रामनवमी, रैली और राज़ की बातें || दिलायरी : ०६/०४/२०२५ || रामनवमी || Ram Navami

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राजा रामचंद्र की जय..! 

    प्रियंवदा, आज का रविवार थोड़ा ठीक निकल गया, शायद गलती से, और थोड़ा ठीक नही भी था। कभी कभी हम कुछ बाते अनसुनी करते है फिर उसके परिणाम भी अनचाहे आते है, लेकिन कभीकभार वे परिणाम पसंद भी आ सकते है। ऐसा भी होता है कि आप निकले कहीं और हो, पहुंचे कहीं और हो, और फिर घूम फिरकर भी कही जाना पड़ जाए। यह जो रास्ते है, जो एक मंजिल पर पहुंचाते हैं, हमे उन रास्तो में से एक रास्ता ऐसा चुनना होता है जो यात्रा को थोड़ी सरल कर दे। मेहनत और समय कम लगे, ऊर्जा ज्यादा व्यर्थ न हो जाए। 


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रामनवमी और मंदिर यात्रा

    सुबह से एक तरह से शाम के लिए ही ऊर्जा बचा रह था शायद। सुबह मेरे प्रहरी ने ठीक छह बजे मुझे जगा दिया। मैंने ही कह रखा है, चाहे मैं कितने ही बहाने मारूं, छह बजे मुझे जगा ही देना। लेकिन आज जो बहाना मार उस के कारण मैं आठ बजे जगा। ठीक छह बजे जब मुझे जगाया गया तो मैंने कह दिया, आज तो सोने दो, रविवार है। और पता नही क्यो, लेकिन दोबारा मुझे जगाने की किसीने जहमत नही उठायी और मैं पसरा पड़ा ही रहा। आठ बजे उठकर नौ बजे तक तैयार भी हो गया था, तभी माताजी पधारे, आदेश मिला कि, आज रामनवमी है, मंदिर जाना है। 


    अपने को क्या है, बाइक का सेल मारना है। बड़े दिनों बाद मंदिर गया, शायद शिवरात्रि के बाद आज। हाँ मुझे शायद मेरे भगवन ने छूट दी है। बोले है तू ऑनलाइन स्टोरी / स्टेटस नही डालता है इस लिए तू हररोज मंदिर नही आएगा तो चलेगा। और मैं मान भी गया। खेर, मंदिर पर आज सामान्य ही भीड़ थी। शायद रविवार के कारण। बड़े शांतिपूर्वक शिवलिंग पर जलाभिषेक किया और फिर ऑफिस के लिए निकल गया।


पोरबंदर के बरडो और नक्शों की दुनिया

    रविवार, सरदार का बारह बजे तक आना, और फिर तीन बजे तक कि नौकरी, सब निश्चित है, कोई मीनमेख नही। अब दो घण्टे क्या टाइम पास किया जाए? मुझे ऐसे फ्री समय मे गूगल मैप्स देखना बड़ा पसंद है। पता नही क्या ज्ञान का समंदर मिल जाता है मुझे इससे.. खालीफोकट देखकर जी जलाने का काम है यह गूगल मैप्स पर सर्फिंग करना। सौराष्ट्र में पोरबंदर के पास पहाड़ियां है, 'बरडो' नाम से। काफी क्षेत्र में फैली हुई है यह पर्वतमाला। 


    किसी समय में पोरबंदर के जेठवा राणाओ के अधिपत्य में था, तो पोरबंदर राणाओ को उपाधि मिली थी, "बोंतेरसे बरड़ाना धणी"..! यह बरड़ा पर्वत पर बहुत प्राचीन स्थापत्य है। मैत्रककालीन। घुमली में नवलखा मंदिर है, सोनकंसारी का तालाब है, मैत्रक को की पूरी मंदिर माला है। प्राचीनतम शिल्पो से सुसज्जित..! अब यह सब मेप में देखते हुए इच्छा तो एक ही जन्मती है, कि चले चलो..! लेकिन इच्छाएं उत्पन्न होती है जिव जलाने के लिए। लेकिन मेरी घुमनेलायक लिस्ट में यह बरडो शामिल है। एक और जगह है, मोटी गोप के पास गोपनाथ  मंदिर है। वह भी पर्वत के ऊपर है। मुझे उस रस्ते से पहाड़ चढ़ना है। बहुत ही टेड़ा मेडा रास्ता है।


