"Dilawarsinh.com: एक लेखक की पहली वेबसाइट की कहानी" || दिलायरी : ०५/०५/२०२५ || My First Website..!

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"मेरी पहली वेबसाइट"


Dilawarsinh Website ki mathofodi me uljhe hue..!

    आज बहुत उठापटक हुई है प्रियंवदा..! खर्चा भी किया है। आदमी सिर्फ खाने के लिए ही थोड़े कमाता है? थोड़ा खुद पर भी तो खर्च करता है.. मौसम ने बाकी क्या करवट ली है प्रियंवदा। दोपहर से हवाएं इतनी तेज चल रही थी कि बारिश की आशंका बन ही गयी थी। और अभी चालू ही है।


पढ़ाई के अलावा सब कुछ सिख रहा था..

    सवेरे ऑफिस पहुंचा तब लगभग पौने नौ बज रहे थे। काम तो इतना खास कोई था नही क्योंकि सोमवार ही था। तो लगे हाथ फिर से chatgpt से बतियाने लगा। आजकल वही परममित्र सा बना हुआ है। इंसानों से ज्यादा अच्छा लगा मुझे.. कम से कम मूंह पर कह देता है। बात को दबाए नही रखता। आज नई शुरुआत भी की है मैने..! प्रियंवदा ! बहुत दिनों से.. सालो से मेरी आकांक्षा थी कि मेरी भी एक वेबसाइट हो खुद की। जब मैंने कंप्यूटर डिप्लोमा की पढ़ाई शुरू की थी तब से.. लगभग 2010-11 की बात होगी..! मैं वडोदरा होस्टल में रहकर पढ़ाई के अलावा सब कुछ सिख रहा था। गुजराती साहित्य से लेकर चालू बस की छत पर सिगरेट जलाने तक का सारा ज्ञान हांसिल किया था। बस कंप्यूटर इंजीनियर नही बन पाया। 


कीपैड फोन वाले दिन..

    उन दिनों ब्लॉगर की बहुत बोलबाला हुआ करती थी, ऑरकुट, याहू, जीमेल, और ब्लॉगर से धीरे धीरे फेसबुक ने सारा मार्किट कैप्चर कर लिया। इंटरनेट मोबाइल में आया जरूर था, लेकिन गूगल का होमपेज खुलने में ही काफी समय लग जाता। कीपैड फोन में बड़ी धिरजता से यूआरएल टाइप करते, और बड़ी मुश्किल से गेम डाउनलोड करते..! मुझे पूरा तो याद नही है कि मैं ब्लॉगर तक कैसे पहुंचा, लेकिन 2011 में मेरे पास ब्लॉगर पर एक ब्लॉग हुआ करता था। धीरे धीरे यह इच्छा और प्रबल होती गयी, और खुद की वेबसाइट होने तक बात पहुंच गई..! वर्डप्रेस पर ब्लॉग बनाया, लेकिन साइट का भाव वहां काफी ऊंचा लगता है मुझे। धीरे धीरे सीखता गया। होस्टिंग, डोमेन, सर्च इंजिन ऑप्टमैजेशन जैसे शब्द समझ आने लगे.. कीवर्ड्स तो हालफिलहाल में ऊपर उठे है, क्योंकि जब मैंने ब्लॉग बनाया था वर्डप्रेस का, उसका कोई तोड़ था ही नही इस कारण आज भी वह रैंक कर रहा है।


आखिरकार इच्छा पूरी जरूर की..

    लेकिन जीवनकी अन्य भागदौड़ में पीछे छूट गयी मेरी खुद की वेबसाइट की आकांक्षा। लेकिन पिछले कुछ दिनों में उस इच्छा ने फिर अपना सर उठाया.. और आखिरकार आज मैंने अपने नाम से डोमेन खरीद ही लिया। ब्लॉगर तो खुद ही फ्री होस्टिंग कर देता है, इस कारण होस्टिंग का खर्च करने की जरूरत पड़ी नही। SEO सेटिंग्स अभी भी सिख रहा हूँ। लेकिन पिछले कुछ दिनों में लगातार मैं अपनी पुरानी पोस्ट्स को अपडेट कर रहा हूं। उनके URL से लेकर पोस्ट के हैडिंग्स तक। फ़ोटो से लेकर हैशटैग तक.. 


दोपहर की दौड़..

