कहाँ में एडवेंचर करने के सपने पाल रहा हूँ || दिलायरी : २४/०३/२०२५

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साहबजादे बीमार पड़ गए..

ओहो.. समय हो चूका सायंकाल के साढ़े सात..! टाइमपास करने में ही इतना व्यस्त था की दिलायरी लिखना अब याद आया है। हालाँकि आज एक ही दिन में दो दो दिलायरी लिखी है। एक बीते कल की और एक आज की। सुबह जगा तो कुंवरुभा खांसते हुए सोए हुए ही थे। कारण पता चला कल मेरे लिए लाया हुआ ग्लूकोज़ रात को सोने से पहले एक ग्लास गटक गए थे। ग्लूकोस की तासीर ठंडी है। और उसमे सुगर भी होती है। साहबजादे बीमार पड़ गए। खेर, यह तो उनका हर महीने का है। सिस्टम ऐसा हो चूका है कि ज्यादातर लोग बच्चा देखते ही चॉकलेट पकड़ा देते है। उन्हें (हमे) लगता है बच्चो को चौकलेट देनी चाहिए। लेकिन ज्यादातर बच्चे चॉकलेट खाकर बीमार ही पड़ते है। कफ पकड़ लेता है। मेडिकल वाला खुद गालियां दे रहा था, क्योंकि उसे भी सेम प्रॉब्लम थी, बच्चा देखते ही लोग चॉकलेट खिलाते है। और वह १-२ रूपये की चॉकलेट १५०-२०० की दवाइयों में पड़ती है। तो कुंवरूभा ने स्कूल की छुट्टी रख ली। मेरी तबियत कल के मुकाबले ठीक थी। तो ऑफिस के लिए निकला.. वाया दुकान।


Vasoolibhai Banne ke liye Tatpar Dilawarsinh..

वसूलीभाई बनने का समय आ गया है..

दूकान वाला मेरे पहुँचते ही मुस्कुराने लगा, और बोला, 'बापु ! ठीक हो।'.. मैंने भी हँसते हुए कहा, 'लग तो रहा है।' साथ ही मैंने पूछ लिया कि 'कल आपने क्या देखा यह तो बताओ।' तो उन्होंने बताया कि आप दुकान में पानी के केन के पास बैठ गए। मैंने आपको पूछा कि कुछ चाहिए क्या, आपने जवाब नहीं दिया, और सर निचे डाल दिया। इसी लिए मैं दौड़कर आपको देखने आया, आपको थोड़ा हिलाया-डुलाया तो आप जाग गए। फिर मैंने उसे बताया, कि रात को फिर घर से बाहर निकला था, ग्लूकोज़ वगैरह लेने, आप थे नहीं तो कहीं और पैदल जाना पड़ा। वगरैह वगरैह गप्पे लड़ाए हमने, और फिर मैं ऑफिस के लिए निकल गया। ऑफिस पहुंचा, तो सरदार ने कल बता रखा था कि वसूलीभाई बनने का समय आ गया है, लिस्ट बना लो आप और लग जाओ फोन करने में। सुबह लिस्ट बना रहा तो याद आया कि कल की दिलायरी तो लिखी ही नहीं थी।


आज समज आया, यह लू लग रही है..

तो लिस्ट छोड़ी साइड में और दिलायरी लिखकर पोस्ट कर दी। ख्याल आया, और कोई कहे न कहे स्नेही तुरंत पूछेगा की दिलायरी किधर है? खेर, दिलायरी और कुछ हिसाब वगैरह चल रहे थे कि एक रिश्तेदार का फोन आया, 'हम लोग आपके घर आ रहे है।' बड़ी सही बात है, मेह और मेहमान कभी भी आ सकते है। तो उनकी आवभगत की व्यवस्था घर पर करने को बोलकर, एक बजे मैं और गजा मार्किट के लिए निकल गए। कुंवरुभा की मेडिकल से दवाई लेनी थी, जो सिर्फ उसी चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के मेडिकल में से लेता हूँ मैं। और गजे की मोटरसायकल का सौदा करना था। लेकिन आज वो गैरेज वाला अपनी बात से बदल गया। शायद उसने भी किसी से सलाह-मश्वरा किया होगा। सौदा हुआ नहीं। और मैं चला गया मेडिकल। मेडिकल तक पहुँचते पहुँचते फिर से चक्कर जैसा लगने लगा। आज समज आया, यह लू लग रही है, भरी दोपहरी में घूमने के कारण। मेडिकल वाले से दवाई ली। और उसे अपने बारे में कहा की भाई चक्कर जैसा लग रहा है। उसने हिम्मत बांधते कहा, 'मौसम ऐसा ही है, धुप में मत निकलो। और चाहिए तो एक एनर्जी ड्रिंक दे दू, या फिर ग्लूकोज़ ले लो।' ग्लूकोज़ तो घर पर पड़ा ही था। तो मैं कफ सिरप लेकर घर पहुंचा, तब तक मेहमान भी पहुँच गए थे।