हीटवेव, ट्रक जाम और रूबिक्स क्यूब

    तीन बजे घर के लिए निकला.. सच में ही जैसे आग बरस रही थी। फोन में मेसेज भी आया हुआ था कि कच्छ में बहुत सी जगहों पर चार बजे करीब हीटवेव आने वाली है। सर पर हेलमेट, मुंह पर रुमाल, लेकिन आँखों का क्या किया जाए? वैसे चश्मा तो मैं सनग्लास जैसे ही पहनता हूँ, लेकिन तब भी आँखों में तो गर्मागर्म हवा लगती ही है। बाइक चलाते हुए यही लग रहा था, कि या तो अगले सन्डे दोपहर होने से पूर्व घर के लिए निकल जाना चाहिए, या फिर कार लेकर जाना चाहिए। कार ले जाने में और कोई समस्या नहीं है। 


    अपने यहां नेशनल हाइवे पर हररोज ट्रैफिक जैम लगता है। मोटरसायकल तो ट्रक्स के बीचमे गलियारे से निकल जाए, लेकिन कार तो बस ट्रक्स से पीछे रेंगती-सरकती ही आगे बढ़े..! इस लिए मोटरसायकल बड़ी अच्छी लगती है। कांडला और मुंद्रा के कारण दिनभर में हजारो ट्रक गुजरते है, कोई न कोई पलटी मार जाता है। फिर घंटो तक का ट्रैफिक जैम..! घर पहुंचा तो आँखे जल रही थी। हाँ ! हाथ के पंजे (नकल्स) जैसे अग्नि से निकले हो वैसी जलन हो रही थी। छत पर टंकी का पानी भी गर्म हो चूका था। होना ही था, आज की गर्मी और हीटवेव थी ही खतरनाक.. मुझे तो अभी से आने वाले दिनों की चिंता होने लगी है। 


    अभी तो अप्रैल की शुरुआत है बस, अभी से यही हाल है, तो आने वाले मई-जून में तो गर्मियाँ रेकॉर्ड तोड़ेगी.. और अपने यहां तो कॉस्टल एरिया है, सामुद्रिक तूफ़ान का खतरा खड़ा ही खड़ा.. पिछले साल तूफ़ान आया तब चार-पांच दिन बगैर बिजली के गुजारे थे। चार बजे के बाद तो हवाएं और गर्म होती बहने लगी.. मतलब सरकार जो आगाही करती है, सटीक तो होती है। फिर पांच बजे मैं चला गया मार्किट, एक तो मोटरसायकल धुलवानी थी, और एक रूबिक्स क्यूब लेना था। पहले तो गया अपने रेगुलर वाशिंग वाले के यहाँ, वह बंद पड़ा था। फिर थोड़े दूर एक और है, वह भी अच्छी वाशिंग कर देता है, और बाइक की ऑइलिंग भी ठीकठाक कर देता है।


शोभायात्रा: भक्ति या प्रदर्शन?

    लगभग आधे घंटे में बाइक एकदम तरोताजा और चमकने लगी। रामनवमी के अवसर पर अति-उत्साही किशोर (छपरी) अपनी स्प्लेंडर के साइलेंसर गरजाते बड़ी तेज गति में निकले। बाइक लेकर मैं मार्किट में पहुंचा ही था कि लगभग दस-बारह पुलिसवालों ने मुझे घेर लिया। बोले, 'भाई, आगे रैली आ रही है, वापिस मोड़ लो।' गुस्सैल और नकचढ़े पुलिसवाले को इतनी विनम्रता से बाते करते देख ख़ुशी हुई। मैंने वहीं साइड में मोटरसायकल खड़ी कर दी, और रैली देखने लगा..! लम्बी रैली थी। पिछले कुछ सालो से यह रैलियां निकालने का चलन अपने यहां बढ़ गया है। पहले नहीं हुआ करता था। रैली का फायदा कोई नहीं है, नुकसान है - दंगे का।


    और बेचारी पुलिस, अनुमति दे तो तो खुद ही ओवरटाइम करे, अनुमति न दे तो धार्मिक उत्सव को परेशान करने की बात चले उनपर। लगे पड़े थे वे भी व्यवस्था और कानून बनाए रखने की मेहनत में। कुछ देर में झांकियां निकलने लगी.. बड़े बड़े झंडे, रंगबिरंगी जीप - बोनेट पर प्लास्टिक के घोड़े लगाए हुए थे - बग्गी / तांगा की तरह..!  एक तो शीशमहल की तरह शीशगाड़ी थी..! अच्छी थी वह। उतने में बड़े ही कद्दावर हनुमान जी निकले.. लगभग  सात फिट ऊँचे, और बिलकुल जिम वाले मसल दिखाते हुए हनुमान जी। 


