बल्लू चांपावत नाम से राजस्थान का एक.. || दिलायरी : १७/०३/२०२५ ||

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सच है या झूठ, अंधश्रद्धा नहीं पता मुझे..

चैत्र महीना अभी शुरू हुआ नहीं है, लेकिन उसका भार तो लगने लगा है अभी से..! वैसे मैं यकीनन तौर पर मानता हूँ या नहीं मैं नहीं जानता लेकिन बचपन से सुनता आ रहा हूँ कि चैत्र और भाद्रपद मास बड़े भारी होते है। नुकसानदायी..! सच है या झूठ, अंधश्रद्धा नहीं पता मुझे.. लेकिन कल मोटर का खर्चा लगा, आज मोबाइल हाथ से गिरते ही टेम्पर ग्लास टूटा..! गनीमत है, डिस्प्ले सलामत है। रहनी भी चाहिए भाई, आगे बड़ा खर्चा खड़ा है। सुबह आँख खुली तो गला दर्द कर रहा था। कल वाली मिठाइयों ने थोड़ा बहुत असर दिखाया था। कल रात को वैसे मौसम फिर से एक बार ठंडा हो चूका था। रात को तो चद्दर ओढ़नी पड़ी थी।


Dilawarsinh Andhshraddha me shraddha khojte hue..!

सुबह ऑफिस पहुँच कर पहला काम दिलायरी पोस्ट कर दी। कल का रविवार बड़ा व्यस्त रहा था। दिलायरी पोस्ट करके आजकल भूल ही जाता हूँ। लेकिन एक स्नेही ही है, जिसका अचूक प्रत्युत्तर आ जाता है समय से। ऋणी हूँ उनका। वैसे आजकल फिर से एक बार मोटो-व्लॉगिंग देखने का रसिया हो चूका हूँ। एक यूट्यूबर है, कच्छ से नेपाल तक की बाइक राइड कर चूका है। कल यूट्यूब पर स्क्रॉल करते करते उसके वीडिओज़ सामने आ गए। मुझे मोटो-व्लॉगिंग बड़ी पसंद रही है। मैंने खूब देखे है। लेकिन धीरे धीरे वे सारे ही लोग कुछ ज्यादा ही रहीसी भरे वीडिओज़ बनाने लगे, तो उन्हें देखना बंद कर दिया। जिन्हे मैं पहले देखता था अब वे सारे फाइव स्टार होटल्स में स्टे लेते है, कुछ ज्यादा ही अमीरी दिखने लगी है। मुझे स्ट्रगल देखनी पसंद आती थी, कैसे कोई एक मोटरसायकल पर निकलता है, छोटी सी होटल या फिर खुद ही केम्पिंग कर के रुकता है। सादी सी कम्यूटर बाइक है। यह सब देखने में मजा आता है। लेकिन अब वे लोग लक्ज़री दिखाने लगे, तो मेरा भी उन्हें देखने में इंट्रेस्ट कम हो गया। लेकिन कल जिसके चैनल में चला गया, वह एक गाँव का लड़का है, और बहुत सादी सी बाइक है, और बिलकुल ही गिनेचुने खर्चो में पूरी ट्रिप करता है। कच्छ से नेपाल कोई कम बात थोड़े है?


बल्लू चांपावत नाम से राजस्थान का एक..

