मेरा नित्यक्रम है: धूप, गेंहू और दुःखीलाल की कहानियाँ || दिलायरी : ०७/०४/२०२५ || Dilaayari : 07/04/2025

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सुबह का उदास सा आरंभ

    आज तो लिखने के लिए कुछ है ही नहीं प्रियंवदा ! आज ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है जो तुम्हे सहर्ष बताऊँ, न ही आज कोई समस्या हुई है जो तुम्हे सुनाऊँ..! आज का दिन तो जैसे उदय हुआ, और बस अस्त हुआ..! लेकिन मेरा नित्यक्रम है, तुम्हे अपनी मायाजाल में बांधे रखना, अपना बंद मुँह का बातूनीपना तुम्हारे आगे उजागर करना। तो कुछ तो बाते होनी ही चाहिए ना मेरे पास.. हैं न? वैसे दिलायरी में मैंने कभी भी कल्पना की गुट्टी नहीं मिलाई है। अक्षरसः वही लिखा है जो घटित हुआ है।


Chot se Ladte Dilawarsinh...!

ठंडा-गरम और सरदर्द की टक्कर

    आज सुबह ऑफिस आया, काम तो कुछ था ही नहीं। सोमवार का दिवस, कोई गाडी-घोड़े लगे ही नहीं। तो सुबह सुबह कल की दिलायरी लिखने बैठ गया। कल समय मिला ही न था। तो दोपहर ग्यारह बजे तक वही चली। फिर दोपहर को स्टाफ की सेलरी बांटनी थी, वो निपट गया..! सवेरे से सरदर्द कर रहा था। क्योंकि कल शाम को हेअरकट के बाद नहाया था, और रात्रि को सोने से पहले एक आइसक्रीम खाई थी। वही ठंडा-गरम चोट कर गया..! दोपहर को थोड़ी देर एक झपकी ले ली। लेकिन दो बजे फिर आँख खुल गयी.. यह पंद्रह-बिस मिनिट की झपकी कमाल कर गयी। 


गर्मी, पानी और टोपी बहादुर की टंकी

    यहाँ भारी लू चलती है दोपहर से शाम चार - साढ़े चार बजे तक। बाहर जाना हो तो थोड़ा सोचना पड़े। सावधानी बरतनी पड़े। खूब पानी पिने की सलाहें दी जाती है। पानी से याद आया, सुबह ऑफिस आया, तब से लेकर दस बजने को आए लेकिन टोपी बहादुर ने पानी न दिया.. तो मैंने उससे पूछा पानी तो पिला.. वो बोला, 'पानी है ही नहीं। खत्म हो गया..' बताओ, अभी तो गर्मियों की शुरुआत है। ऑफिस में ही पानी खत्म हो जाता है। पानी की कीमत प्यासा ही जाने..! टोपी बहादुर को धमका दिया, क्योंकि उसे पहले ही बता रखा है कि पानी के कैन एक्स्ट्रा उतारा करे.. लेकिन बालक है यह भी..! 


बरड़ा के किलों की तलाश और गूगल मैप्स

    दोपहर बाद करने को कुछ भी काम ही नहीं था। क्या करता..? गूगल मैप्स जिंदाबाद.. स्ट्रीट व्यू के गलियारे बड़े पसंद आ रहे है मुझे.. कल की दिलायरी पर YQ पर कमेंट्स आने लगे.. लेकिन स्नेही गायब है। गूगल मेप देखते हुए ख्याल आया, इसे ही लिख दिया जाए.. कम से कम एक पोस्ट ही तैयार हो जाएगी.. किसी दिन काम आएगी। तो लगा लिस्ट बनाने.. कौन से गांव में किला है, कौन से गांव में प्राचीन स्थापत्य है। लगभग १९-२० गाँव के नाम लिखे ही थे कि साढ़े सात हो गए..! वैसे आज ज्यादातर बरड़ा क्षेत्र के गाँव ही लिखे है। 


    अब साढ़े सात का अर्थ है, आज की दिलायरी समय रहते लिख दी जाए..! क्योंकि रात को घर पहुंचकर जब दूकान पर जाऊं और फिर से वह बातूनी मित्र आ धमके, तो लिख नहीं पाउँगा। और यह रिस्क लेना नहीं था मुझे। इसी कारण वश यह इसी समय लिख दी। वैसे आज रात का एक प्लान और है। समय रहा, और दूकान खुली मिली तो कार से गेंहू लाने है। बाजार में नए गेंहू आ चुके है। ज्यादातर तो यहाँ MP के सरबती गेंहू चलते है। पहले गुजरात के ही भाल के गेंहू प्रख्यात थे। लेकिन फिर वहां गेंहू की खेती कम हो गयी.. 


