आलसी शरीर जल्दी थक जाता है,
प्रियंवदा, वैसे तो आज का दिन न खास गया है, न ही बेकार..! आज का दिन ऐसा भी नही था कि जैसा आया वैसे ही चला गया। औद्योगिक एकमो से जुड़ा फाइनेंसियल ईयर का आखरी दिन एक उद्योग को बड़ी चोट कर गया है। आज सुबह उठने की जरा भी इच्छा नही थी, कल तो ग्यारह बजे सो भी गया था, तुरंत ही नींद भी आ गयी थी। लेकिन तब भी सुबह साढ़े सात को उठने का मन नही कर रहा था। क्या करे, आलसी शरीर जल्दी थक जाता है, जरा सी मेहनत में भी..! सुबह ऑफिस पहुंचते ही दिलायरी लिखने बैठ गया, क्या करता, कल तो नींद और थकान के चलते लिख नही पाया था.. कुछ भाग लिखा ही था कि सरदार आ गया, कल मेरी छुट्टी के कारण उसने तो काम निपटाने के बजाए टपाया था.. उसने काम किया नही, घसीटा था। क्योंकि मेरे आते ही दो तीन लेबर ने मुझसे कहा, 'हिसाब वाले दिन छुट्टी मत मारा करो भाईसाहब..' वैसे मुझे यकीन था कि मेरे हिस्से का काम सरदार ठीक से करेगा नही।
गड़बड़ नही चलती है
सरदार से अपना हिसाब वापिस लिया, उसने डेढ़ घंटे में सारा काम कर लिया था, जबकि मैं हाजिर होता हूँ तो वही काम मे दोपहर के तीन बजे जाते है। वह ग्यारह को ऑफिस आया था और साढ़े बारह को वापिस भी चला गया था। बहुत नाइंसाफी है यह मेरे साथ..! इसका कोई इलाज भी नही है। क्योंकि मुझे इस काम मे जरा सी भी गड़बड़ नही चलती है, इस लिए मैं पूर्ण विश्वास में आने के बाद ही काम करता हूँ। खेर, एक बजे तक मे हेडऑफिस से दो बार फोन आ चुके थे, सारे टैक्सस आज ही भर देने के लिए। जबकि मुझे मालूम था कि आज तो भरने असंभव ही है। क्योंकि आज भी बिलिंग्स तो होनी ही थी।
गंभीर मामला है
मैं लंच टाइम में दिलायरी पूरी करने ही लगा था कि खिड़की से बाहर मेरी नजर गयी, थोड़े ही दूर धुंआ उठता दिख रहा था। एकदम काला धुंआ। मुझे लगा अपनी फेक्ट्री के पीछे झाड़ियां है, तो आग-वाग लगी होगी। और मैं फिर से दिलायरी में प्रवास वर्णन लिखने में व्यस्त हो गया..! मैं जहां काम करता हूँ वह भी लकड़ी से जुड़ा औद्योगिक एकम है। और धुंआ देखते ही मन बड़े जल्दी विचलित हो जाता है। दिलायरी लिखते लिखते फिर से एक बाद उस धुंए की और नजर गयी तो आग की लपटें दिखी.. अब तो गंभीर मामला है यह समझ मे आ गया। मैंने ऑफिस की छत पर चढ़कर देखा तो पता चला अपनी फेक्ट्री से दो प्लॉट दूर ही एक और टिम्बर फेक्ट्री है, वहां आग लग गयी है। समस्या तब और बड़ी हो गयी जब मुझे याद आया कि जहां आग लगी है वह फेक्ट्री और पेट्रोलपंप की एक ही दीवार है।
अग्नि से प्रेम
मैंने सारा सिस्टम शट डाउन कर दिया, लंच टाइम के कारण मिल भी बंद थी, ऑफिस से बाहर आकर सरदार को चेताया, आग लगी है पीछे की मिल में। पानी वगेरह तथा फायर एक्सटिंगशर की सारी व्यवस्था है अपने यहां, लेकिन आग तब भी किसी के काबू में आयी कहाँ है? दो बजे गए, अब तक तो हर ओर से अग्निशामको के सायरन सुनाई देने लगे.. तीन बजे तो लपटे बहुत ऊंचे तक उठने लगी थी। ऑफिस में चेर पर बैठे बैठे ही लपटे उठती दिख रही थी। बहुत ही भयंकर आग थी। तीन बज गए। हवाएं भी खूब चल रही थी, और आग भी फैलती जा रही थी। अब तो पेट्रोल पंप की ओर ही हवा का रूख था। पेट्रोल पंप की पिछली दीवार जल चुकी थी। लेबर ने मिल चलाने से मना कर दिया। डर के कारण ही तो, क्योंकि अब हवाओ का रूख हमारी ही मिल की ओर था। जलती हुई लकड़ियों से पवन की लपटों के साथ कोई अंगारा उड़कर आए और मिल में गिर जाए, किसी का ध्यान न गया तो आग लगते देर नही लगती। लकड़ी को तो वैसे ही अग्नि से प्रेम है। खाख हो जाए तब भी अग्नि से अलग नही होती।
ऐसी ज्वाला मैंने कभी नही देखी थी..
