बड़ी रोचक बात पढ़ने में आयी.. || दिलायरी : १९/०३/२०२५ || Nagpur, British India, Princely States

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शासन प्रणाली तो वास्तव में अचूक होनी चाहिए..

प्रियंवदा, शासन प्रणाली तो वास्तव में अचूक होनी चाहिए, क्योंकि इस में हुई चूक समस्त राज्य या देश के लिए गंभीर स्थितियां निर्माण कर देती है। कल-परसो नागपुर घटना समाचार में खूब हाइलाइट हुई। भाई साहब राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ का गढ़ है। वहां ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे २-३ बाते बतानी है तुम्हे प्रियंवदा..! वैसे आज मौसम ना तो गर्म है, न ही ठंडा.. दोपहर को सूर्य का प्रकोप अनुभव जरूर होता है, लेकिन शाम होते होते सामान्य हो जाता है। सवेरे नौ बजे मैं ऑफिस पहुंच चूका था। काम तो सामान्य ही था, न ज्यादा, न कम। अपने यहाँ एक लड़का काम करता है, वैसे उसे लड़का नहीं कह सकते, उसका खुद का लड़का शायद पंद्रह साल का है। मजदूर आदमी है, जमीन से ऊपर उठने को खूब हाथ-पाँव मारता है। लेकिन है तो बुद्धि का लठ्ठ..! इस लिए उसे नाम देता हूँ बुधा..! अब बुधा पर मुझे दया भी आती है और गुस्सा भी.. एक तो उसे कोई काम सौंपता हूँ तो आधी बात सुनकर ही वह भागता है। वो कुछ लोग नहीं होते? जो हुकुम बजाने के चक्कर में गलतियां करते रहते है.. उन्ही में से एक हमारा यह बुधालाल है। एक दिन इसे एक काम सौंपा, कि बैंक जाकर चेक डालना है। तो वो स्लीपबुक लेकर तुरंत निकल लिया। फिर मार्किट से मुझे फोन करके पूछता है कौनसी बैंक में जाना है? मुझे बड़ा गुस्सा आता है, फिर पूरी बात सुनकर क्यों नहीं निकला यहां से? 


Chaaro-or ki khabaren lete Dilawarsinh..

कमीशनबाजी का शक..

आज सवेरे ऑफिस पहुंचा तो बाहर कुछ दिन पूर्व गटर की टैंक टूट चुकी थी, वहां नई बना दी है, और उसमे प्लम्बिंग का काम करवाने का था, तो बुधा वही करवा रहा था। मैं ऑफिस में बैठा ही था, और कंप्यूटर ऑन करते ही बुधे का फोन आया कि 'बापु ! एक बार आओ तो, समस्या हो गयी है।' मैं वहां पहुंचा तो प्लंबर आया मेरे पास और उसने बताया कि 'पुराने कनेक्शन की लाइन मिल नहीं रही।' तो मुझे तुरंत समझ आ गया कि सारे झमेले का कारण यह बुधा ही है। उसीने jcb चलवाते समय पुरानी लाइन पर मिट्टी डलवा दी। अब क्या किया जाए? ऊपर से बुधा अपनी गलती स्वीकारने के बदले बहाने मारने लगता है, कि वो तो ऐसा था, वैसी बात थी.. वगैरह वगैरह..! प्लंबर अपनी मजदूरी के चक्कर में कहता है कि नई लाइन और नया टॉयलेट बना देते है। बुधा भी उसकी हाँ में हाँ मिलाता है, ऐसे मामलो में अक्सर हम जैसे आदमी को अपने ही आदमी पर कमीशनबाजी का शक होने लगता है। अब क्या करता, सरदार भी आया नहीं था, तो मैंने उससे कहा कि वही पुरानी लाइन ढूंढ भाई.. ऐसे कैसे चलेगा? शाम को फिर बुधा आया की 'उस प्लंबर की मजदूरी?' तो मैंने पूछा 'काम पूरा हो गया?' तो उसने बताया 'काम तो अभी बाकी है।', फिर काहे के पैसे मांग रहा है? वास्तव में बुधा बेवकूफ ही है। अबे काम पूरा होने से पहले कौन पैसे देता है? अब तो इस बुधे को जब भी मार्किट भेजता हूँ तो सारा कुछ काम चिट्ठी में लिखकर देता हूँ, वरना इसे भेजा हो पूरब में और यह निकलता पश्चिम में है।


औरंगज़ेब की कब्र..

