प्रियंवदा, ये हफ्ता मुझे थोड़ा और मैं बना गया… || दिलायरी : ०४/०५/२०२५

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"प्रियंवदा, ये हफ्ता मुझे थोड़ा और मैं बना गया…"

    प्रियंवदा, ये हफ्ता थोड़ा मुझे बना गया, थोड़ा मैने इस हफ्ते हो बनाया। पैरेलल चलता है न वैसे बहुत कुछ, कुछ इसी तरह मैं और यह हफ्ता दोनो ही पैरेलल चले है, कभी वह हावी हुआ, तो कभी मैं। इसी हफ्ते ने मुझे अशांति भी दी, और शांति भी.. चिंता भी और खुशी भी..! यह हफ्ता मुझे थोड़ा और 'मैं' बना गया..



    अस्पताल, घर और ऑफिस.. वैसे तो इन तीन जगहों ने ही मुझे घेर रखा था। लेकिन यही असली जीवन की भागदौड़ है। स्वास्थ्य, संपत्ति और शांति.. यह तीनों जीवन मे हो तो फिर और चाहिए क्या? इन्ही तीनो के पीछे ही सब भागते है। जीवन के तीन हिस्से करने हो तब भी यही तीन मुख्य है..! आज वैसे यही समीक्षा कर रहा था मैं। सुबह ऑफिस जाने की कोई जल्दी नही थी, रविवार था न..! था इस लिए कहा कि अभी रात हो चुकी है। पता नही, रविवार को हमने आलस का ही जैसे दिन बना रखा है। लेकिन आलस भी अपने पूर्ण स्वरूप को पा नही सकती है, मेरे पास तो कतई नही।


आजकल रीच बढ़ाने का कीड़ा फिर से काटने लगा है।

    बड़े आराम से दस बजे ऑफिस पहुंचा। कल की पोस्ट तो वैसे ही शिड्यूल्ड थी, तो बस लिंक्स स्नेही को शेयर करनी थी। इंस्टा पर भी स्टोरी चढ़ा दी। आजकल रीच बढ़ाने का कीड़ा फिर से काटने लगा है। इस ब्लॉग को बहुत जल्द वेबसाइट में कन्वर्ट करने की सोच रहा हूं। सुबह और कुछ खास काम था नही, रोकड़ में कुछ कैश घट रहा था, मैंने कुछ मिला दिया, लेकिन बाद में जाकर बढ़ गया, तो थोड़ा सा जेब को नुकसान जरूर हुआ। पड़ोसी का भी काम तो निपटाना था, इसी चक्कर मे अपने यहां बड़ी जल्दबाजी से काम निपटा रहा था, तब भी दोपहर के दो बजे गए थे।


    फिर पड़ोसी ने ऑफिस की चाबी जहां रखी थी वहां से उठायी, और लग गया एक और नौकरी करने..! टैक्स भरने थे, भर दिए। रिटर्न के लिए डेटा तैयार करने थे, कर लिए। फिर सोचा ca से जो डेटा मिला है उसे इस कंप्यूटर में अपडेट कर दू। लेकिन तीन बज रहे थे, भूख भी लगने लगी। काम काम होता है प्रियंवदा, इससे समझौता नही किया जा सकता। ca वाला डेटा ओपन किया तो उसने कोई और डेटा ही मुझे दिया था.. बताओ, जिस काम के लिए मैं चार बजे तक रविवार को भी ऑफिस पर पड़ा रहा था, उसे छोड़कर अन्य सारे काम निपटा दिए। यह भी कोई बात हुई भला.. लक्ष्य के अलावा के सारे निशान सटीक लग गए..!


ज्ञान अर्जन करने का बहुत बड़ा स्रोत है वह...

