खतरा तो कई तरह का है, प्राकट्य का..
फिर से दिलायरी लिखने का समय हो गया। और बताने लायक कुछ है नहीं मेरे पास..! क्या किया जाए प्रियंवदा? यह जब प्रतिदिन कुछ लिखने का बीड़ा उठाया है, तो चबाना तो पड़ेगा ही..! कुछ बाते बतानी पड़ेगी, कुछ छिपानी पड़ेगी, कुछ बातो का रूप बदला जाएगा, वो स्थान और नाम वाला डिस्क्लेमर चलता है ना टीवी पर उसी तरह ओरिजिनल बातो पर कुछ मुखौटा चढ़ाना पड़ेगा.. वरना खतरा तो कई तरह का है, प्राकट्य का..!
आज लगभग साढ़े नौ को ऑफिस पहुंचा था। क्योंकि घर से दूकान पर गया, और दुकानदार से बातो में पंद्रह-बिस मिनिट लग गए। दुकानदार सवेरे सवेरे सलाह देने लगा, 'बापु ! सुबह जल्दी उठा करो, मैदान में दौड़ लगाया करो। पहले आप आते थे। अब तो आपने कसरत छोड़ ही दी।' और मैं भी हाँ में हाँ मिलाता गया। क्योंकि ऐसी स्थिति में यदि मैं प्रतिवाद करू तो जो मुझे ऑफिस के लिए निकलना था वो और देरी से हो जाता। इस कारण उनकी तमाम सलाह बड़ी ही शालीनता से सुनने और आचरण में लाने का मैंने ढोंग रचा, और बाइक का सेल लगाते हुए बस भाग छूटा। दुकानदार उम्र में काफी बड़े है। और उन्हें मना करना मतलब चार बाते और सुनने जैसा मामला है। ऑफिस पहुंचा, काम कुछ ख़ास था नहीं। वही वसूलीभाई के किरदार में चला गया मैं। और उस स्वांग से लगभग एक बजे बाहर आया।
क्योंकि यह मार्च का आखरी सप्ताह है।
मुझे लगता है सारे ही औद्योगिक एकम आजकल यही कर रहे है, जैसे हम अपने खरीददारों को फोन मिलाते है और कहते है भाई साहब पेमेंट करो, हमें जिन्होंने सेल किया है वे हमे कॉल करते है की पेमेंट करो। उन्हें उनके सेलर्स से फोनकॉल्स आते होंगे..! वैसे दोपहर को एक कॉल आयी, वही क्रेडिट कार्ड वाले.. जिसे मैं बंद करवा चूका हूँ। कहते है, 'आपके कार्ड की लिमिट बढ़वा लो सर..' अब सर अपना सर खुजाने लगा, 'कौनसा कार्ड भाई?' तो उसने 'क्रेडिटकार्ड' कहा। मैंने भी झल्लाते हुए कहा, 'अपना डाटा उपडेट करो, कार्ड बंद करवाए एक हप्ता हो गया।' यह लोन वाले लोग मुझे लगता है अपना डाटा बड़े ही लेट अपडेट करते है। २ साल पहले मैंने एक कार बेच दी, उस कार पर अभी तक 'लोन ऑफर हो रहा है' ऐसे कॉल्स आते है। फिर उन्हें बड़ी ही शांतिपूर्वक समझाता हूँ की 'वो कार मैंने बेच दी है, तुम लोग उसी पर मुझे लोन ऑफर कर रहे हो, कल को भरूंगा नहीं तो क्या कर लोगे तुम? खेलते रहना फिर केस-केस।'हालाँकि यह लोग बड़े चालु भी होते है। कहते कुछ और है, करते कुछ और। शहर की बड़ी बैंक है, उसमे तो एक माला(फ्लोर) ही पूरा इन लोन वालो का है, दिन में दो बार कॉल करते ही करते है। एक दिन मैंने 'हाँ' भर दी। लड़की बड़ी राजी हो गयी, बोली प्रोसेस बहुत सरल है, तुरंत हो जाएगा। तो मैंने उससे इंट्रेस्ट रेट पूछ लिया, वो उसने कुछ ८-९ प्रतिशत का बताया। तब मैंने कहा, 'एक काम करो, आप दो लाख मुझसे ले जाओ, ८-९ प्रतिशत मत देना मुझे ५ भी चलेगा..' फिर तो उसने शायद अपने मन में मुझे गाली दी होगी, और फोन काट दिया। एक वायरल रील देखि थी, यही लोन वाले से किसी ने २५०-३०० करोड़ मांगे थे। वो भी मैं आजमा चूका.. मुझे भी कॉल आया, तो मैंने भी अमाउंट ५ करोड़ बताई। तो उसने सामने से मना किया। तो मैंने भी कह दिया, जब ऐसा कोई बड़ी एमाउंट का ऑफर आए तो ही फोन करना मुझे।