अरे प्रियंवदा, दूसरी बातो पर चला गया मैं है ना? नागपुर वाली बात से शुरू किया था.. मैंने पुरे समाचार तो नहीं जाने है, लेकिन हेडलाइंस सुनी थी की नागपुर में दंगा हुआ था। वही एक ही मजहब वाले लोग..! प्रियंवदा, फिल्मे जनमानस पर बहुत बड़ी छाप छोड़ती है। हम लोग बहुत भावुक लोग है। हममें भावनाओ का ज्वार बड़े जल्दी उठता है। 'छावा' फिल्म से मामला उठा है सारा। संभाजी पर बनी यह फिल्म में औरंगज़ेब द्वारा शिवाजी के पुत्र संभाजी पर हुई क्रूरता को दिखाया गया है। वैसे कितना विचित्र है न, जिस औरंगज़ेब ने आततायिता में कोई कसर नहीं छोड़ी थी उसी औरंगज़ेब की कब्र महाराष्ट्र में ही है। औरंगज़ेब के नाम से औरंगाबाद शहर भी.. हालाँकि अब उसे छत्रपति संभाजी नगर नाम लोगो द्वारा दिया गया है। हमारी परम्परा रही है। हम मृत व्यक्ति का अपमान नहीं करते। युद्धों में घायलों को पानी पिलाने के किस्से बड़े प्रख्यात है। घायलों के बिच कभी वेर नहीं रखा गया है हमारे यहाँ। जब रणभूमि में घायलों को पानी पिलाया जाता था तो वह शत्रु सैनिक ही क्यों न हो? युद्ध के बाद उसे भी ससम्मान रखा जाता था। तो अब औरंगज़ेब तो मर चूका है। उसकी सिर्फ कब्र है वहां.. लेकिन वहां के लोगो की मांग है की उस कब्र को वहां से हटा दी जाए..? मुझे याद आता है, कुछ वर्षो पूर्व एक बात उडी थी कि महम्मद घोरी की कब्र के पास ही पृथ्वीराज चौहान को दफनाया गया था, और लोग घोरी की कब्र देखने जाते वे लोग पृथ्वीराज की समाधि पर जूते मारते थे। यह प्रसंग सही है या गलत, मैं नहीं जानता, लेकिन यह खबर जरूर से उडी थी। जैसे पृथ्वीराज की समाधि वहां काबुल में थी, वैसे ही औरंगज़ेब की कब्र भी तो यहाँ है..


अटेचमेंट स्किम

वैसे आज ऑफिस पर बुधे से बचने के बाद दिनभर ट्रेवल व्लॉगस देखे है, लेकिन उसमे भी थका तो फिर से एक बार अभिलेख पटल पढ़ने लगा। मुझे बड़ा मजा आता है, अंग्रेजकालीन गुजरात की राजशाही के विषय में जानने में। कैसे कैसे दिन थे वे भी.. उस समय भी उतनी स्वतंत्रता थी कि लोग तालुका के तालुकदार के खिलाफ भी अंग्रेजी कोर्ट में केस कर देते थे। वे भी नाजायज केस.. बस फेमस होने के चक्कर में। जैसे उस लोकसभा के चुनाव में एक कॉमेडियन ने नरेंद्र मोदी के सामने फॉर्म भरने की कोशिश की थी, बस फेमश होने का चक्कर बाबू भैया..! खेर, लोग उन दिनों कोर्ट केस कर देते, बिना किसी भय के। वरना पानी में रहना और मगरमच्छ से बैर कौन करे भला? लेकिन नहीं, तालुकदार भी उतने सहिष्णु थे कि सारी समस्या का योग्य निवारण लाने को तत्पर रहते। अपनी प्रजा को बाहर जाना न पड़े उसका ख्याल रखते थे। वरना आज के समय में किसी विधायक को ऊँगली दिखा दे कोई...! वर्ष १९४४ में अंग्रेजी सरकार ने शासनव्यवस्था को थोड़ा और सुदृढ़ करने के लिए अटेचमेंट स्किम ले आये थे। यह एक कानून था छोटे राज्यों के लिए। गुजरात में, खासकर सौराष्ट्र में एक-एक सिंगल गाँव भी एक स्वतंत्र स्टेट / राज्य हुआ करता था। ऐसे ही कई सारे छोटे छोटे गाँवों से टेक्स कलेक्शन और व्यवस्था रखने के लिए समस्या हो रही थी, तो उन छोटे छोटे राज्यों को पड़ोस के बड़े राज्य से मिला दिया जाए, यही थी अटेचमेंट स्किम..! अटेचमेंट स्किम के कारण फिर उन छोटे राज्यों के राजा या फिर आधिकारिक भाषा में कहूं तो उन तालुकाओं के तालुकदार कि अपनी रिस्पेक्ट खतरे में आ जाती। क्योंकि उनका तो अस्तित्व ही ख़त्म हो जाता। अगर उनका राज्य किसी और राज्य में मिला दिया गया तो एक राज्य में दो राजा तो हो नहीं सकते.. इस कारण से इस अटेचमेंट स्किम के विरुद्ध कुछ तालुका के तलुकदारो ने अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए कुछ कदम उठाने को एक गुप्त मंत्रणा की। लेकिन इस सीक्रेट मीटिंग की अंग्रेजी हुकूमत को खबर लग गयी..! तुरंत ही अंग्रेजी इंटेलिजेंस ब्यूरो की ओर से पोलिटिकल एजेंट को तार मिला की फलाने फलाने तालुका के तलुकदारो को साइड में लो..


