गेंहूँ की महंगाई, दिलायरी और दोपहर की धूप || दिलायरी : ०८/०४/२०२५ || Dilaayari : 08/04/2025

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आदमी कमाता है खाने के लिए...

    और खाने जितना तो कमा ही लेता है। क्षमता है और फिर भी नहीं कमा पाता फिर तो जन्म नहीं लिया है, हो गया ही समजो.. है न प्रियंवदा..! बड़ा ही महंगा दिन है.. वो ट्रंप चाचा कब रुकवाएगा रशिया यूक्रेन युद्ध? कब यूक्रेन अपना गेंहू दुनिया को बेचे..? बताओ, पैदल १४०० किलोमीटर दूर बैठा यूक्रेन, यहां मुझे महंगा पड़ रहा है। क्या करे भाई, गेंहू के बिन गुजारा न होय..! प्रियंवदा, आदमी पर कोड़े बरसते हो तब वो शायद न भी चिल्लाये, लेकिन जेब कोई हलकी कर जाए तब वो चिंघाडे मार मार कर चिल्लाता है। अमरीका बहादुर भी शायद रोने वाला है, इस ट्रेड वॉर के कारण जब वहां की आम जनता महंगाई का सामना करेगी, तब बहादुर भी कांपेगा..!


Kaam ke saath saath baate karte Dilawarsinh...

आज दोपहर को कुछ काम था

    तो सुबह कार लेकर ही ऑफिस चला गया था। सुबह फ्री समय था, तो थोड़ी देर गुजरात के गढ़ वाली पोस्ट अपडेट की। और उसके बाद YQ में काफी सारा समय गुजारा है। लगा जैसे दोपहर बड़ी जल्दी हो गयी..! ठीक एक बजे मैं बस निकल ही रहा था कि एक काम आ धमका.. ऊपर से इंटरनेट अचानक से स्लो हो गया, काम ने और समय खाया मेरा..! फिर डेढ़ बजे निकला और क्या...! मार्किट पहुंचा, खरीदारी निपटा ली। घर आया, सारा सामान उतारा। अकेले हाथ शारीरिक श्रम करना वो भी तब जब मैं एक तिनके के दो टुकड़े करने तक की मेहनत नहीं करता, तब बड़ा ही क्रूर लगा वह काम मुझे। 


    सीधे कड़क धूप से घर आया था, कार की AC किसी की काम नहीं कर रही अपने यहां, सब भीगी पीठ लिए दीखते है। भूख तो थी नहीं, लेकिन तब भी मातृश्री ने जबरजस्ती बिठा दिया..! कुछ देर रूबिक्स क्यूब में उलझा रहा, और पौने तीन को बाइक लेकर मोटरसायकल लेकर ऑफिस गया तब असली गर्मी का ताण्डव अनुभव हुआ। वैसे आज कल-परसो के मुकाबले कब तापमान रहा था शायद.. क्योंकि मोटरसायकल पर उतना ज्यादा अनुभव नहीं हुआ। या फिर यह भी कारण होगा कि मैं ८०-९० की स्पीड पर ऑफिस गया था, इस लिए मेरा ध्यान नहीं गया गर्मी पर। 


    लंच के बाद तो थोथे निपटाने थे। अभी आठ बजे उन थोथो से सर ऊँचा कर पाया हूँ, और यह दिलायरी लिखने बैठा हूँ। वैसे आज की दिलायरी में बस यही दिनचर्या लिखकर यहीं अस्तु करने की सोच रहा हूँ। क्योंकि यह थोथे सारा दिमाग चाट गए है आज। 


    ठीक है फिर शुभरात्रि।

    (०८/०४/२०२५)


"प्रिय पाठक..!
अगर यह दिलायरी पढ़ते हुए कहीं आपको गर्मी की तपिश, जेब की हल्की सी हूक या रूबिक्स क्यूब का उलझाव अपना सा लगा हो —
तो बस एक बार मुस्कुरा दीजिए..!
फिर दिलायरी को किसी अपने के साथ शेयर करिए,
और कमेंट में लिख दीजिए...


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