    दोपहर तक खूब विचारमग्न रहा था कि डोमेन नाम तो तय था लेकिन बड़ी असमंजस बनी हुई थी .com या .in के बीच..! दोनो में मुख्यतः भेद बस ऑडियंस रिच का है। .com ग्लोबल ऑडियंस को टारगेट करने के लिए है, जबकि .in का फोकस मैनली इंडियन ऑडियंस पर फोकस करता है। खेर, जब खर्चा कर ही रहे होते है तो थोड़ा और सही, बस इसी कारण को आधारभूत बनाकर मैंने .कॉम लेने का तय कर लिया। दोपहर को मुझे थोड़ा काम था मार्किट में, तो गजे को भी साथ उठा लिया। काम तो छोटा सा था, बड़ी कड़क धूप को अचानक से बादल अपने पीछे छिपाकर एक उमसभरी गर्मी को न्यौता दे रहे थे। नाश्ता करके वापिस ऑफिस लौट आये।


    दोपहर बाद काम तो था लेकिन मैंने टाल दिया। डोमेन खरीदा और ब्लॉगर के साथ लिंक कर दिया। उसके बाद कुछ सेटिंग्स सही करनी थी, वे निपटाई, और फिर से अपनी पुरानी पोस्ट्स को ठीक करने में लग गया। हैडिंग्स से लेकर उनके url तक ठीक करने है मुझे.. अभी तक लगभग पाँचसौ से ज्यादा पोस्ट्स हो गयी है मेरे ब्लॉग पर.. लेकिन रीच के नाम पर मेरा परमस्नेही एक ही है, हाँ कुछ विदेशी ताकतों का जौर आ जाता है ब्लॉग पर कभी कभी.. लेकिन ज्यादातर यह स्नेही एकमात्र पालथी मारके बैठा होता है ब्लॉग पर।


सोमवार का संकल्प..

    Focus या goal, या फिर monday motivation.. जो भी कहना चाहो, कह लो.. फिलहाल, यही है कि मुझे अब इसी पर काम करना है। मेरे ब्लॉग से आय हो न हो.. लेकिन मेरी अपनी महत्वाकांक्षा जरूर पूरी होनी चाहिए। सेल्फ डिसिप्लिन कह लो या कुछ और, प्रत्येक पोस्ट्स पर जरूरी बदलाव सारे ही करने है मुझे। अब खुद से ही सोमवार का संकल्प कर लूं? नही हो पाएगा, क्योंकि संकल्प निभाने सबसे कठिन है इस दुनिया मे..! संकल्प करना बड़ा आसान है।


आंधी में ढंकी शाम..

    घर आया, और ग्राउंड में बैठने जा ही रहा था कि रास्ते मे मोबाइल में नोटिफिकेशन बजी, देखा तो सरकारी मेसेज था कि कच्छ में अगले 3 घंटे में तूफान आने की संभावना है। वैसे आसमान में बादल तो घिर ही चुके थे, और 'अंबालाल' (इनके बारे में किसी दिन विस्तार से बताऊंगा) ने पहले ही बता दिया था इस बारिश के बारे में, लेकिन यह बिनमौसम बारिश गिर गिर कर कितना ही गिरेगी सोचकर ग्राउंड में बैठा था। पत्ता आया, सिगरेट सुलगाई और एकदम से पवन का एक बड़ा झौंका आया.. बिजलियाँ गड़गड़ाने लगी, धूल मिट्टी उड़ने लगी, और मोटी बूंद बरसने लगी। दोपहर बाद उत्तर-पूर्वी कच्छ में ओले गिरने की खबर तो सुनी थी। समाचार वाले भी मजे लेते बता रहे थे कि 'लोगो ने पतीले ओले से भर लिए।' बड़ी तेज आंधी आयी तो मैं और पत्ता घर को निकल लिए। हाँ! ग्राउंड में कोई भरोसा नही कब किसका पतरा उड़कर आए..! भयंकर गर्मी से कुछ पल तो ठंड़कभरी मिली..! हवाएं इतनी तेज थी कि छत की बाहरी फ्रंट से एक टाइल भी गिर गयी.. हवाएं इतनी तेज चल रही थी घर के बाहर वाली कनेर इधर से उधर झूल रही थी। मुझे बड़ी पसंद आती है तेज हवाएं, और साथ मे बारिश हो तो और मजे..!


तुम बताओ प्रियंवदा, तुम्हे कैसा मौसम पसंद है..?


(०५/०५/२०२५)


प्रिय पाठक!
क्या आपने कभी अपने 'डिजिटल सपनों' को जीने की ठानी है?
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तो आइए — इस यात्रा में एक हमसफ़र बनिए!

पढ़िए यह पोस्ट — जो है ब्लॉगिंग, भावनाओं और बादलों के बीच बसी एक दिलायरी।

पढ़िए, शेयर कीजिए, और अपने सपनों को फिर से जगाइए।


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