इच्छाएं...! इनका कोई तोड़ नहीं है। || दिलायरी : ०२/०४/२०२५

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इच्छाएं, प्रियंवदा ! इच्छाएं...! 

इनका कोई तोड़ नहीं है। मैं वैसे तो आज दिनभर कुछ न कुछ सोचता ही रहा हूँ, लेकिन वे सारी सोच तथा विचार इच्छाओ के आसपास ही भटकती रही थी। जीवन में बहुत से संघर्ष होते है, कुछ वे जिनका हमे अनुभव होता है, कुछ वे जो हम कर जाते है पर हमारा ध्यान नहीं होता, या हमारी नजर में वह संघर्ष था ही नहीं, जबकि दूसरे किसी के लिए वह संघर्ष की श्रेणी में ही आता हो। हमारी क्षमता ही हमारा सब कुछ है।



काम ही काम था..

आज सुबह ऑफिस आया, तो काम ही काम था..! गाड़ियों के बिल्स, हिसाब, इन्ही में एक कब बज गया पता ही नहीं चला..! दोपहर को पडोसी का भी काम निपटा आया। हंमेशा की तरह काम के साथ साथ अन्य विषयो में भी मैं प्रवृत्त रहता हूँ। एक स्नेही मित्र से चर्चा हो रही थी, विषय को ही लेकर.. लेकिन वे तो विषय के मामले में इस बार मुझसे भी दो कदम आगे निकले.. बोले विषय तो आप बताओ। यहां खुद का कुआँ खाली पड़ा है। हालाँकि, उनसे चर्चा के पश्चात यूट्यूब पर मेरी आदतन मैं काम करते हुए एक विडिओ चला दिया। उसके खत्म होते ही ऑटो प्ले ऑन होने के कारण यह रामजी लाल सुमन वाला मामला सामने आ चढ़ा..! मुझे लगता है, हमे क्या जरुरत है उन ऐतिहासिक पात्रो पर टिपण्णी करने की? अरे भाई साहब आप श्रीमान सांसद है, आप जनता के मुद्दे उठाइये, भड़काइए मत। दूसरी बात, एक कोई उनका सपोर्टर इस मामले में जातिवाद घसीट लाया, बोला 'पिछड़ी जाति का है इस लिए उसके वहां तोड़फोड़ हुई..' उनसे कहना चाहता हूँ कि, 'महाशय, आप तो अपना देखिए, यह तो वही बात कर दी आपने कि बानी ऐसी बोलिए, जम के झगड़ा होए...' मतलब हद ही है, उधर सपा के मुखिया ने हाथ ही खिंच लिए मुद्दे से। कहाँ एक तरफ हम लोग AI जैसी टेक्नोलॉजी के करीब जाना चाहते है, और यह बूढ़े लोग अभी तक पुरानी रीती के राजनीती के दांव खेलने से फ्री नहीं हो रहे है। अरे कम से कम राणा सांगा का एक राजवी के अधिकार से ही मान रख लेते। उस आदमी के शरीर पर अस्सी घाव थे, आपके घर पर एक पथ्थर उड़ता आए तो रं*रोना करने लगते हो। कम से कम उस युद्धवीर का तो मलाजा रखिए।


