुरू किया था। वही खुला मैदान, ठंडी हवाओं के झौंके, प्रदूषित आसमान में गिनेचुने ज्यादा चमकदार सितारे, जगन्नाथजी की लहराती धजा.. और रोड पर लगातार गुजरते ट्रक्स। समय हो रहा है अभी २२:३२, और कानों में गूंज रहे है मच्छर। आज का दिन बड़े आराम का रहा है। वास्तव में रील देखने के अलावा कुछ भी नही किया है। रिल्स और यूट्यूब.. हाँ, फोन की बैटरी डाउन हुई तो फिर कम्प्यूटर पर गूगल मैप्स.. तथा chatgpt से सवाल-जवाब..! यही दिन था.. शाम होते होते मैं खुद भी बहुत बोर हो गया था कि करे तो करे क्या..



वैसे आज बड़े दिनों बाद गुजराती में चार पंक्तियां लिखी है, और एक पॉडकास्ट सुनकर एक अच्छी खासी पोस्ट भी लिख दी..! कल के लिए शिड्यूल्ड कर दी है। सुबह नौ बजे। बाकी आज सवेरे बहुत कम नाश्ता किया था, और दोपहर को अकेला था तो दोपहर को भी नाश्ते के लिए नही गया, सीधे घर आकर भोजन ही लिया। परिणामस्वरूप सरदर्द कर रहा है। आजकल भूखा रहने पर सरदर्द होता है। इस सरदर्द से या तो झुकाम लगेगा या फिर कल तक अपने आप ठीक हो जाएगा। देखते है, मौसम दुधारी तलवार जैसा है। रात को थोड़ी ठंड हो जाती है, दिन में कड़क धूप, गर्मियों वाली। 


ठीक है, अब सो जाना चाहिए।

(१८/०२/२०२५, २२:३९)


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