एक रसप्रद वाकिया.. || दिलायरी : २१/०३/२०२५ || World Poetry Day

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मेरे साथ हमेशा ऐसा ही होता है

आज की तो तुम्हे क्या बताऊँ प्रियंवदा ! सवेरे से सर दर्द कर रहा है। कारण मैं जानता हूँ। कल रात को लगभग दस बार मैं पानी पिने उठा था। पता नहीं क्या हुआ था.. लगभग हर घंटे मैंने उठकर पानी पिया है। बढ़िया नींद आती है, और अचानक से बिलकुल ही जैसे गला ही सूख गया हो। लगातार नींद टूटी है। नींद पूरी हुई नहीं उससे पहले ही सवेरा हो गया। और रोजिंदा जीवन में व्यस्त होना पड़ा। मेरे साथ हमेशा ऐसा ही होता है। अगर नींद पूरी नहीं हुई हो तो सरदर्द करता ही करता है। वो भी सर का पिछला हिस्सा।


ek wakiya sunaate Dilawarsinh..

सुबह ऑफिस पहुंचा, कल वाली दिलायरी पोस्ट की, और स्नेही को भेज दी। सुबह कुछ भी काम नहीं था। तो मस्त अपने यूट्यूब पर ट्रेवल वीडिओज़ देखने लगा। थोड़ी ही देर में सरदार आया, तो थोड़ा बहुत काम भी कर लिया। वैसे आज गाड़ियां ज्यादा थी तो लंच समय में भी काम ही किया है। और वैसे भी शायद कल की धुप में घूमे और दहीपुरी सेहत को चोट कर गयी है। आज न ही कुछ नया पढ़ा है, न ही कुछ नयापन भरा विचार कोई आया है। लेकिन हाँ.. आज ब्लॉगर के स्टेटिस्टिक्स चेक कर रहा था, दो-तीन दिन पहले अचानक से बहुत से व्यू आ गए थे। वो भी भारत के बाहर से। बहुत पुरानी पोस्ट्स किसी ने पढ़ी है। व्यूज़ के मामले में एक बात और नोटिस की है, लेकिन लिखना नहीं चाहता। फिर यूँही टाइमपास करने के चक्कर में ड्राफ्ट्स में चला गया। कुछ महीनो पुराना एक अधूरा लेख पड़ा हुआ था, मैं इसे भूल ही गया था। गुजराती का वो लेख था, जिसका मैं हिंदी में अनुवाद कर रहा था। लेकिन बिच में पता नहीं कैसे लेकिन यह भूल ही गया था। लगभग दसेक प्रतिशत मैंने अनुवाद कर दिया था। आज और कुछ सूझ भी नहीं रहा था तो सोचा इसे ही पूरा किया जाए। 


दोपहर बाद उसी में लग गया था। शाम होते होते भी लगभग ४० प्रतिशत जितना ही पूरा हो पाया है। क्योंकि कुछ गुजराती शब्द ऐसे होते है, जिनका हिंदी मुझे आता ही नहीं है। और वैसे भी कुछ गुजराती शब्द के हिंदी पर्यायवाची उतने असरकारक भी नहीं लगते है। इसी कारण से कई बार अटक गया, कई बार बैठे गुजराती शब्दों को ही लिखना पड़ा। लेकिन बहुत सही मुद्दा है इस लिए लिख रहा हूँ। आज शायद कविता दिवस भी है। और यह भाषांतर लेख भी कविता से जुड़ा हुआ है। टाइटल ही मैंने दिया है 'कविता का लांछन'.. 


एक बड़ा रसप्रद वाकिया..