    मैं ईश्वर का मजाक नहीं उड़ा रहा। लेकिन हमारी कल्पना में हनुमान जी होने चाहिए अखाड़े की मेहनत से कसा हुआ शरीर वाले.. न कि जिम के प्रोटीन से अतिरिक्त निकले मसल वाले..! खेर, हनुमानजी के जाते ही दो लंगूर आ धमके.. लंगूर की वेशभूसा में दो लड़के किलकारी कर रहे थे, कभी इस झांकी की जीप पर लटकते, तो कभी उस जीप पर। बच्चे तो डर के मारे भागने लगे। तभी बहुत ही ऊँचे आवाज में आगे बढ़ रहा dj सिस्टम आगे आया.. उनके पीछे नंदी सवार महादेव जी आ रहे थे। उनके साथ भभूत में रंगे भूत थे। नंदी सवार महादेव जी अपने दोनों हाथो से वरदान देते आगे निकल गए। आगे चौक था। वहां उनकी परफॉर्मेंस थी। 


    भगवन नंदी से उतरे, उनके साथ आए भूतो ने चारोओर भभूत उड़ानी शुरू की। कोई कोई आग की लपटे मुख से फेंक रहा था। चारोओर एक काला धुआं पसर गया। मसलमेन हनुमानजी गदा उठा उठाकर गरज रहे थे। छाती चीरकर रामदरबार दिखा रहे थे। कुलमिलाकर परफॉर्मेंस बहुत अच्छी थी। आसमान में ड्रोन्स हरेक पर नजरे गड़ाए उड़ रहे थे। और चिल्लाता हुआ dj सिस्टम रामनवमी पर 'अगड़बम - अगड़बम' कर रहा था। लगता था भगवन रामेश्वर बहुत खुश थे प्रभु राम की इस नगर विचरण यात्रा में। एक और हनुमानजी थे, वे थोड़े सांवले थे, लेकिन मसल्स के मामले में दोनों बराबर थे। 


    यह झांकी यात्रा तो रुक गयी, और मैं निकल गया। कई सारे झांकियो के ट्रेक्टर्स के कारण रोड तो बंद था। मैंने एक गली से गुजरते हुए, दूसरा रोड ले लिया, जो सीधे एक हनुमान मंदिर निकलता है। रास्ते भर मैं यही सोच रहा था की क्या यह रैलियां सही है? क्या हम धार्मिक होने का दिखावा तो नहीं कर रहे? क्योंकि यह रामनवमी और शिवरात्रि जैसे त्यौहार तो भक्तिमय होने चाहिए। यह तो दिखावा है, भक्ति से बहुत दूर। धजा ले-लेकर चीखते चिल्लाते किशोर। साफा बांधकर इधरउधर भागते हुए कुर्ते-धारी बड़े-बूढ़े, धीमी ताल के ढोल-नगाड़ो के साथ रामभजन करने के बजाए बस ढिंचक ढिंचक करते dj साउंड सिस्टम। 


"अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌। दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌। 
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌। रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥"

 

    के बजाए, भरपूर मसल्स वाले हनुमानजी जो सौम्य के बदले डरावने दीखते है। हमारी प्राथमिकता, हमारे धर्म का उद्देश्य ही शान्ति है। शांति सौम्यता पूर्ण होनी चाहिए। भयजनक शांति नहीं होती। क्या यह सब उग्रता को बढ़ावा नहीं दे रहे? इन सब विचारमाला से मुक्त करने सामने ही हनुमान जी ने अपना मंदिर दिखाया मुझे।


बचपन की यादें और हनुमान मंदिर

    तब हमारा यह शहर आज जितना भीड़भाड़ वाला न था, अपनी हीरो की सायकल पर सवार होकर सुबह घर से पंद्रह मिनिट जल्दी निकला करता था। उन दिनों में बिच में एक बीहड़ पड़ता था.. सरकारी जमीन थी, लगभग दो-ढाई किलोमीटर में बस यह विदेशी बबूल आडेटेढ़े फैले हुए थे। उस बीहड़ के बिच से कच्ची सड़क सीधे ही यह हनुमानमंदिर के पीछे निकला करती थी। मेरा नित्यक्रम था, बचपन में मैं बड़ा हनुमानभक्त था। घर से सीधा यह हनुमानमंदिर, यहां मंदिर में बैठकर एक बार हनुमानचालीसा का पाठ करना, और फिर माथे पर एक लम्बा तिलक करके स्कूल जाना। पांचवी से नवमी क्लास तक यही नियम था, यही नित्यक्रम था।