पुलिस का वर्चस्व होना चाहिए..

अंग्रेजी राजयतंत्र कितना जागरूक था.. उन्हें उन सात-आठ तालुकदारो द्वारा की गयी गुप्त मीटिंग की भी सुचना मिल गयी..! और एक आज का लोकतंत्र है, नागपुर, संभल, मणिपुर में इतनी बड़ी हिंसा हो जाए, तंत्र बड़ी देर से एक्शन में आता है। लोगो में से कानून का भय ख़त्म होता जा रहा है। लोग रोड पर तलवारे लहराते है। कुछ दिन पहले ही अहमदाबाद में पुलिस ने अपना पराक्रम दिखाया है, लेकिन कब, जब घटना घट गयी.. कुछ असामजिक तत्वों ने खुली तलवार के साथ भरे रोड पर तोड़फोड़ की। हुआ ही क्यों? मेरा सवाल यही है। उस घटना के बाद उसी जगह पर पुलिस ने उन असामाजिक तत्वों को सरेआम डंडे से पीटा है। और उनका घर भी तुड़वा दिया गया.. लेकिन यह तब हुआ जब चिड़िया चुग गयी खेत... अरे भाई पुलिस का इतना तो वर्चस्व होना चाहिए.. नागपुर में dcp पर तलवार चला दी थी किसीने... मतलब न्यायतंत्र का कोई डर ही नहीं रहा है क्या लोगो में?


एक और बड़ी रोचक बात पढ़ने में आयी..

वैसे यह अभिलेख पटल पढ़ते पढ़ते बड़ी रोचक बाते जानने को मिलती है। अकाल में अंग्रेजो द्वारा तालुकदारों को लोन दिया गया था, वो भी साढ़े सात प्रतिशत पर.. किसी को २०० रूपये, किसी को तिनसों, किसी को १५०००.. एक तालुकदार को तो अपनी पुत्री के विवाह हेतु पंद्रह हजार की लोन लेनी पड़ी थी, क्योंकि उसने अपने पैसे तो अकालग्रस्त में लगा दिए थे। लेकिन यह भी दौर कितना विचित्र रहा होगा कि एक तालुकदार लोन लेता है तो उसका भार भी आमजनता पर ही आता है। वह रकम टेक्स के रूप में ही पुनः कलेक्ट की जाएगी..! एक और बड़ी रोचक बात पढ़ने में आयी.. प्रिंस ऑफ़ वेल्स जब भारत आया, तो मुंबई में रुका था। उसकी इच्छा थी कि वो सभी राजाओ से मिले..! पोलिटिकल एजेंट्स ने सभी राजाओ पर पत्र भेजे, कि प्रिंस ऑफ़ वेल्स आ रहे है। तो उन्हें आप सब से मिलने की इच्छा है। आप सब मुंबई चलिए। कुछ राजाओंने तबियत का बहाना मारा, लेकिन कुछ राजा जाने को तैयार हुए। एक राजा साहब ने तो उल्टा पोलिटिकल एजेंट को पत्र लिखा कि हम सब राजा वहां जा तो रहे है लेकिन हमारे प्रोटोकॉल्स वहां ठीक से होने चाहिए। राजाओ को उन के राज्य के अनुसार कुछ प्रोटोकॉल्स तथा गन सैल्युट्स दी जाती थी। तो इन राजा साहब ने पोलिटिकल एजेंट को ही कह दिया कि मेरे वहां पहुँचने पर ९ गन की सलामी तैयार रखना..! मतलब वो प्रिंस ऑफ़ वेल्स - प्रिंस होगा वेल्स का... मैं तो यहाँ का राजा हूँ, मेरी आवभगत में कमी नहीं रह जानी चाहिए, खासकर पड़ोसी राजा के सामने..!


अरे बड़ी रोचक रोचक बाते है प्रियंवदा.. पढ़ते हुए अलग लेवल के मजे आने लगते है। ठीक है फिर, अब समय हो चूका है २०:३६.. अब प्रेम से घर की ओर निकल लेना चाहिए।


ठीक है तो, शुभरात्रि।

(१९/०३/२०२५, २०:३७)


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