    साढ़े चार बजे घर पहुंचा। कुँवरुभा अब भी स्केचबूक में लगे हुए थे। उनके हर आदेश सिर-आंखों पर है। बोले चश्मा चाहिए, चल पड़े मार्किट और क्या.. एक शूज और एक चश्मा.. शाम हो चुकी थी। फिर चला गया जगन्नाथ..! सोचा वहीं कुछ लिख लूंगा। लेकिन वहां कोई राजस्थानी शादी के कारण घूमर खेल रही थी औरते.. ढोली भी बेढंगा राजस्थानी ताल बजा रहा था। प्योर राजस्थानी ताल नही था। अब उस डिस्टरबन्स के बीच तो कैसे लिखा जाए? तो सोचा, हारे का सहारा बाबा नाई हमारा..! ज्ञान अर्जन करने का बहुत बड़ा स्रोत है वह। एक दो नंबर तो लगे हुए थे उसके पास, लेकिन आज अपन बीच मे ही घुस गए।


    मेरे हॉट सीट पर बैठते ही उसने ज्ञान का पिटारा खोल दिया। बोला 'जागीर ! भाभर का समाचार सुना या नही?'


    'हाँ! कुछ कुछ जाना है, लेकिन मैटर क्या थी?'


    'दरबारों ने सर खोल दिए ठाकोरो के..!'


    एक तो यह नाई, इनकी जुबान भी बड़ी कैंची सी चलती है..! आदर देते हुए यह मुझे 'जागीर' कहकर ही बुलाता है। उत्तर गुजराती है, वहां जागीर कहकर बुलाते है, और सौराष्ट्र-कच्छ में 'बापु' कहने का रिवाज है। या तो राजपूतो को बापु कहा जाता है, या फिर किसी संतपुरुष को। या तो राजपूतानी को 'बा' कहा जाता है, या तो किसी साध्वी माता को। दो-तीन दिन पहले बनासकांठा के भाभर में एक युद्ध हो गया। युद्ध ही कहा जाएगा उसे। क्योंकि इस मे भाले, डंडे और धारीये (एक पारंपरिक शस्त्र) निकल गए थे.. चार कोली ठाकोर गंभीर घायल हुए। नाई ने कैंची चलाते हुए जुबान भी चलानी शुरू कर दी। 'जागीर ! भाभर के दरबारों (राजपूतो को दरबार भी कहा जाता है।) को मान गए। क्या मारा है बाकी !'


    तो मैने उसे टोकते हुए कह दिया, 'लेकिन इस धींगाणे (युद्ध) का फायदा क्या हुआ? वे राजपूत जेल चले गए.. पीछे घर बर्बाद।'


    उसने कुछ देर मेरी ओर देखा, और बोला, 'जागीर ! यह क्या बात हुई भला? कोई धमकी देकर जाए तो उसके मारे भी नही?'


    'क्या मतलब?'


    'खोड़ासण के कोली ठाकोर धमकी देकर गए थे कि तैयारी में रहना.. कोई बाहर वाला अपने गांव में आकर धमकी दे जाए तो क्या करना चाहिए?'


    'हाँ वो तो ठीक है, लेकिन आजके समय मे यह सब मारामारी का कोई फायदा नही, आर्थिक नुकसान ज्यादा है।'


    'बापु ! आप तो बनिये की तरह बोलने लगे। वो ठाकोर आधे घंटे में लड़ने के लिए ही वापिस भाभर आए थे। लेकिन झगड़ा भी उन्होंने शुरू किया, और गंभीर भी वे ही हुए। बापु ! वहां तो आज भी दरबार बाहर जाते समय राजपूतानी को कहकर जाते है कि कोई भरोसा नही है, चूड़ियां कभी भी टूट जाए, तैयारी में रहना है हमेशा।'