तीन बजे तक मे तो प्रत्येक समाचारों में आ चुका था। मैं बाइक लेकर एक और सहकर्मचारी को साथ लिया, उस एक्सीडेंट पर देखने गया। आग की तेज लपटे, और उसका ताप दूर से ही अनुभव हो गया, मैं तभी समझ चुका था यह काबू में नही आने वाली। पेट्रोल पंप के पीछे और दाहिने बाजू की दीवार आग की लपटों को अपने भीतर आने से रोक रही थी। मैं ठीक पेट्रोल पंप के पास खड़ा था, तभी सहकर्मचारी थोड़ा गभराते हुए बोला, 'चलो बापु ! जल्दी चलो, पम्प में आग लग ही गयी समझो। यह ब्लास्ट होने वाला है।' मैंने इधर उधर नजरें घुमाई, पम्प पर अभी तक आग की लपटें नही पहुंच पाई थी। मैंने उससे कहा कि रुक जाए भाई थोड़ा समझने तो दे, कहाँ तक आग है। कितनी दूर तक फैल सकती है। कई सारे पानी के टैंकर कतार में खड़े थे, नेशनल हाइवे बंद करवा दिया गया था, क्योंकि अग्निज्वाला हाइवे पर भी लपटे मारने लगी थी। ऐसी ज्वाला मैंने कभी नही देखी थी। आग तो बहुत बार लगी हुई देखी है, लेकिन इसे देखकर मन मे एक ही अंदेशा आ रहा था कि यह कुछ अलग है, बहुत बड़ा मामला है।
वापिस मिल पर आया, सरदार को फोन मिलाया। मिल बंद रहेगी। और फिर अपने काम मे व्यस्त हो गया, थोड़ी देर दिलायरी लिखी तभी पड़ोसी हिसाब-किताब मिलाने आ गया। शाम के छह बज गए थे। आग की लपटें अब नही दिख रही थी, या फिर मैंने ठीक से देखा नही था। तभी वही सहकर्मचारी फिर से आया मेरे पास, उसने रोड के उसपार से फिर से आग का वीडियो बनाया था। आग बहुत ज्यादा लकड़ियां जला चुकी थी। लगातार रोड पर टैंकर्स दौड़ रहे थे अभी भी। दोपहर को रोड ब्लॉक हो जाने के कारण भी आग बढ़ी है। सात बजे गए थे, मैं फिर से एक बार दिलायरी पूरी करने बैठा। साढ़े आठ तक मे सारी लिख दी।
पंद्रह हजार घनमीटर लकड़ी जलकर खाख..