दोपहर को लंच या नाश्ता बंद कर दिया है अब। तो टाइमपास कुछ तो करना पड़ता.. बड़े दिनों बाद मेरा एक और ब्लॉग है वह मुझे याद आया.. उसमे मैं अपना साहित्य पहले पोस्ट करता था, फिर समय के आभाव से वॉट्सऐप ज्ञान ही बांटता हूँ। मुझे याद है, लगभग दीपावली के आसपास उसमे मैंने इस २० मार्च तक के पोस्ट्स शिड्यूल किये थे। और आज हो गयी २५ मार्च.. तो शिड्यूल्ड पोस्ट खत्म होने बाद भी उस ब्लॉग को भी तो जीवित रखना है। फिर एक साइड वॉट्सऐप खोला, एक साइड ब्लॉग.. कई साड़ी अच्छी कहानिया और कविताए जून महीने तक शिड्यूल कर दी उसमे...! मेरे वॉट्सएप्प कम चलने के कारणों में से एक यह भी है की मैं कई सारे ग्रुप्स में हूँ। सारे ही म्यूट कर रखे है, लेकिन जैसे ही ग्रुप लिव करता हूँ लोग पुनः मुझे उसी में जोड़ देते है। अब मुंह पर मना करना आता नहीं मुझे। वैसे फिर उन ग्रुप्स का उपयोग मैं इस ब्लॉग के लिए करता हूँ। तो दोपहर बाद साढ़े तीन तक तो इसी में लग गए।
नैतिक दृष्टिकोण से थोड़ा बुरा भी लगता है
फिर अब ऑफिस पर आओ, और ऑफिस का कुछ काम भी न करो तो नैतिक दृष्टिकोण से थोड़ा बुरा भी लगता है। तो दोपहर बाद कुछ ऑफिस का काम भी किया। एक और पुराना मसला भी याद आ गया। हमे हर व्यक्ति पर संदेह रखना चाहिए। एक निति है, आपको अच्छा रिश्ता किसी से चाहिए होता है, तो उसकी कमजोरियां भी अपने पास रखो। थोड़ी सी कुटिल निति है, लेकिन व्यावहारिक है। हर किसी पर संदेह रखना चाहिए। खासकर जिनसे पैसो का व्यवहार हो। मैं नहीं रखता था, फिर एक दिन चोट पड़ी, पैसे की नहीं लेकिन आबरू की, बच गयी नीलाम होते होते, लेकिन सबक जरूर मिला, कि हंमेशा सतर्क रहना चाहिए। आज उसीसे हिसाब मिलाने थे। एक कलम का मिसमैच था ही.. लेकिन सरदार लेट-गो कर देता है। मैं नहीं, मैं अपने मन में रखता हूँ। यह भी एक ऋण ही है, व्याज समेत वापिस करना चाहिए ऐसा मैं मानता हूँ। मैं अक्सर अपने सह-कर्मचारियों का पक्ष लेता हूँ। मेरा कोई मेटर हो या नहीं.. लेकिन मैं तब भी कूद पड़ता हूँ। एक सहकर्मचारी को कुछ काम सौंपा था। वह मेरे रवैये अनुसार ही काम कर रहा था, लेकिन जो ग्राहक था, वह थोड़ी अभद्रता कर बैठा उसके साथ। सहकर्मचारी चुपचाप सह गया। लेकिन उसके जाने के बाद उस ग्राहक को खूब लताड़ा है। साफ़ शब्दों में यहाँ तक कह दिया की आगे से मेरे यहाँ कोई भी बात हो, मुझे बताओ, स्टाफ को कुछ कहा तो समस्या हो जाएगी। लेकिन ज्यादातर लोग प्रेम से ही समझ जाते है, कुछ कुछ ऐसे बद्तमीज आ जाते है। वे भी समझते है, लेकिन थोड़ी देरी से।
बड़ा राजी है बाइकट्रिप के लिए..
खेर, अभी समय हो चूका है सात पेंतीस..! कहाँ मैं कह रहा था की आज कुछ लिखने को है नहीं और इतने सारे अनुच्छेद लिख दिए। बताओ, कभी कभी तो मुझे अपने पर ही संदेह हो आता है कि कहीं मैं भी उनमे से ही तो नहीं जो कहते कुछ और है और करते कुछ और.. नहीं नहीं। मैं वैसा नहीं। मैं जो कहता हूँ, वो पूरा करने की पूरी कोशिश करता हूँ। लेकिन पूर्ण विश्वास नहीं आ पाता कि पूरा कर पाउँगा या नहीं.. शायद विश्वास कई बार टूट चूका है कि अब मुझ में विश्वास की कमी हो चली है। कुछ देर पहले गजा आया था, बड़ा राजी है। बाइकट्रिप के लिए। थोड़ा सा अति-उत्साही हो गया है। आज से ही बार बार पूछ रहा है, कब निकलेंगे, कहाँ स्टॉप लेंगे, नाश्ता घर से करके जाना है या रास्ते में? वगैरह वगैरह... तो थकहारकर मुझे कहना पड़ा की इतना उत्साह अच्छा नहीं। सामान्य बन थोड़ा, समतूला बनाए रख। लेकिन टेंशन में तो मैं भी हूँ थोड़ा.. पहाड़ पैदल चढ़ा नहीं, बचपन के बाद कभी। वैसे छोटा पहाड़ है। पक्की सीढियाँ बनी हुई है। लेकिन मेहनत और मेरा तो छत्तीस का आंकड़ा है। देखते है। ज्यादा दूर नहीं है। लगभग दोसो-दोसो कुल चारसो किलोमीटर की बाइक-राइड है। सुबह जाएंगे, और शाम को वापिस।
ठीक है, फिर आज इतनी बाते बहुत हो गयी। शुभरात्रि।
(२५/०३/२०२५, १९:५५)
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