फिर से विचारशून्यता की ओर बढ़ गया हूँ।
क्या लिखूं प्रियंवदा? फिर से विचारशून्यता की ओर बढ़ गया हूँ। वैसे अभी अभी एक ख्याल आया है। कभी किसी का नुक्सान होता है तो ठीक उसी समय किसी का लाभ भी तो होता है। थोड़ा कठिन विचार है, लेकिन सत्य है, अनुभव किया है मैंने, तभी लिखा है। मैं वैसे भी आजकल अनुभव से लिख रहा हूँ। कल्पनाएं, या मनगढ़ंत बाते करता ही नहीं.. करनी चाहिए, मन हल्का उससे भी होता है।
यह जो कुछ मैं लिखता हूँ, अपने लिए लिखता हूँ।
सुबह ऑफिस पहुंचा, आज पहली एप्रिल थी। बुक्स बदलने का दिवस..! सुबह सुबह ऑफिस के लिए जरुरी स्टेशनरी के सामान की लिस्ट तैयार कर ली थी मैंने। बाकी उस लिस्ट की कमी गजा पूरी करेगा यही तय था। फाइल्स, बुक्स, नोटबुक्स, पुष्प, हार, पान के पत्ते, और भी बहुत कुछ..! कुछ देर में सरदार भी आ गया..! आज सवेरे समय मिला तो YQ पर भी चक्कर मार आया, और वह चोटिला वाला प्रवास वर्णन उधर भी शेयर कर दिया। वहां भी भरोसा था, एक मित्र के अलावा किसी का भी रिस्पॉन्स नहीं आता है। नहीं मुझे पब्लिसिटी नहीं चाहिए। यह जो कुछ मैं लिखता हूँ, अपने लिए लिखता हूँ। वहां कुछ देर उन मित्र से बातचीत हुई, फिर ऑफिस के कामो में लग गया.. गजे को मार्किट भेज दिया ताकि यह सारा सामान ले आये। और मैं लगा पहली तारीख के पहले दिन की बिल्लिंग्स में। व्यापारिओं का ऐसा मानना है कि आज के दिन कम से कम एक बिल तो बनाना ही बनाना है।
दो छोटे छोटे बिल बनाकर फ्री हुआ ही था, तो एक बज गया.. गजा सारा सामान ले आया था। दोपहर दो बजे हमने नई बुक्स का पूजन किया, हाँ मुहूर्त-वुहुर्त का कोई चक्कर नहीं है इसमें। बुक्स ही बदलनी होती है तो दिनभर में कभी भी कर लो। फिर दो-तीन मोतीचूर के लड्डू दबाए। और बैठ गए फिर से एक बार नौकरी करने..! काम तो था भी और नहीं भी। अभी सोच रहा हूँ की पडोसी का भी काम तमाम करना है, अरे अरे मेरा मतलब उनकी बुक्स भी तो बदलनी है, और अभी बज चुके है पौने आठ... कैसे होगा..! अगर वहां गया तो रात को बहुत लेट तक चलेगा..! व्ही मेरी आदतानुसार निर्णय न ले पाने की मेरी क्षमता अकाट्य है।
इन्शुरन्स पॉलिसी की पूछताछ
खेर, शाम को सरदार आया..! कल जो आग लगी थी, उसने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है। ऐसी आग में तो इन्सुरेंस भी मिल मिल कर कितना ही मिलेगा? सरदार ने कहा, अपनी पॉलिसी वालो से पूछिए, ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए? माल तो अपना भी बहुत बाहर और खुले में पड़ा रहता है। मैंने पॉलिसी वाले को फोन मिलाया, उसने बताया, बहुत से लोग अब इन्शुरन्स पॉलिसी की पूछताछ करने लगे है। मतलब उस आग से हुए नुक्सान के चलते पॉलिसी वालो का बड़ा फायदा होने लगा.. वही मैंने शुरू में कहा, किसी के नुक्सान में किसी का फायदा छिपा होता है।
दोपहर को इच्छा हुई की देखकर आते है उस प्लाट की हालत क्या है, लेकिन बाहर इतनी ज्यादा धुप थी, कि होंसले डगमगाए और तुरंत ही गिर पड़े..! दिनभर ऑफिस की छाँव में बैठा रहा। पुरानी बुक्स, और फाइलिंग सारी ठीक कर दी। नई बुक और फाइल्स कल से उपयोग में लेनी है। हाँ, कुछ देर राजवीरसिंह के लेक्चर सुने, कुछ देर मेप चलाया, और कुछ देर रील्स देखि.. इसी में आज का दिन समाप्त हुआ। और अन्धेरा हो चला...!
ठीक है प्रियंवदा, आज आगे कुछ लिखने को सूझ भी नहीं रहा है। इधर ही अस्तु कर लेते है।
शुभरात्रि।
(०१/०४/२०२५)
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विचार शून्यता तो इधर भी हो चली है भयंकर वाली !
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