शनिवार की थकान, हिसाब की उलझन और दिलायरी की राहत..! || दिलायरी : ०१/०३/२०२५ || Dilaayari : 01/03/2025

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शनिवार की सुबह: नींद बनाम ज़िम्मेदारी

    शनिवार के तो क्या ही कहने..? कल रात को तो नींद पूरी हो गयी थी। लेकिन सुबह फिर भी उठने की जरा सी इच्छा न थी। कल के एक ही दिन में छःसो किलोमीटर काटे थे, नींद का कारण यही था, थकान..! लेकिन ऑफिस तो जाना ही पड़ता है। फिर भी लेट तो हो ही गया था। लगभग पौने दस बज गए थे। एक दिन की छुट्टी में चार-पांच हिसाब इकट्ठा हो गए थे। लेकर बैठा ही था कि किसी का बुक्स मिलान के लिए फोन आ गया। फिर दोपहर के एक बजे तक वही चला।



बीच दोपहर की नींद और कुर्सी पर झपकी

    सुबह से याद था कि कल की दिलायरी बाकी पड़ी है लेकिन न ही समय मिला, न ही हिम्मत हो रही थी। नींद भी खूब आ रही थी। दो बजे आंखे भारी हो चली थी। रिकलैनर चेयर है, बैठे बैठे ही लंबा दिया। कुछ देर आंखे मींचकर पड़ा रहा, लेकिन नींद नही आई। तो फिर ऑफिस के दूसरे काम सम्हाल लिए। चार बजे फिर से हिसाब में उलझने लगा मन। दो दिन के पेंडिंग pd के पेंडिंग लेक्चर लगाए और सारे हिसाबादि बना लिए। शाम को एक आदमी पेमेंट के लिए आया और बैठ गया। बड़ी मुश्किल से गया। क्योंकि बातों उलझाने वाला आदमी था, और मुझे मेरे बाकी काम करने थे। कब अंधेरा हो गया पता न चला। 


    एक गाड़ी भी पेमेंट के लिए रुकी हुई थी। लगभग सवा आठ को दिलायरी लिखने बैठा। और साढ़े नौ तक ऑफिस के काम के साथ दिलायरी भी लिखकर पब्लिश कर दी। और फिर घर.. मौसम दोहरा है। रात को ठंडा हो जाता है, और दिनभर कड़क धूप रहती है। चित्तु को बुखार चढ़ गया।


    अभी समय हो रहा है, २३:५३..! और अब सो जाना चाहिए। 

    (शुभरात्रि, ०१/०३/२०२५)


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