मोल-भाव करना आता नहीं मुझे.. || दिलायरी : २०/०३/२०२५

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मोल-भाव करना आता नहीं मुझे..

प्रियंवदा, हिसाब-किताब का दौर चल रहा है। हर कोई जमा-उधार जोड़ के घटाके एक रकम तोड़ता है। वह तोड़ी हुई रकम मिलाते है, और वहां से आगे बढ़ जाते है। लेकिन एक मैं हूँ, जो तुम से आगे बढ़ ही नहीं पा रहा हूँ। इसी कारण से मैं व्यापारी नहीं हूँ, या हो भी नहीं सकता। क्योंकि मोल-भाव करना आता नहीं मुझे। फिक्स्ड वाला सिस्टम है। सुबह ठीक नौ बजे ऑफिस पहुँच गया था। कल से मैंने अपना व्यसन भी फिर से बदल दिया है। हालाँकि बंद कर देना चाहिए, लेकिन मुझे मृत्यु का उतना भय नहीं। शायद इन्शुरन्स करवा रखे है इस लिए.. 

Budhe se pareshan Dilawarsinh..

अरे मजाक.. ऑफिस पहुंचा, तो काम के नाम पर तो आजकल वही चल रहा है, व्यापारिक बेलेंस मिलान.. जिन से लंबा व्यापार हुआ है उनके और अपने बेलेन्स ३१ मार्च को बराबर होने चाहिए। तो लगभग हर कोई इसी झमेले में लगा हुआ है। दोपहर तक तो वैसे यूट्यूब पर ट्रेवल्स वीडिओज़ ही देखता रहा था.. काम के बिच में जब भी समय मिले। लेकिन दोपहर को गजा आया और बोला चलो मार्किट चलेंगे.. आपको भी काम है, मुझे भी एक काम है। 

हम निकल पड़े मार्किट.. 

पहले गए घड़ियाली के पास.. मेरी रिस्टवॉच कई दिनों से बंद पड़ी थी, खाली हाथ मुझे अच्छा नहीं लगता, बंद थी घड़ी फिर भी पहने रखता था। बस समय देखते समय याद आता की समय ही तो नहीं देख पा रहा मैं.. दार्शनिक बात है न.? खेर, घड़ी की शॉप पर उसने दो मिनिट में ही नया सेल डाल दिया, समय चलने लगा..  वो तो वैसे भी कहाँ मेरे लिए रुका था..! बताओ, एक शर्ट के बटन जितना सेल भी डेढ़सौ रूपये का है.. वहां से गया बैंक। बैंक में और कोई काम नहीं था लेकिन यह बैंकवालो ने अपने फायदे के लिए मुझे क्रेडिट कार्ड पकड़ाया था, मुझे तो उसका जरा भी उपयोग आया नहीं, उल्टा एन्युअल फि के नाम पर मुझसे साढ़े पांचसौ वसूल लिए..! तो उसे ही बंद करवाने गया था, जिस चीज का कोई उपयोग ही न हो उसका भुगतान कौन करे भला? तो बैंकवालों ने कहा आप खुद ही एप्प पर से क्लोजिंग प्रोसेस कर दो.. बताओ, आजकल बैंकवालो के काम भी हम खुद ही करने लगे है। एडवांस्ड होने के चक्कर में। भाई तुम्हारे पास मेरी अमानत पड़ी है, उसका तुम फलाने फलाने के नाम पर चार्ज भी काटते हो, और ऊपर से ऐसी एप्प प्रोसेस के नाम पर काम भी हम ही से करवाते हो..! यह तो वही नाइ वाला सिस्टम हुआ, हमने अपने बाल भी दिए, और पैसे भी दिए..! खेर, क्लोजिंग प्रोसेस करा के मैं और गजा निकल पड़े नाश्ता करने। कई दिनों बाद उस सिंधी की दहीपुरी की दो-दो प्लेट पेट में अर्पण की..!