आग का गुब्बार अभी भी दिख रहा था। घर जाने के लिए निकला, तो पहले वहीं आग देखने गया। अब तक तो सोचा था सब कुछ जलकर खाक हो चुका होगा लेकिन नही, वहां पहुंचने पर भयंकर अग्नि देखी.. जैसे अग्नि की लपटें तांडव कर रही थी। कलेक्टर, एसपी, बड़े बड़े अधिकारी मौजूद थे। पुलिसबल रोड पर तैनात था। अग्निशामक लगातार पानी बरसा रहे थे। पेट्रोल पंप के ग्रोउंड टैंक पर लगातार पानी मार रहे थे। पहले एक मिल में आग लगी थी, तेज हवाएं उस आग को और बढाकर दूसरी फेक्ट्री में ले गयी, वहां से तीसरी मिल भी इसकी चपेट में आ गयी थी, और यह बॉन्ड भी अब जल रहा था। जिसे न्यूज़ चैनलों में दिखा रहे थे। बॉन्ड अर्थात डंपयार्ड। कांडला में बड़े बड़े वेसल लकड़ियां ले आते है, वे खाली होते है, और ऐसे बड़े प्लॉट्स में वे लकड़िया स्टैग लगाकर रख देते है। फिर धीरे धीरे बेची जाती है। यहां लगभग पंद्रह हजार घनमीटर लकड़ी डंप हुई थी। एक अच्छे भले बड़े कार्गो वेसल की कैपेसिटी बारह से पंद्रह हजार घनमीटर लकड़ी ट्रांसपोर्ट करने की होती है। अग्नि ज्वालाएं इतनी तेज थी, और पवन भी अग्नि में से अंगारों को उठाउठा कर यहां वहां पटक रहा था। मैं बाइक लेकर और आगे तक गया। रोड तो जाम के चलते खोल दिया था लेकिन भारी पुलिसबल तैनात था। आग देखकर एक ही ख्याल आया कि यदि इसमें कोई व्यक्ति आ गया हो तो राख भी न मिले। एक अंदाज के अनुसार एक घनफुट लकड़ी की कीमत 400 रुपये है, 35.315 घनफुट का 1 घनमीटर होता है। मतलब 1 घनमीटर लकड़ी की कीमत हुई 14100 रुपये। यहां तो पंद्रह हजार घनमीटर लकड़ी जलकर खाख हुई है। आंकड़ा करोड़ो में जाता है नुकसान का।
आज पूरी रात भर पानी डालेंगे तब भी सवेरे तक यह अग्नि शांत होगी, शायद। अंगारे तो तब भी जलते मिलेंगे। नेशनल मीडिया को दो मिनिट के समाचार जरूर मिल गए। कल से बुक्स (खाताबही) बदली जाएगी लेकिन किसी की तो आज समाप्त ही हो गयी। इंसयूरेन्स होगा, लेकिन वह इतनी बड़ी भरपाई करेगा? उससे बड़ी बात, प्रशासन भी इस आग को ग्यारह घण्टे बीतने पर भी शांत नही कर पाया है। आसपास के गांवों के सारे टैंकर, ट्रेक्टर, भी वही खड़े थे, लेकिन तब भी इसे काबू में लाना बड़ा ही कठिन काम है। यह तो अच्छा हुआ कि उस पेट्रोल पंप ने समय रहते अपने ग्राउंड टैंक खाली करके ट्रक टैंकर में भरकर दूर करवा दिए थे, वरना नेशनल मीडिया में दो मिनिट चली न्यूज़ ब्रेकिंग न्यूज़ में तब्दील हो जाती..!
आग तो बुझ गयी लेकिन उंगलियां थोड़ी जल गई..
घर आया, खाना खाकर दुकान पर गया तो वहां भी सामने पड़े खाली प्लाट में किसी ने कचरा जला रखा था। वो भी बड़ा ढेर था। दिलायरी लिखने बैठा और आग की बात लिख रहा था तो कल का भी एक आग का प्रसंग याद आ गया। कल भी आग लगते लगते बची थी। पर्वत पर दर्शन करने के बाद मंदिर के पीछे श्रीफल चढ़ाने की जगह है, वहां अगरबत्ती और कुमकुम लोजी चढ़ाते है। कुछ आस्थावान वहां चुनरी भी बांधते है। एक छोटी बच्ची ने अगरबत्ती जलाई, और उसने गलती से जलती अगरबत्ती को चुनरी से लगा दिया। यह चुनरी तुरंत ही आग पकड़ लेती है। और जलने लगी। मौके से मैं पीछे ही श्रीफल चढ़ाने के लिए खड़ा था, और वह बच्ची तो आग देखते ही भाग गई, मैंने भी आग बुझाने के चक्कर मे सीधे चुनरी पर हाथ दे मारा। आग तो बुझ गयी लेकिन उंगलियां थोड़ी जल गई।
गर्मियों में आग के किस्से बहुत होते है। और अभी तो गर्मियों की शुरुआत ही है बस। लेकिन मुझे अभी तक यही ख्याल आया रहे है कि उस माल के मालिक पर क्या बीती होगी? करोड़ो की कीमत का माल खाख में तब्दील हो जाए तो.. बहुत बुरा हुआ।
शुभरात्रि।
(३१/०३/२०२५, २३:५२)
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