    लेकिन फिर मिल्ट्री ने उस जमीन पर तारबंदी कर दी। रास्ता बंद हो गया। और मेरा उस हनुमान मंदिर जाना छूट गया। फिर तो रास्ता ही बदल गया था, अब तो महीने में एक बार यहां से गुजरना होता है, चालू बाइक पर ही हॉर्न-नमस्कार करते हुए मैं निकल जाता हूँ। लेकिन आज मन से इच्छा हुई एक बार दर्शन कर आता हूँ। और मैं चला गया मंदिर में। पुराने सारे नित्यक्रम याद आने लगे। कुछ देर वहां बैठा, अब तो मंदिर थोड़ा सा अपग्रेड हुआ है। बच्चो के लिए झूले लगाए है, बापा सीताराम को भी बिठाया है।


नाई की दुकान पर मिलिट्री कट

    फिर यही सब स्मृतियों को मन में घोलते हुए नाइ की दूकान की ओर निकल पड़ा। आज नाइ का लड़का अकेला ही लगा हुआ था, छह-सात आदमी बैठे हुए थे। अच्छी भीड़ होने का कारन यही था की लड़का अकेला ही था आज। लगभग पौने घंटे बाद मेरा नंबर आया। लड़का थका हुआ तो था ही। मैंने कहा मिल्ट्री कर दे। और उसने प्योर मिल्ट्रीकट कर दिया। बस गंजे से दो लेवल ऊपर..! मेरी एक समस्या है, नाइ की दूकान पर मुझे बैठे बैठे नींद के झौंके आने लगते है। और आज तो यह अकेला लड़का भी थका हुआ तो बाते नहीं की इसने कुछ। 


    मैंने आँखे खोली तब तक यह अपना कमाल दिखा चूका था। अब मैं परेशान.. कटे हुए बाल वापिस थोड़े लगते है? इसने कुछ ज्यादा ही कम कर दिए आज.. लेकिन नाइ की खासियत ही यही होती है, कि वह इतने ज्यादा तारीफों के पुल बांध देता है, कि आप उसकी बातो में आ जाओगे। 'हीरो लग रहे हो, मिल्ट्री के ऑफिसर लग रहे हो, बहुत गजब का लुक आया है, वगैरह वगैरह...' लेकिन यह बिलकुल ही छोटे बाल भी सही लग रहे थे। तो दाढ़ी नहीं बनवाई, सेट करवा ली बस। अब यहाँ से फ्री हुआ तो याद आया,  कुंवरूभा का वो रूबिक्स क्यूब तो लेना ही रह गया। मार्किट में तो वह रैली जा रही थी। फिर एक और जगह मार्किट है, वहां से ले आया। 


अंत में बातूनी मित्र और समय का हरण

    घर से खाना-पीना होकर निकला दूकान पर। वहां सोचा यह दिलायरी लिख लूंगा, लेकिन रामजी राजी नहीं थे। वहां एक मित्र आ गया, बड़ा बातूनी है, और मैने गलती से उसे बाजू में बैठने का निमंत्रण दे दिया। अगला भी फ्री ही था, बैठ गया। फिर उसने शुरुआत की लद्दाख में प्लान बाइक-राइड से लेकर उसने अफ्रीका में की हुई जॉब तक, कुछ दिन पूर्व पेट्रोल पम्प के पास लगी आग से लेकर गुजरात दंगो में जले शहरों तक..! ग्यारह बजा दिए। मैं सुनता रहा, वह बोलता रहा। आखिरकार मैंने मोबाइल निकालकर समय देखा, तब उसे शायद अंदाजा आया, और वह रुका और घर जाने के उठा। मैंने भी सीधे घर का रास्ता पकड़ लिया। और दिलायरी नहीं लिख पाया.. आज सोमवार की सुबह ऑफिस में बैठे लिखी है, और समय हो चूका दोपहर के ११:१४..


    चलिए अब विदा दीजिये..! राजा रामचंद्र की जय..!

    (०६/०४/२०२५)


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