इसी कारण से कुछ बाते करने आया हूँ..
आज तो वास्तव में लिखने की इच्छा नहीं है, बस यह नित्यक्रम ना टूटे इसी कारण से कुछ बाते करने आया हूँ। सुबह ऑफिस पहुंचा तो सोमवार की तो दो गाड़ियां खड़ी ही थी, उसके अलावा चार गाड़ियां और आ गयी। ज्यादा गाडी, ज्यादा काम.. और ज्यादा काम, उतना ज्यादा वर्क-प्रेशर, जितना ज्यादा वर्क प्रेशर, उतना ज्यादा स्ट्रेस.. हालाँकि पता था, एक गाडी तो दोपहर से पहले ही निकल जाएगी, लेकिन दो रात को लेट तक फाइनल होगी। जब शेड्यूल पता हो तो प्रेशर अनुभव नहीं होता।
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bas bakaiti karne ko aatur Dilawarsinh.. |
विरासत खंडहर में तब्दील हो चुके है
दोपहर तक हिसाब-किताब और काम-धाम दबाके चला.. सरदार भी लंच में घर नहीं गया, हम तो जाते ही नहीं। तो सोचा आज होटल से मंगवाते है। फिर क्या था, बुधे को भेजा। वो ले आया। बुधा नुकसान में रहा वैसे, वो टिफ़िन लेकर आता है न..! दोपहर को लंच से निपटे और फिर मैं बैठा गूगल मैप्स में। गूगल मैप्स आजकल हमारे यहाँ लगभग हर गाँव में स्ट्रीट व्यू कर चूका है। तो आज बहुत से गाँव उस स्ट्रीट व्यू में देखे..! ज्यादातर गाँव जो देखे वे प्रिंस्ली स्टेट्स या तो तालुकदारी थे। और उन सब में गढ़-किल्ले आज भी मौजूद है। लेकिन बड़े ही दयनीय स्थिति में है। कारण है कि अब किले या गढ़ का रखरखाव कौन कर पाए भला? जो राजा या तालुकदार थे वे तो अब हमारी तरह सामान्य प्रजा बन चुके है। उनकी आय लिमिटेड हो चुकी है। तो बाप-दादाओ की विरासत सा किला, पैलेस, महल, या दरबारगढ़ खंडहर में तब्दील हो चुके है।
जितने भी तालुकदारी दरबारगढ़ या फिर किल्ले थे, वहां ज्यादातर बस खंडहर दीखते है। बड़े रजवाड़े थे, उनके पैलेस तो बच गए क्योंकि उन्होंने या तो होटल्स या फिर म्यूजियम्स में कन्वर्ट कर लिए। पर यह छोटी लेकिन सांस्कृतिक विरासत बस नष्ट होने की कगार पर है, क्योंकि सरकार तो इन पर फिजूल खर्च करना चाहेगी नहीं। ग्रामपंचायत के लिए भी यह खर्च ही है। क्योंकि इससे नया पैसा तो उपजेगा नहीं।
फ़िलहाल समय हो चूका आठ बजकर दस मिनिट.. गाडी अभी तक लोड हुई नहीं है तो आज शायद नौ-दस बज जाएंगे ऑफिस पर ही।
ठीक है फिर, शुभरात्रि।
(२६/०३/२०२५, २०:११)
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