लक्ष्मी जी का व्यय कह लो, या अर्थव्यवस्था में योगदान..
हाँ ! कल रविवार था, थोड़ा व्यस्त और विचित्र था तो दिलायरी लिख नहीं पाया, जो कि आज सोमवार सुबह ९:२७ पर लिखने बैठा हूँ। वैसे खर्चे भरा दिवस था कल का। होगा ही, रविवार था.. लक्ष्मी जी का व्यय कह लो, या अर्थव्यवस्था में योगदान.. वैसे कल शाम को दवाखाने जाना पड़ता, लेकिन बच गया।
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kharcho ka calculation karte Dilawarsinh.. |
मौसम दोरंगी है फ़िलहाल। रात्रि को ठण्ड जैसा लगता है, दिन में गर्मी वाली धुप..! धुप भी ऐसी कि अगर धुप में निकलते है तो चमड़ी जलने जैसा अनुभव होता है। जैसे अग्नि के ताप में जलन होती है ठीक वैसे। सुबह ऑफिस पहुंचने की कोई जल्दी न थी। काम और कुछ था नहीं, बस हर रविवार वाला ही दो घंटे का काम था। ऑफिस पहुंचा, टोपी बहादुर ने बढ़िया कड़क चाय पिलाई, सरदार भी नहीं आया, न ही गजा... बुधा बाहर बैठा गप्पे लड़ा रहा था। और मैं ऑफिस में कंप्यूटर में गेम खेल रहा था। सरदार लगभग आया साढ़े बारह को, और फिर ढाई बजे तक यह सब काम निपटा कर घर को निकला। घर पहुंचा तब घड़ी में तीन बज रहे थे। थोड़ा सा भोजन कर के, मैं और हुकुम निकले बाजार।
अपने को धंधे में कोई इंट्रेस्ट नहीं है..
थोड़ी बहुत खरीदारी करनी थी। अपने यहां (मेरे यहाँ) पुराना रिवाज चला आ रहा है। एक साथ गेहूं खरीदने का। हम तीनसौ-चारसौ किलो गेंहू एक साथ खरीदकर रख लेते है। लगभग साल भर चल जाता है। इस सीज़न में गेंहू खेतो से बाजार में आ चुके है। तो कल गेंहू भी देखने थे, और थोड़ा बहुत सामान और लेना था। जो सामान था वो मोटरसायकल पर नहीं आ सकता था, तो कार ले गए। और वैसे भी हुकुम को मेरी fzx जरा भी पसंद नहीं है। उनका मानना है कि मोटरसायकल ऐसी होनी चाहिए जो आपको तो कहीं ले जाए, लेकिन साथ ही साथ आपके सामान को ले जा सके।
fzx में सीट लम्बी नहीं है। दो लोग के लिए ही है। स्प्लेंडर की तरह पांचेक जने इसमें तो असंभव है। अपना शहर दोपहर बाद बड़े देर से खुलता है। लगभग पांचेक बजे के बाद, एक बाजार तो खुली रहती है, क्योंकि उन्हें तो शहर से लगे नेशनल हाईवे का लाभ मिलता है, लेकिन शहर का पिछला भाग वो वाला है, कि लेना है तो लो वरना अपने को धंधे में कोई इंट्रेस्ट नहीं है। तो कुछ तो राशन वगैरह था वो तो फट से ले लिया। उसके बाद याद आया, घर के लिए दो प्लास्टिक खुर्सी ले लेते है। पुरानी वाली टूट चुकी है। तो चले गए एक दूकान में, उसे भी धंधे की कोई पड़ी न थी, खुर्सी का ऐसा भाव बताया कि आदमी को सोचना पड़े..!
फिर घूमते घूमते एक रोडसाइड टेंट लगा दिखा, फर्नीचर से भरा हुआ.. उसमे वो लकड़ी की खुर्सी बड़ी मुझे.. उसे भी धंधे की कोई पड़ी न थी। दो तीन बार भाव पूछना पड़ा। तब जाकर उसने अपने मोबाइल से मुंह उठाकर जवाब दिया की अकेली खुर्सी नहीं मिलेगी, सोफा और टेबल समेत पूरा सेट खरीदना पड़ेगा.. अब दो खुर्सी के लिए पूरा पचीस हजार का सेट कौन खरीदे भला? गर्मी भी खूब थी, और लोगो का व्यवहार भी..! फिर अपने पुराने पहचान वाले से दो खुर्सियाँ खरीद ली, क्योंकि अब तक साढ़े पांच बज गए थे और वो खुल चूका था। फिर थोड़ा बहुत और फालतू चीजे भी खरीदी, क्योंकि बाजार आए हो, और फालतू चीजे न खरीदो तो क्या खाख बाजार घूमे हो। खेर, घर आया, सारा सामान अनलोड किया। और दूकान पर कुछ देर बैठने चला गया।
काएक हुई बेहोशी – क्या हुआ मुझे?