कल उसकी आधी ट्रिप देख चूका था, बाकी की ट्रिप आज दोपहर तक में देख ली। हाँ आज ऑफिस पर कुछ भी काम न था। तो पूरा दिन इन मोटो-व्लॉगिंग सीरीज़ देखने में निकाला है। एक समय पर मुझे भी बड़ी चानक चढ़ी थी, बाइक ट्रिप्स की..! लेकिन धीरे धीरे नशा उतर गया। या फिर जिम्मेदारियों के बोझ तले वे शोख एक स्वप्न रह गए। आशा तो मैं रखता ही नहीं अब किसी की भी..! मैंने पढ़ा था कहीं और मैं मानता हूँ कि हमारा प्रथम कर्तव्य यही है कि हमारे हमारे पूर्वजो का वेर तथा ऋण हमे चुकाना होता है। ऋण चुकाने का नैतिक मूल्य सबसे अधिक श्रेष्ट माना गया है अपनी संस्कृति में। वो ऐतिहासिक बात मुझे याद आ गयी.. बल्लू चांपावत की। बल्लू चांपावत नाम से राजस्थान का एक राजपूत था। किसी बनिये से उधार लिया था, और गिरवी रखने को कुछ नहीं था तो अपनी मूंछ का एक बाल गिरवी रखा था। अब राजपूत था, किसी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया। पीछे उनके परिवार वालो के सारे क्रियाक्रम कर दिए। लेकिन कई पीढ़ियों बाद उस बनिये के वंश में किसी को वह किताबे हाथ लगी जिसमे जिक्र था कि बल्लू चांपावत को कुछ रकम दी गयी, और उसकी मूंछ का एक बाल गिरवी है जो फलानि दिवार में सम्हाल कर रखा है। उस बनिये के वारिसदार ने दिवार खुदवाई, डिब्बी मिली उसे। उसने बल्लू के वारिसों को खबर दी, तब उन चांपावतो ने इकठ्ठा होकर कई वर्षो के व्याज सहित रकम भरकर मूंछ का बाल वापिस लिया। और पुनः एक बार बल्लू के अवशेष का दाह संस्कार किया गया। लेकिन उस बनिए ने भी चांपावतो से वह रकम वसूली नहीं थी, बल्कि दान ही कर दी थी। तात्पर्य पिता या पूर्वजो के ऋण को नहीं चुकाया तो वंश पर लगे बट्टे समान ही है वह। वैसे अब तो मैं मुक्त हूँ, लेकिन अब दूसरी अन्य जिम्मेदारियां है। जो निभानी है। एक बात अपने अनुभव से सीखी है कि कोई भी फेंसला लेने में ज्यादा समय नहीं लेना चाहिए। मैं अक्सर सोचने में बड़ा समय लेता हूँ, और एक तो मेरी समस्या रही है कि मुझे दोनों पक्षों के प्रतिसाद सुनाई पड़ते है, और मैं फेंसला ले नहीं पाता। इस देरी से लिए फैंसले के बड़े महंगे दाम चुकाए है मैने हमेशा से। फिर भी मुझे इस घुमक्कड़ी शौख को पुरे करने का जितना भी अवसर मिला, मैं चूका नहीं। मैं मोटर सायकल से लगभग दो सो किलोमीटर का व्यास घूम चूका हूँ। अकेले घूमने का मजा वैसे बड़ा सही आता है। सिर्फ आप और आपके ख्याल..! अकेले घूमने में आप अपने आप से ही मिलते है, और हरपल आप अपने आप को ही प्राथमिकता देते है।


खेर, दोपहर बाद भी मैं इन ट्रेवल वीडिओज़ देखने में व्यस्त रहा..! फ़िलहाल समय हो रहा है १९:४४, और आज दिनभर वास्तव में यही ख्याली पुलाव पकाने में निकला है कि कब वह समय आएगा जिस दिन मैं भी बिना किसी की अनुमति के स्वतंत्रता से किसी मंजिल पर निकल पडूँ। वैसे जहाँ तक मुझे पता है, यह दिन बहुत दूर है, उतनी दूर जब मैं इस कार्य को सक्षम ही न रहूँगा..! क्योंकि वो सब कहने की बात है कि इच्छा के आधीन जिया जाता है। हकीकत में तो जिम्मेदारियों के निर्वहन में ही उचित समय या फिर जीवन कब सरक जाता है, किसी को ख्याल नहीं रहता..!


आज वैसे दिलायरी में हकीकत की दिनचर्या से ज्यादा तो मानसिक हथौड़े भरी बाते हो गयी.. हैं न प्रियंवदा? हाँ, तुम्हे क्यों चूक जाऊँ जब इतनी सारी बाते मैंने कर दी है तो। आशा या फिर कामना तुम्हारी भी है, लेकिन मैंने पहले कहा था न कि मुझे अब आशा पर भी भरोसा नहीं रहा। क्योंकि आशा कल्पना से भरी होती है, और वास्तविकता की वेरी..! 


ठीक है, अब विदा दो..! स्नेही को सलाम और शुक्रिया.. शुभरात्रि।

(१७/०३/२०२५, १९:५३)


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1Comments
  1. जिम्मेदारियों ने तो सचमुच बहुत सारे बंधन डाल रखे हैं !

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