पहले के समय पर प्रशस्ति कविता का दौर खूब था। कवि लोग राजा, या अपने यजमान की कविता लिखकर उनसे आर्थिक लाभ पा लेते थे। फिर उन्ही कविओ में से कुछ ने खुशामते शुरू कर दी। अपने राजा की कविता करते करते वे लोग दूसरे राजा की नीचा भी दिखाने लगे अपनी कविताओं में। लेकिन यह कुछ कवि ही करते थे, और कुछ राजा ही इसे मान्य करते थे। यह कविताएं वास्तव में लांछन स्वरुप थी। बहुत से कवि बड़े मुंहफट हुआ करते थे, आज भी है, जैसे वर्तमान सरकार को गरिया देते है। वैसे ही कवि पहले भी हुआ करते थे। राजाओ को सीधे मुंह पर ही कह दिया करते थे। एक बड़ा रसप्रद वाकिया था की, एक कवि थे। किसी गाँव में मेहमान हुए। उस गाँव के ठाकुर के पास एक बकरा था, और वह बकरा उसे बड़ा प्रिय था। वह बकरा गले में स्वर्णजड़ित आभूषण पहनता था उतना प्रिय। लेकिन पशु तो पशु है। आते जाते लोगो को बकरा अक्सर सर मारता। लेकिन ठाकुर का बकरा, इसी लिए कोई उस बकरे को ऊँची आवाज में कुछ कह भी नहीं सकते। तो उस कवि को उस बकरे ने टक्कर मार दी। तब कवि ने वहीं दोहा कहा, जिसका तात्पर्य था कि 'ए बकरे, तुझ पर तेरे मालिक के चारो हाथ है, वरना तुझ जैसे को तो कबका कोई पका के खा जाए।' गंभीर बात है, बकरा को एक रूपक मानिये तो समझ आ जाए। वैसे ही एक बार एक व्यक्ति ने युद्ध में मात खायी लेकिन फिर भी अपने कवि पर दबाव बना कर शौर्यगीत बनाने को कहा। लेकिन कवि ने भरी सभा में उस युद्ध का ऐसा हास्यगीत बनाया कि उस व्यक्ति को खूब लज्जा हुई। लेकिन ऐसे सच्चे कवि कम थे। बहुत से कवि बस आर्थिक उपार्जन के लिए प्रशंसा से भरी कविता करते रहे। जिस लेख का मैं अनुवाद आज कर रहा था, यह भी एक अतिशयोक्ति पूर्ण, तथा समस्त रिवाजो को भूल कर लिखा गया प्रशस्ति गीत है। वास्तव में लांछन स्वरुप, तथा कविता की कला पर भी लांछन स्वरुप ही है। 


मुझे कंटेंट राइटिंग का भी कोई शोख है नहीं..

अभी समय हो चूका है २०:३०.. अनुवाद करते करते आठ बज गए, याद आया की दिलायरी तो लिखी ही नहीं। तो बस उसे अधूरा छोड़कर यह लिखने चला आया। वैसे आज यूट्यूब पर ट्रेवल वीडिओज़ से ज्यादा इन्फॉर्मेशन वाले विडिओ देखे है। मैं कभी भी विडिओ एडिटिंग करने वाला नहीं हूँ, फिर भी मैंने एडिटिंग सीखा, न ही मुझे ऑडियो रिकॉर्ड करने का कोई शोख है, लेकिन तब भी मैंने स्टोरी टेलिंग का विडिओ देखा। हाँ, फिर एक बात दिमाग में आयी कि कंटेंट राइटिंग के विषय में जानना चाहिए, तो उसका लगभग आधे घंटे का लेक्चर जरूर सुना। पता नहीं, मुझे कंटेंट राइटिंग का भी कोई शोख है नहीं, लेकिन तब भी। क्योंकि मैं आजकल मुक्त होकर लिखता हूँ। जो मन में आया, वही। शुरू शुरू में स्नेही के प्रभाव में आकर विषयानुसार लेखन किया। लेकिन अब तो एक मात्र दिलायरी, जिसमे मेरी दिनचर्या, और उससे लगती कोई बात हो तो वही लिख रहा हूँ।


देखते है, यह कितना निभा पाता हूँ?

ठीक है फिर, शुभरात्रि।

(२१/०३/२०२५, २०:३८)


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