लेबर, हिसाब और दो हजार की जिद

    अच्छा एक बात और ध्यान में आ गयी अभी.. कुछ लोग जिह्वा का खेल बड़े अच्छे से जानते है। हुआ कुछ यूँ था कि एक लेबर ठेकेदार आया, बड़े ताव में बोला, 'आप कैसे हिसाब जोड़ते है मेरा। आपने कम जोड़ा है मेरा।' ताव का जवाब फैक्ट्स से देना चाहिए। मैंने उससे उसके काम की डायरी मंगवाई। सारी चीजे उसके सामने ही केल्क्युलेट करके दिखाई। फिर वो ढीला पड़ा थोड़ा। बोला, 'मेरा नुक्सान जा रहा है। मेरे काम से ज्यादा मेरे आदमियों की पगार बन जाती है।' अब थोड़ा सा, बिलकुल हल्का सा गर्म होते हुए मैंने उससे कहा, 'यह तेरी प्रॉब्लम है। मैंने तो सब कुछ जायज हिसाब ही किया है।' 


    वैसे भी मैं लेबर के मामले में कोई गलती नहीं करता है। दो नुकसान होते है अगर गलती लग जाए तो, एक तो लेबर चली जाएगी - मशीन बंद हो जाएगा। दूसरा वे लोग शारीरिक मेहनत करते है, इतनी धुप में भी, इस लिए नैतिक जिम्मेदारी भी मेरी बनती है कि उनका एक पैसा भी कम न लिखा जाए। इस लिए यह लेबर का हिसाब करते समय मैं सविशेष ध्यान रखता हूँ। फिर वह और ढीला पड़ते बोला, 'मैंने तो घर एक रुपया नहीं भेजा है, मेरे तो सारे पैसे यहीं ख़त्म हो जाते है। आप दो हजार रूपये दीजिए।' 


    अब मामला समझ आ गया मुझे, इसे दो हजार रूपये एडवांस चाहिए थे। बस इसी कारण से उसने फ़ालतू में यह हिसाब गलत है वाली थियरी चला दी। मतलब सीधे सीधे अगर पैसे मांगता तो मैं मना कर देता। उसने पूरा आधा घंटा खाया है मेरा.. फिर मैं भी उसे क्यों न सुनाऊँ? फिर उसकी बहुत सी गलतियां उसे बताते हुए आखिरकार दो हजार उसे दे दिए। अगले रविवार को वापिस करने के वायदे पर..! पैसो का मामला ही ऐसा है प्रियंवदा.. लोग बड़े बड़े बहाने मारते है। बच्चे के बीमार होने की बात तक बहाने में कर जाते है। एक है दुखीलाल.. उसका नाम तो बड़ा अच्छा है, भगवन विष्णु से जुड़ा हुआ नाम, लेकिन उससे जब भी उसके हाल पूछो, बोलता है, 'घाटा लग गया।' तब से नाम ही रख दिया, 'दुःखीलाल..'


    ठीक है फिर, शुभरात्रि। 

    (०७/०४/२०२५)


    वीभत्स अकेला कहाँ होता है? वीभत्स के पीछे पीछे ही तो भय भी चला आता है।.. read more


प्रिय पाठक,
जब दिन सिरदर्द और गूगल मैप्स के बीच बँट जाए,
और दुःखीलाल दो हज़ार ऐंठ ले —
तब भी Dilawarsinh दिलायरी लिख ही देता है।

पढ़िए, WWW.DILAWARSINH.COM

 पढ़कर बताइए कैसा लगा,
 कमेंट करिए दिल से,
 और शेयर करिए किसी दुःखीलाल को।


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1Comments
  1. paiso ke mamle me to bdi duvidha rehti hai..!!

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