वहां से निकले तो मुझे घर के लिए वॉटर बॉटल्स लेने थे, २०लीटर वाले..! तो दूकान पर गए, ढाई बज गए थे। अब यह खरीदकर घर देने जाए, और फिर ऑफिस जाए तो सवा तीन बज जाते... तो वो खरीदना पेंडिंग रखा, और एक पहचान के गैरेज वाले के वहां चले गए। गजे को अपनी मोटरसायकल बदलनी है। उसे सेकंड हेंड बाइक सस्ते में मिल रही है, अच्छी कंडीशन में। तो अभी वाली मोटरसायकल बेचना चाहता है। गैरेज वाला मेरी पहचान का है.. तो उससे भाव निकलवाने गए थे। उसने एक अच्छा दाम बताया, तो मैंने उसके बताये दाम में पांच हजार और बढ़ा के कहा, मंजूर है तो अभी ले लो..! गजा भी बड़ा राजी था, क्योंकि उसने सोचा था उससे ज्यादा भाव लगा था..! लेकिन गैरेज वाले का रोज का काम है, वह अपनी कही रकम पर ही अड़ा रहा। तो हमने कल वापिस आने का बोल कर निकल गए वहां से।

तभी बुधा आया..

दोपहर बाद कुछ यही बेलेंस मिलानो के काम में लगा था, तभी बुधा आया.. 'वो प्लंबर का काम हो गया है।' मैंने तुरंत ३५०० निकालकर दे दिए। लेकिन प्लम्बर ज्यादा मांगने लगा बुधे से.. क्योंकि वो लाइन नहीं मिल रही थी तो उसको थोड़ी ज्यादा खुदाई करनी पड़ी थी। अब यह भी कोई बात हुई भला? एक फुट ज्यादा खोदना पड़े तो पैसे ज्यादा थोड़ी दिए जाएंगे? सिम्पल हिसाब है, उसने काम देखकर ही पेंतीसो मांगे थे, हमने भी कोई भावताल किया नहीं और पेंतीसो में काम उसे दे दिया। तो अब अगर उसे लाइन न मिले तो वह तो उसकी प्रॉब्लम है। बुधे ने उसे पेंतीसो दिए लेकिन वो मना करता रहा, फिर बुधा मेरे पास आया और बोला, 'दो सौ रुपये और दो, मैंने उससे एक्सट्रा काम कराया था.."

"कौनसा एक्सट्रा काम?"

"दो गड्ढे करवाये थे।"

"कहाँ?" मैंने पूछा।

"वहीं लाइन के लिए?"

मेरा दिमाग हिल गया, यह हमारे यहां काम करता है या प्लम्बर के पास? इसे तो प्लम्बर को बोलना चाहिए, यह उल्टा प्लम्बर की ओर से मुझसे पैसे मांग रहा था। मैंने बड़े प्यार से समझाया, तू प्लम्बर को पैसे दे और रवाना कर। लेकिन उससे प्लम्बर माना नही, तो मेरे पास ले आया। फिर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया कि जितने में बात हुई थी उसके अलावा यह मांग ही क्यों रहा है? वो कुछ देर रकझक करता रहा लेकिन फिर मैंने गुस्से में कह दिया कि दोबारा तुम्हे काम नही मिलेगा। अगर तुम्हें काम के दाम का अंदाजा नही है तो काम हाथ मे लिया मत करो। और उसके जाने के बाद बुधे को भी धमकाया। बुधा हांजी हांजी करके चला गया।

फिर शाम तक वही जिनकी पेमेंट्स बाकी थी उन्हें आज चुकाने का सिलसिला शुरू किया। तीन चार जनों की बड़ी रकम नील कर दी। और फिर शाम को यह दिलायरी लिखने बैठा लगभग पौने आठ को, थोड़ी बहुत लिख भी दी थी, लेकिन तभी गजा आया। ढेर सारी बाते करने लगा तो समझ आ गया कि यह नही लिखने देगा। तो मैं सिस्टम शट-डाउन करके घर आ गया। घर का गेट खोलते ही कुँवरुभा ने दौड़ लगाई और बाइक पर बैठ गए। तो उसे बाइक पर चक्कर मरवाने ले गया, दुकान देखते ही 'चॉकलेट चॉकलेट.. बड़ी वाली..' तो ३-४ मंच ले ली, रास्ते मे कुँवरुभा के मित्र भी तो खड़े थे, उन्हें भी तो टोल टैक्स देना पड़ता..! घर पर खा-पीकर निकला दुकान पर। सोचा वहां जाकर दिलायरी पूरी करूंगा..! लेकिन वहां मच्छरों ने नही बैठने दिया। अब वापिस घर आया हूँ। और यह पूरी करने की सोच रहा हूँ। लेकिन यहां tv सीरियल्स का वो धूम-तानाना वाला म्यूजिक डिस्टर्ब कर रहा है। 

वो रक्षक ही भक्षक वाला मामला भी बढ़ जाता है..