दोपहर का भोजन सब ने लिया। मैंने गर्मी के कारण कम ही भोजन लिया। और फिर मेहमान तो सो गए। और मैं सोच रहा था, कि ऑफिस पर क्या बहाना मारा जाए? हालाँकि मुझ से कोई पूछता तो नहीं है मेरी टाइमिंग्स का, लेकिन हमेशा अपनी और से प्रीपेर रहना चाहिए। और वैसे भी मेरा ऑफिस का काम अपटूडेट रहता है, इस लिए मुझे समस्या नहीं होती। लेकिन थोड़ी जिम्मेदारियां ऐसी है उसी कारन मेरी हाजरी अनिवार्य हो जाती है। लगभग साढ़े चार को मेहमानो ने अपने नए गंतव्य को प्रस्थान किया। और मैंने ऑफिस की ओर।


कहाँ में एडवेंचर करने के सपने पाल रहा हूँ..

सरदार गया हुआ था एक मीटिंग में। इस बिज़नेस लाइन में कुछ बड़े बदलाव होने जा रहे है, शायद एक अप्रेल से। अच्छे बदलाव है देश की अर्थव्यस्था के लिए भी फायदा है। और हम जैसे कर्मचारियों के लिए भी। तो दोपहर बाद बस एक ही काम था मेरे लिए, वो तो मैंने आते ही निपटा दिया। बाकी समय यूट्यूब पर शॉर्ट्स देखते हुए काटा है। वैसे एक बात अभी अभी दिमाग में आ रही है। कहाँ में एडवेंचर करने के सपने पाल रहा हूँ, और कहाँ ये स्वास्थ्य मुझे ले जा रहा है। जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे वैसे शरीर अपने प्रत्येक कोण में कुछ नया पालने लगता है। बीमारी ही, और क्या..! वो फिट एन फाइन रहने वाला कांसेप्ट मुझ पर लागू नहीं होता। अपने को एक तो निंद्रा की खपत ज्यादा है, तो सुबह उठकर वाकिंग, जॉगिंग वाली मजदूरी करने में आलस आती है। दूसरी बात पूरा दिन ऑफिस में बैठने का काम है। तो वहां भी कुछ महेनत होती नहीं। शाम को तो घर आकर बस खाना खाकर बिस्तर में पड़ना होता है.. तो पसीना बहाना तो बड़े दूर की ही बात है। हालाँकि यह गलत है, मैं स्वीकारता हूँ। लेकिन क्या करे, यही आदतें पाल ली है। सोचता हूँ सुधार करूँ, लेकिन मुझे यह भी पता है कि आने वाले समय में गर्मियां बढ़ने वाली है, और निंद्रा अपने आप कम होने वाली है। तो उसी समय इन कसरत वगैरह पर ध्यान दे दिया जाएगा। बस इसी बहाने के तले मैं आज आराम करता हूँ। कल पर टालते हुए।


अच्छा है, मैं कल्पनाएं गढ़ने में माहिर होता जा रहा हूँ। तो मैं कसरत भी कल्पना में ही कर लेता हूँ। बड़ी सही चीज है।


ठीक है फिर, सर भारी होने लगा है। घर जाकर आराम करना चाहिए।

शुभरात्रि।

(२४/०३/२०२५, २०:०७)


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