लगभग साढ़े आठ बज गए थे दुकान पर बैठे बैठे.. घर से फोन भी आ गया कि खाना नहीं खाना है क्या? तो घर जाने के लिए खड़ा हुआ तो अचानक से घबराहट होने लगी छाती में। कुछ हो रहा था, आँखों में अँधेरा छाने लगा था। मैं खड़ा हुआ, दूकान में पानी रखा हुआ था, वहां तक पहुंचा, और वहीँ जमीन पर बैठ गया। पूरा पसीने से भीग चुका था। मैं बेहोश हो चूका था। फिर कुछ देर बाद ऐसा लगा जैसे मैं सो रहा था। मुझे दुकानवाला जगा रहा था। एक और कोई लड़का था, मेरी उम्र का। एक हाथ उसने पकड़ रखा था मेरा। मैं होश में आया। दुकानवाले से मैंने ही उल्टा पूछ लिया 'क्या हुआ?' तो उसने बताया 'बापु ! क्या हो रहा है आपको? तबियत ठीक है?' तो मैंने आश्चर्य से पूछा, 'मुझे क्या हुआ? ठीक तो हूँ।'
लेकिन अब याद आने लगा था, कुछ देर पहले आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा था। साँसे जैसे रुक गयी थी, अपने आप पर कोई भी कंट्रोल नहीं था। और फिर कुछ याद नहीं आ रहा था। मैं बेहोश हो गया था। मुझे याद है, मैं गिनती के तीन बार ही बेहोश हुआ हूँ। वो भी इस बार कई सालो बाद हुआ था। तो बेहोश होने का ज्यादा अनुभव भी नहीं है। एक बार स्कुल में खेलते समय छाती पर टेनिस बोल लगी थी तब बेहोश हुआ था, एक बार मनाली में सुबह सुबह भूखे पेट स्नो स्केटिंग की थी तब, और एक कल।
दुकानवाला मजे लेते हुए बोला, 'बापु ! कुछ सुरापान तो नहीं किया है?' अब मैं पुरे होश में था। तो मैंने भी दुकानदार से उसी मजाकिये अंदाज में कहा, 'मुझे मुफ्त की चीजे हजम नहीं होती, आपने कुल्फी न खिलाई होती तो कुछ होता ही नहीं।' थोड़ी देर पहले दुकानवाले ने यारीदोस्ती में कुल्फी खिलाई थी। वैसे आज इस चक्कर आने के कई कारण हो सकते है। एक तो दोरंगी मौसम, उपर से कड़क धुप में मार्किट जाना हुआ, वो भी कार में फुल ऐसी, और बाहर कड़क धुप..! फिर मैंने कल दूकान पर बैठे बैठे दो मावे खा लिए, वो भी बड़े दिनों बाद। हो सकता है, सुपारी का बीज आ गया हो मावा में। और फिर यह कुल्फी.. कुछ भी हो सकता है।
घरेलू उपचार: त्रिफला से नींबूपानी तक
घर चला गया, तो पूरा भीगा हुआ था। होश पूरा था, लेकिन अभी भी थोड़ी छाती में घबराहट जरूर थी। सबसे पहले नहाया। फिर बिलकुल ही थोड़ा भोजन किया। और सोने चला गया। सोया तो आँखे बंद करते ही सब चकराने लगता। उलटी जैसा भी लग रहा था। घर पर बताया नहीं कि मैं चक्कर खाकर गिर गया था, परेशान हो जाते सब। फिर लग तो रहा था की दवाखाने जाना पड़ेगा, हुकुम को कहा की थोड़ी बेचैनी सी हो रही है। क्या करूँ? उनके पास हर चीज का एक इलाज है, चम्मच भर त्रिफला फाक के पानी पि ले। या फिर आंवला पावडर फाक ले।
दोनों से मुझे उलटी होने का खतरा बढ़ने वाला था, मैंने मना किया। तो बोले 'दुकान से एक इनो ले आ, और ग्लूकोस।' मैं बाइक निकालने ही वाला था कि तुरंत बोले, 'पैर में दर्द हो रहा है क्या?' तो मैंने कहा, 'नहीं ! क्यों?' लेकिन मेरे क्यों कहते ही मुझे अंदाजा आ गया, और मैं पैदल ही दूकान तक चला गया। इनो तथा ग्लूकोस ले आया। एक इनो पीने से थोड़ी राहत जरूर अनुभव हुई। तभी माताजी ने कहा, 'नींबूपानी कर दूँ क्या?' ब्लडप्रेशर का चक्कर होगा तो शांत हो जाएगा। लेकिन अब थोड़ा ठीक लग रहा था तो मैंने मना कर दिया।
फिर नींद आ गयी थी। ठीक है, फिर शुभरात्रि। बड़ा अजीब लग रहा है, अभी ग्यारह बज रहे है दोपहर के और मैं शुभरात्रि कह रहा हूँ।
(२३/०३/२०२५)
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शब्दों की शराब से भी नशा चढ़ जाए तो क्या कहेंगे…?
प्रिय पाठक,
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तबियत का थोड़ा खयाल रखिए महोदय !!
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