यह सब तो चलता रहेगा, लेकिन वो खबर देखी? जिसने बड़ा तूल पकड़ा है। शहर का नाम तो मैं भूल गया लेकिन एक पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या की, और उसके टुकड़े करके सीमेंट से चुनवा दिया। पति नौसेना में था। मतलब पहले समाचार में अक्सर ऐसा आता था कि पति के आतंक से पत्नी ने अग्निस्नान किया, या फिर फांसी लगा ली.. लेकिन अब उल्टा हो रहा है। पत्नी के उत्पीड़न से त्रस्त कोई पति खुदकुशी कर रहा है, या फिर पत्नी ही टुकड़े टुकड़े करने लगी है। यह प्रेमी संग पति की हत्या वाला मामला जयपुर से भी हुआ। एक - दो दिन में ही एक जैसे दो केस.. क्या वाकई न्यायतंत्र का डर बिल्कुल ही खत्म हो चुका है लोगो मे? मुझे लगता है पुलिसबल बढ़ाना चाहिए। पुलिसबल की संख्या कम है लोगो की तुलना में। वैसे पुलिसबल बढ़ने से वो रक्षक ही भक्षक वाला मामला भी बढ़ जाता है अपने यहां तो..! लेकिन अभी घर आया तब समाचार में वही चल रहा था। उस पत्नी और उसके प्रेमी की कोर्ट में पेशी थी तो उसे वहां वकीलों ने कूट दिया। आजकल यह ट्रेंड भी बहुत चला है। वकील-लोग जज से पहले फैंसला करने लगे है। पिछले कुछ न्यूज़ पर मैं देख रहा था, वकील लोग खुद ही कूटने लगे है। मतलब यह तो कानून हाथ मे लेने वाली बात हो गयी या फिर वकील कानून से ऊपर है? पुलिसवाले बेचारे बड़े मुश्किल से अपराधियो को अपनी वान में पहुंचाते है। अरे फिर तो कोर्ट में पेशी ही क्यों करनी है, लोगो को ही सौंप दो। मतलब यह क्या बात हुई, काला कोट पहनकर कार की छत पर चढ़कर तुम अपराधी के बाल नोंचो? वकील हो या फाइटर? हाथापाई करने के लिए वकालत की थी क्या? मैं अपराधियो का पक्ष नही ले रहा, अपराधियो को तो ऐसी सजा दो कि जमाना याद रखे, लेकिन जमाने को इत्तला भी करो कि अपराधी को यह सजा मिली है। मेरा कहने का मतलब है कि अपराध की सजा बढ़ाओ, और यह न्याय का प्रोसेस थोड़ा कम करो.. सालो लग जाते है एक फैंसले में..! मैं आज ही सवेरे ट्विटर पर पड़ रहा था चालीस साल पहले के मुकद्दमे में अब फांसी की सजा हुई है अपराधियो को... अपराधी की शक्ल देखो तो लगभग साठ की उम्र के लगते है वे..!

समय हो रहा है २२:२६.. गर्मी का प्रभाव अब कम हो चुका है। लेकिन पंखे पुरजोर से घूमते है तो थोड़ी ठंडक अनुभव होती है। वैसे यह दिलायरी बड़ी सही जाने लगी है, बहुत सी बातें सम्मिलित होती जा रही है। प्रियंवदा, प्रेम वास्तव में बड़ी बुरी चीज है। इसमें जान जाना तय ही है। किसी न किसी की तो जाती है। ठीक है, अच्छा है मुझे कभी किसी से प्रेम न हुआ..!

शुभरात्रि।
(२०/०३/२०२५, २२:३०) 

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