हाँ, आज भी काम तो कुछ किया ही नहीं है.. तो दिलायरी में क्या लिखूं? क्योंकि दिनभर मूलतः तो गेम खेली है, और आजकल थोड़ा अभिलेखों में भी घूमता रहता हूँ तो यही लिख देता हूँ। वैसे सुबह हुई लगभग साढ़े सात को.. लोगो की जल्दी हो जाती है, मैं आलसी पड़ा रहता हूँ बस..! लगभग नौ बजे ऑफिस पर था। हकीकत में कुछ काम धाम है नहीं। US में तो मंदी आए तब आए, अपने यहां नहीं आनी चाहिए। वैसे वो बात तो हकीकत है की US की इकोनॉमी छींकती है तो पुरे विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को झुकाम लग जाता है।
आजकल गेम खेलता हूँ, मूवीज़ देखता हूँ, और एक रसप्रद कार्य और हाथ लगा है। एक सरकारी वेबसाइट है, जिनमे सारे अभिलेख संगृहीत है। मुझे उन पुराने पत्रों को पढ़ना बड़ा रुचिकर लगता है। उन अभिलेखों में ज्यादातर मेरी पसंद है अंग्रेजकालीन भारतीय व्यवस्थाएं। मैं वैसे कुछ नहीं कर रहा, कुछ नहीं कर रहा कह तो रहा हूँ लेकिन पिछले कई दिनों से इन अभिलेखों को लगातार पढ़ भी रहा हूँ। बहुत सी बाते है इनमे..! अंग्रेजकालीन भारत का हमारा गुजरात का भूभाग सीधे अंग्रेजो के आधीन नहीं था, बिच में राजा थे। हमने कभी भी अंग्रेजो की वो प्रताड़ना देखी ही नहीं है, जिनकी बाकी भारत बातें करता है। तीन गुना लगान टाइप..! राजाओ ने काफी सारा भार अपने पर ओढ़ कर जनसामान्य पर पूर्ण प्रताड़ना नहीं पड़ने दी थी। इसी लिए गुजरात में राजपूतो को बापु कहा जाता है। बाप की तरह ढाल बने थे। लेकिन जैसे प्रत्येक मानव एकसमान नहीं ऐसे ही प्रत्येक राजा भी इतने अच्छे नहीं थे, खासकर जब अंग्रेजो से संधिकरार के पश्चात अंग्रेजी नीतियां राजतन्त्र में भी लागू हो गयी..! जो आज भी यह कोर्ट वाली परम्परा चल रही है, उसी की बात कह रहा हूँ। कोर्ट के बाहर हो जाए वे फैंसले दोनों पक्षों को सस्ते पड़ते है। क्योंकि कोर्ट में स्टैम्प से लेकर वकील की फी तक के पैसे लगते है। दो भाई जमीन के बंटवारे लिए कोर्ट जाते है, और जब कोर्ट फेंसला देती है तब तक दोनों ही कर्जे में डूब चुके होते है। कई राजाओ ने तो प्रजा को समझाया भी था की आपस में फेंसला कर लो बजाए इन कोर्ट्स के चक्करो में पड़ने के। लेकिन तब भी पोलिटिकल एजेंट्स तथा थानेदार तक का हस्तक्षेप हो ही जाता था।
बहुत सारे अभिलेख पढ़े मैंने.. ज्यादातर में मुख्य मुद्दा कोर्टकेस ही था। यहाँ की राजकीय व्यवस्था ही ऐसी थी की एक बाप के दो बेटे है, तो एक को गद्दी मिली, दूसरे को गिरास मिलेगा..! गिरास शब्द संस्कृत के ग्रास पर से आया है, जिसका अर्थ है निवाला, या भोजन, या आय के रूप में भी ले सकते है। जिस बेटे को गिरास मिला, मतलब जमीन जागीरे मिली, उसके वारिसों में वह जागीर आपस में बंटती जाएगी। और अंततः आज के युग में एक भी के पास ३० बीघा जितनी ही बचेगी। क्योंकि भाई बंटवारे में वे घटती है, बढ़ती तो है नहीं, क्योंकि केस-कबाड़ा करने में व्यस्त हुए थे। तो बात ऐसी है, बहुत से अभिलेखों का मुख्य मुद्दा यह बंटवारे का निराकरण ही था। अभी भी जारी है वांचन मेरा.. बहुत सी और बाते भी जानने को मिल रही है। जैसे किसी गाँव जो कि तालुका कहा जाता था, स्वतंत्र स्टेट समझ लीजिए, उसका तालुकदार यदि अस्वस्थ रहते गुजर जाए, तो तत्काल पोलिटिकल एजेंट या थानेदार को उसकी सुचना देनी होती थी। किसी तालुके के तालुकदार स्वर्गस्थ हुए, उनके पुत्र ने तालुका की व्यवस्थाएं संभाल ली। लेकिन थानेदार को सूचित नहीं किया गया। अच्छा एक बात और, थानेदार मतलब पुलिसबल नहीं। एक पोस्ट हुआ करती थी। अंग्रेजी हुकूमत छोटे राज्यों की आर्थिक व्यव्हार पर नजर रखने के लिए एक थाना नियुक्त करती थी, और वहां का कारभारी थानेदार कहलाता था। उसके पास अधिकार हुआ करते थे तालुकदार से जवाब मांगने के। तो उस तालुका के नए तालुकदार के सुचना न देने के कारण उसे नोटिस भेजी गयी थी। मतलब यहाँ तक की अंग्रेजी हकूमत का नियंत्रण था की एक छोटे से गाँव का तालुकदार भी गैरजिम्मेदार न रहने पाए।
खेर, अभी तो बहुत कुछ पढ़ना है। बहुत सी बाते है। आपस में भाई बंटवारे के मामले ज्यादा है। खेर, अभी समय हो रहा है २०:४९, दिनभर यही पढ़ा है। लंच में भी आजकल बाहर नहीं जाते, रेड एलर्ट भी है, और बड़ी तीव्र लू चल रही है। शाम को मैं कुछ देर ऑफिस से बाहर टहलने गया था।
अब घर चले जाना चाहिए।
शुभरात्रि।
(१२/०३/२०२५)