आज वो वाला हाल है कि 'यह रोज रोज क्या लिखना है..'
क्या करूं प्रियंवदा, यही मेरा नित्यक्रम है। शाम होते ही तुमसे कुछ न कुछ बाते करनी ही होती है। वैसे आज भी दिनभर में ऐसा कुछ नही हुआ, जो मेरी कलम को थोड़ा और आगे खींच पाए। फिर भी तुम्हे संबोधित करते हुए लिखते रहने से, कम से कम आदत नही छूटेगी। यही उद्देश्य है। इस लेखनी को मैं चाहता हूं चलाते रहूं। प्रियंवदा ! हिंदी मेरी भाषा नही है इस कारण से कुछ सीमित शब्दो मे ही मैं सिमट कर रह जाता हूं। जैसे कुछ रूपक देने हो तो वह भी गिने चुने ही उदाहरण होते है मेरे पास। नया कुछ पढा नही है काफी समय से। वैसे अब इच्छा भी नही होती है।
फिलहाल तो मैं लगा हुआ हूँ
मेरे एक ब्लॉग ड्राफ्ट को कम्पलीट करने में। कोई जल्दी नही है, जब तक पूरा होना हो, हो जाएगा। सुबह वही घिसीपिटी जीवनी को अनुसरते हुए ऑफिस पहुंचा। काम शाम को आना है वह भी स्ट्रेस वाला यह पता था। सुबह सबसे पहला काम ऑफिस पहुंचते ही गत दिवस की दिलायरी पब्लिश करने का किया। कल की दिलायरी में स्नेही का भी समावेश था तो उन्हें भेज दिया। फिर कुछ देर तो एक भाषा पर जोर आजमाने की कोशिश की, लेकिन निष्फलता से भरे मेरे हाथों में एक और निष्फलता ही लगी। वैसे थोड़ा थोड़ा तो सीख पाया हूँ। दूसरी बात हिंदी में भी वर्तनी की बहुत भूल होती है मुझसे। कहीं 'मुझे' की जगह 'मुजे' तो कहीं पर 'जूठ' लिख देता हूँ 'झूठ' की जगह.. 'धूप' को 'धुप' या 'धूल' को 'धुल' लिखना भी जैसे सामान्य हो चुका है। लेकिन इनपर अब कोई कोई ही ध्यान देता है। जहां सूचना मिले वहां सुधार कर लेता हूँ।
वैसे प्रियंवदा, मुझे लगता है तुम से दूर हूं वही अच्छा है।
क्योंकि तुम्हारा स्मरण अनिवार्य नही है मुझे। जैसे हर कोई हर किसी के बिना भी जी ही सकता है। फिर भी हाँ, तुम्हारे नामस्मरण बिना भी मेरा दिन नही निकला होगा। पुनः दोहराता हूँ, प्रेम में मेरा कोई विश्वास नही है। इसे प्रेम न समझा जाए। मैं इतना समझता हूं कि मुझे तुम्हारे प्रति एक आकर्षण है। मुझे तुमसे दूर रहकर जितनी बैचेनी होती है, उतनी ही तुम्हारी छवि देखकर शांति.. मुझे अफसोस भी होता है कि तुम मेरे भाग्य में क्यों नही हो? मैंने कामना तो ऐसी ही की थी, लेकिन कुछ कामना असंभव होती है। बारहसिंगा कस्तूरी नही पा सकता। वह घनी झाड़ियों में अपने सींग भिड़ाकर तड़फता रहता है। मैं कामना तुम्हारी करता हूँ, जबकि जानता हूँ कि यह विचार ही आधारहीन है। फिर भी विचार तो बेरोक बहा ले जाते है मुझे कि काश तुम मेरे साथ होती। मुझ पर तुम्हारे प्रभाव का नियंत्रण होता.. पर अफसोस.. मैं बहुत आगे हूँ तुमसे।
दोपहर को गजा जब मार्किट गया था तो उसे कुछ नाश्ता लाने को कहा था, लेकिन जब वह ऑफिस में आया तो हांफ रहा था जैसे मेरेथोन दौड़कर आया हो। दोपहर 12 से 4 बाहर न निकलने की गाइडलाइन्स है। लेकिन काम होता है, जाना पड़ता है। इस वर्ष तापमान कुछ ज्यादा ही तेजी और जल्दी से बढ़ गया है। आते ही बाहर की गर्मी का उससे विवरण सुना, और फिर कुछ देर आराम करने चला गया वह। सरदार अचानक से दूसरे शहर गया है, बुधा भी अपने पारिवारिक प्रसंगों में उलझा छुट्टियों पर है, और एक और स्टाफ कम है। फिर भी काम तो मैनेज हो जाता है। शाम होने तक में ड्राफ्ट-लिस्ट में बस दो-तीन नाम ही और चढ़े। फिर एक बिल बनाना था, साढ़े सात उसी में बज गए। दिलायरी आज ऑफिस पर शुरू ही नही कर पाया।
घर आकर ग्राउंड में बैठने जा रहा था तो कुँवरुभा ने साथ आने की जिद्द पकड़ ली। ग्राउंड में ढेर सारा रोड़ी पत्थर, रेती और सीमेंट पड़ी है। ग्राम सड़क योजना में एक रोड बन रहा है। कुछ वर्ष पूर्व आरसीसी रोड बना तो था, लेकिन वर्षा और ट्रक्स का भार जैल नही पाया, सरिए तक बाहर को झांकने लगे थे। तो उस ग्राउंड में आजकल इन ढेरो पर चढ़कर लोग बैठते है, रेत में बच्चेलोग खूब खेलते है। दोपहर को ताप से तपे हुए शरीर पर रात का यह ठंडा पवन जैसे मरहम लगाता है। रेत में खेलकर कुँवरुभा घर जाने का तो नाम ही नही ले रहे थे। फिर जैसे तैसे उन्हें समझाबुझाकर घर ले आया, ताकि मैं यह तुम्हारे साथ शब्द-चौपड़ खेल सकूं प्रियंवदा। फिलहाल छत पर इतनी बढ़िया हवा चल रही है कि ac फैल है इसके आगे।
वो फनिरुद्धाचार्य तो अब गजब की बाते करने लगा है
अरे प्रियंवदा ! वो फनिरुद्धाचार्य तो अब गजब की बाते करने लगा है। कहाँ पहले वह बालिश हरकते करता था, अब तो जैसे राजू बन गया जेंटलमैन..! बड़ी सही बाते करने लगा है वह। शायद समय ने सिखाया हो उसे भी.. पर मैं नही सिख पाऊंगा, मेरी इच्छाओं पर नियंत्रण करना मुझे नही आता। तुम्हारा साथ पाने की इच्छा.. तुम्हारे साथ सदैव रहने की इच्छा.. आदमी अक्सर जो नही है उसीके पीछे भागता है। जैसे मैं तुम्हारे पीछे..
सही है, भागते रहना चाहिए, रुक गए तो चूक गए।
शुभरात्रि
(१६/०४/२०२५)
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