    उसकी कैंची जैसी जिह्वा का कोई तोड़ नही मेरे पास। उसने जारी रखा, 'जागीर ! राजपूती जिंदा है अभी भी.. मरी नही। वट और वचन आज भी चलते है। वरना उस इलाके में कोली लोगों की तादात सबसे ज्यादा है। फिर भी कुछ कुछ गांवों में बसे राजपूतो का दबदबा कायम है। वैसे आपने सुना? इस मामले में भाजपा और कॉंग्रेस दोनो एक साथ आ गये.. एक ही पक्ष में.. भाजपा का धारासभ्य स्वरूपजी ठाकोर, और कांग्रेस की सांसद गेनिबेन ठाकोर दोनो ने इस मामले में अपनी जाति का पक्ष लेते हुए पुलिस पर दबाव बनाने के लिए रैली निकाली, लेकिन उसमे यह कोलीठाकोर की भीड़ और भड़क गई, कुछ बाहरी राज्य से आये ठेले वालो का नुकसान कर दिया, लेकिन लोकल राजपूतो की एक भी खुली दुकान पर कंकर तक नही चला..! जातिवाद है जागीर ! अपने यहाँ, सांसद तक जाति का पक्ष लेकर चलते है।'


    'वो सांसद भी तो इसी जाति के कारण ही है।'


    'वो बात अलग है बापु, लेकिन मैं नाई हूँ, मुझे इतना पता है कि ब्राह्मण और राजपूत यह दोनो कौम ऐसी है कि इन दोनों को अगर खून निकले तो वे और आक्रमक हो जाते है, दूसरे लोग गभराने लगते है.. जातिवाद तो इन दोनों में भी है, लेकिन बहुत सिमट गया है अब। कोई निचली जाती का खड़ा हो तो अब उसे कुर्सी भी दी जाती है, पहले की तरह जमीन पर नही बिठाया जाता। मैं तो नाई हूं, मुझे तो राजपूतो के घर मे जाने तक कि छूट होती है।'


    'अरे यह सब जाति-वाति छोड़ो, अब शहरों में कौन यह सब देखता है? गांवों में भी तो अब यह सब बहुत पीछे छूट गया है, और वैसे भी इन जातिवाद के चक्करों से ऊपर भी बहुत सारे मुद्दे है।'


    इन्ही सब पंचायत सुनकर बिल्कुल चकाचक हीरो बनाने के उसके भरचक प्रयासों के बाद मैं घर लौटा। भोजन करके ग्राउंड में बैठने चला गया। यहीं सब लिख रहा था। इस हफ्ते बाहत कुछ हुआ है, पाकिस्तान प्रतिदिन भय से कांप रहा है कि आज भारत सैन्य हमला करेगा, या कल करेगा.. और भारत बस कभी चिनाब का पानी रोक लेता है, कभी झेलम का। तो कभी दोनो ही साथ छोड़ दिया जाता है। उधर चिड़िया की चिरक सा कंग्लादेश भारत का नार्थईस्ट कब्जाने की सोच रहा है.. बताओ, बुलबुल बाज से पंगा लेना चाहता है। इसी सप्ताह में सरकारी अस्पतालों को मैंने अद्यतन अपडेट होते देखा, और इन्ही अस्पतालों में दर्दी के परिजनों को यहां वहां थूकते भी देखा। सुविधा सब दिला सकती है सरकार लेकिन सिविक सेंस तो हमे खुद से बनाना पड़ेगा न? 


इसी हफ्ते के आखरी दिन में बादलों से भरा आसमान भी देखा.. 

    हाँ आज पूरे दिन आसमान में बादल ही छाए रहे थे। लग रहा था जैसे बादल टूट पड़ेंगे आज तो.. लेकिन सुबह दो बूंद भर पानी गिरा था बस..! इस हप्ते शाखा भी नही जा पाया था कुँवरुभा का ध्यान रखने में। लेकिन इस हप्ते खबरे बहुत सुनी। दो गाने भी खूब सुने, 'फलक शब्बीर का साजना, और आदित्य गढ़वी का देवीस्तोत्र' यह देवीस्तोत्र तो इतना पसंद आया कि इसे तो कॉलरट्यून ही बना लिया है मैने।


    ठीक है प्रियंवदा, अब विदा दो और बताओ क्या तुमने कभी अपने एक सप्ताह की समीक्षा की है?

    शुभरात्रि।

    (०४/०५/२०२५)


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कुछ सवाल दीर्घायु होते हैं प्रियंवदा..!


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– दिलावरसिंह


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