माताजी की यात्रा, PS-1 की महिमा और दृश्यम की चालाकी — एक दिलायरी में पूरा दिन || दिलायरी : ०८/०३/२०२५

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दिलायरी — जो हमेशा साथ निभाए

    दिलायरी तो कमसे कम लिखता ही रहूं। बाकी सब तो छूट गया है, एक यही है जिसे मैं अपना करके रखना चाहता हूं। देखते है यह कितना साथ निभाएगी..! क्योंकि अक्सर सब मिलते है, कुछ दिन साथ गुजारते है, फिर सबके अपने अलग रास्ते है, सबको अपनी मंजिल तक जाना है.. है ना.. प्रियंवदा?



सुबह-सवेरे की टिकट चिंता और ममतामयी भागदौड़

    यह रास्ते, मंजिल से शुरुआत करने का कारण भी एक यही है कि आज सुबह सुबह माताजी को कहीं जाना था, वैसे कल शाम को ही मैने उनको बस टिकिट तो बुक करा दी थी, लेकिन उनके फोन में टिकिट या टिकिट का मैसेज नही आया। और मेरे ध्यान में भी ना रहा कि कम से कम एक बार उनके फोन में देख लूँ कि टिकट मिला या नही। क्योंकि GSRTC की बस में नियम तो यही है कि टिकट कन्फर्मेशन का मैसेज दिखाना पड़ता है। वरना कंडक्टर थोड़ा परेशान करता है, उसकी भी ड्यूटी है। सवेरे साढ़े सात को बस थी, हम सात बजे ही घर से निकल गए। डिपो पर पहुंचकर ख्याल आया कि माताजी को मैसेज कैसे दिखाना है कंडक्टर को यह सीखा दूँ। उनका फोन लिया तो पता चला कि मेसेज तो आया ही नही है। 


    मैंने अपने फोन में देखा, टिकिट तो कन्फर्म्ड हो चुकी थी तथा PNR no. भी आ चुका था। लेकिन जिनको यात्रा करनी है उनके फोन में यह मैसेज होना जरूरी है। कीपैड फोन में तो वॉट्सऐप भी नही होते है कि उन्हें स्क्रीनशॉट दे दूं। अपने फोन में बस की लाइव लोकेशन चेक की, बस अभी भी दो स्टेशन पीछे थी, तो समझ आ गया कि लैट आएगी, लगभग आठ बजे के बाद ही। अब इतनी सुबह मार्किट भी नही खुलती वरना प्रिंटआउट निकलवा लेता। इतना समझ आ गया कि बिना कन्फर्मेशन मेसेज के कंडक्टर मानेगा नही। तो मैंने माताजी से कह दिया कि आप बस में नई टिकट ले लेना। सुबह सुबह नुकसान.. लेकिन सीधी बात है, नसीब का कहीं नही जाता। मैं ऐसे ही अपने फ़ोन में एप्प चला रहा था तो नजर पड़ी कस्टमर केअर पर। लगे हाथ फोन मिला दिया। उन्हें बात समझायी और उन्होंने तुरंत मेसेज माताजी के फोन पर भेज दिया। थोड़ी राहत यह मिली कि अब नई टिकट नही लेनी पड़ेगी।


कंडक्टर की कहानी — दिल और ड्यूटी के बीच

    कुछ ही देर में बस के कंडक्टर का फोन आया, उसने सीधे ही पूछा, 'क्या आप डिपो पर पहुंच गए है?' तो मैंने कहा, 'हाँ हम वहीं खड़े है।' तो उन्होंने थोड़ी धिरजता से कहा, 'क्या आप बस डिपो से बाहर खड़े रह सकते है? आज बस डिपो में बस नही रुकेगी।' ऐसा पहली बार सुना था कि बस डिपो में ही नही रुकेगी? तो मैंने कारण पूछ लिया, उन्होंने बताया कि 'उन्हें कल माइनर हार्ट अटैक आया था, फिर भी वे ड्यूटी पर आए है, और सिर्फ और सिर्फ बुकिंग्स वाले पैसेंजर्स को ही वे लेंगे।' 


    मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। कोई ऐसी स्थिति में भी ड्यूटी क्यों कर रहा है? हालांकि बस कच्छ डिपो की नही थी तो उन्हें वापिस लौटना भी जरूरी ही था। इस लिए उन्होंने यह तय किया कि प्रत्येक स्टेशन पर से मात्र जिनकी बुकिंग्स है उन्हें ही लिया जाएगा। ताकि कंडक्टर को मेहनत न करनी पड़े और वे आराम करते करते अपने मूल डिपो पर पहुंच जाए, और वहां से अस्पताल। मतलब कमाल की बात है, एक तरफ मैं सोच रहा था कि माताजी को मैसेज दिखाना तक नही आता, कैसे यात्रा होगी? और एकतरफ यह कंडक्टर है, जो खुद ऐसी स्थिति में भी यात्रा करते हुए अपना फर्ज भी निभा रहा है।


PS-1 — ऐतिहासिक कथाओं का जादू

    मैं घर पहुंच तब साढ़े आठ तो बज चुके थे। फटाफट फ्रेश होकर ऑफिस के लिए निकला, लेकिन बड़ी गंदी आदत लगी है, दुकान का स्टॉप तो लिए बिना रहा नही जाता। पौने दस बजे ऑफिस पहुंचा था। शनिवार का दिन। काम का कायदे से बोझा ही ढोया है मैंने आज तो.. सुबह सुबह दिलायरी पोस्ट की, दोपहर तक 2 बिल बनाकर कुछ समय मिला तो पोन्नियिन सेल्वन देखने लगा.. सच कहूं तो मुझे बड़ी ही जबरजस्त लगी मूवी। पहला हाफ तो कौन किसका क्या लगता है यही समझने में चला गया लेकिन मुझे ऐतिहासिक ड्रामा बहुत ज्यादा पसंद है इसलिए मेरे लिए तो खूब ही रसप्रद रहा। 


    दोपहर ठीक एक बजे एक हिसाब में लगा, दो बजे तक वो चला, उसके बाद फिर से वही PS-1.. बड़ी ही मस्त मूवी है। मैंने नही देखी थी। लंबे लंबे नाम वाले पात्र, चोल, पल्लव, तथा पांडियन साम्राज्यों की कहानी को अच्छे से निरूपण किया गया है। लंच टाइम कब इसमें ही खत्म हो गया पता न चला.. यह मूवी एक बार तो देखने लायक है ही..! फिर दोपहर बाद तो क्या उलझनों में फंसा हूँ.. शाम सात बजे तक यही चला, और सात बजे रोकड़ मिलाने बैठा, उसमे भी एक हजार कम पड़ गया..! पता नही किसको दिए है, याद ही नही आ रहा। जो होगी देखी जाएगी सोचकर फिर से एक मूवी देखने लगा, दृश्यम 2..


दृश्यम 2 — सस्पेंस, अपराध और विजय की वापसी

    2 अक्टूबर को मात्र लाल बहादुर शास्त्री और गांधी को ही नही याद किया जाता। सोसयल मीडिया पर 2 ऑक्टोबर को विजय सलगांवकर स्वामी चिन्मयानंद के आश्रम के प्रवचन सुनने गया था वह भी याद रखा गया है। दृश्यम मूवी देखी थी तब मेरे मन मे एक ही ख्याल आया था कि पूरी फिल्म एक अपराध को छिपाने वाले को हीरो की तरह दिखा रही है। दृश्यम 2 में आशा थी कि आखिरकार अपराध से पर्दा उठ गया, सजा होगी। लेकिन चकमा देना कोई विजय से सीखे... मौत को छूकर टक्क से वापिस आया है वो..! उसका अपराध फिर से एक बार कानून की नजरों से बच गया। एक बार फिर से वो कानून की आंखों पर पट्टी वाली मोहतरमा पर धूल उड़ा आया। खेर, मूवी है, कुछ भी हो सकता है..! Ps1 तो बहुत पसंद आई, और यह दृश्यम 2 भी.. सस्पेंस बना रहे वहां ज्यादा मजा आता है। समय हो रहा है रात्रि १२ बजकर २ मिनिट। निंद्रा भरपूर आ रही है। 


    तो आज के लिए इतना ही। कल की कल लिखेंगे..

    शुभरात्रि।

    (०८/०३/२०२५)


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  1. मैंने तो पहले भी कई बार कहा है कि आपस में रास्ते टकराते हैं, लोग एक दूसरे से नहीं !!

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