प्रसिद्द स्वामीनारायण संप्रदाय

उसके बाद ध्यान गया मेरा गुजरात के प्रसिद्द स्वामीनारायण संप्रदाय के साधुओ की साधुता पर कलंकित कृत्यों पर। मुझे इस पुरे स्वामीनारायण संप्रदाय में एक मात्र उनके स्थापत्य ही अच्छे लगते है। बाकी उनकी तमाम पद्धतियां मुझे जरा पसंद नहीं आती। मेरे पहचान में कई व्यक्ति है, जो इस संप्रदाय से जुड़े है। उत्तर प्रदेश के गोंडा - अयोध्या से नजदीक छपैया गाँव में ब्राह्मण कुल में जन्मा घनश्याम पांडे, गुजरात में आकर रामानंद स्वामी से दीक्षा लेकर साधु हुए और दीक्षा के पश्चात उन्हें नाम मिला सहजानंद। और बाद में जाकर उसी सम्प्रदाय द्वारा उन्हें भगवान स्वामीनारायण का पद दिया गया। वैसे उनकी साधुता को वंदन, लेकिन इस परंपरा में बाद में बहुत सा साहित्य छपा, जो सिर्फ और सिर्फ स्वामीनारायण सम्प्रदाय को सर्वश्रेष्ठ कहने लगा..! आज हालत यह है कि इनके साधु अपनी कथाओ में पौराणिक देवी देवताओ के प्रति अपमानजनक बाते करते है। बाते भी उस हद्द की कि स्वामीनारायण संप्रदाय के एक साधू ने लघुशंका की, तो उसमे ब्रह्मा बह गया। भगवान शिव स्वामीनारायण संप्रदाय की कथा सुनने के अधिकारी नहीं है। मतलब अलग ही लेवल पर चल रहा है यह स्वामीनारायण संप्रदाय। और अब तो हाल यह है की इनकी गुरुकुलों से खबरे लिक होती है। "गुरु ने शिष्य पर किया सृष्टि विरुद्ध का कृत्य.." कहाँ उस सहजानंद स्वामी ने मार-काट पर रोक लगवाई, लोगो को धर्म से जोड़ने का कार्य किया, हिंसक प्रवृति से जुड़े राजाओ को सद्मार्ग पर लाए, और एक आज के यह उसी परंपरा के 'कुछ' स्वामी है, जिनसे स्वयं के 'काम' और जिह्वा पर ही नियंत्रण नहीं हो पाता है। सुधर जाओ, वरना सहजानंद का भी नाम ले डूबोगे...!


शारीरिक श्रम के नाम पर बस...

खेर, दोपहर बाद मुझे फिर से एक बार अपनी तबियत का ख्याल होने लगा..! कारण मुझे ज्ञात है मेरी तबियत क्यों बिगड़ती जा रही है। दिनभर ऑफिस में बैठा रहता हूँ। चाय पीते रहता हूँ। शारीरिक श्रम के नाम पर बस मोटरसायकल से घर आना जाना ही होता है। यह बड़ा घातक है। मैं जानता हूँ, समझता हूँ। इस दिनचर्या के मुख्य नुक्सान दो है, सुगर लेवल बढ़ता है, और रोगप्रतिकारक शक्तियां घटती है। उपाय एक ही है, शारीरिक मेहनत.. कसरत, या फिर सवेरे जल्दी उठकर जॉगिंग करना वगैरह वगैरह..! लेकिन इन सारे उपायों पर से आलसरूपी आवरण हटा नहीं पा रहा हूँ मैं। वैसे, एक बार फिर से अब गुजराती भाषा में जाने की तीव्र इच्छा हो उठी है, कारण है एक लेख को समय के आभाव में थोड़ा-थोड़ा पढ़ा है मैंने.. यात्रा वर्णन लिखने का जो तरीका है उनका, मुझे बड़ा पसंद आया..! अशुद्ध गुजराती-देशी शब्दों का प्रचुर प्रयोग, जैसा मैं पहले लिखा करता था, बोली की सारी ढब और अंदाज के साथ लिखी गयी बात सीधा प्रभाव करती है। मैं पहले उसी अंदाज में लिखता था, लेकिन इन साहब की लेखनी मुझसे तो कई आगे है। किसी दिन मैं भी कोशिस अवश्य करूँगा.. 


ठीक है अब समय हो चूका साढ़े आठ.. समयसर घर जाना अच्छी बात होती है। और अच्छी बातो का अवश्य ही अनुसरण करना चाहिए, है ना प्रियंवदा? चलता हूँ। 

(०२/०४/२०२५,२०:२२)


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