संत-सैनिक हणुतसिंह: ध्यान, वीरता और युद्ध की गाथा || "Saint Soldier" - An Indian soldier whom even Pakistan called 'Fakhr-e-Hind'..

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संत-सैनिक हणुतसिंह: वीरता और साधना की गाथा

"संत सैनिक" - एक ऐसे भारतीय सैनिक जिन्हे पाकिस्तान ने भी 'फक्र-ए-हिन्द' कहा था।


'अनसंग हीरोज' शब्द इनके लिए सटीक बैठेगा। एक ऐसे सैनिक जो राजवी परिवार से थे। धीरी प्रगति के साथ सेना में लेफ्टिनेंट जनरल तक के पद तक पहुंचे थे। जिनका जीवनमंत्र ही था, 'विजय केवल अस्त्र से नहीं होती, विजय आत्मा की स्थिरता से होती है।' भारतीय सरकार द्वारा परम विशिष्ट सेवा मेडल तथा महावीर चक्र से सम्मानित। पाकिस्तान ने भी इन्हे सम्मानित करते हुए 'फक्र-ए-हिन्द' कहा था। वे स्पष्ट रूप से मानते थे तथा कहते थे, 'मृत्यु से मत डरना, बल्कि उस जीवन से डरना जिस में कोई उद्देश्य नहीं।'


एक राजसी परम्परा का पालनहार



6 जुलाई 1933 को पश्चिमी राजस्थान का कभी राजसी ठिकाना हुआ करता जसोल, ले. कर्नल अर्जुनसिंहजी के घर हणुतसिंह का जन्म हुआ था। 1949 में उन्होंने ने NDA में दाखिला लिया था, और वहां से सेकंड लेफ्टिनेंट का पद प्राप्त कर के सीढ़ी दर सीढ़ी प्रगति करते रहे थे। फ़ौज में 'जनरल हनूत' तथा 'HUNTY' नाम से वे बड़े प्रसिद्द है। एक फौजी की वीरता भी थी उनमे और एक संत सी शान्ति भी..! बहुत स्थिर मस्तिष्क से वे निर्णय लिया करते थे। और स्थिर और शांति से लिया गया निर्णय हमेशा सटीक ही बैठता है। 17वीं पूना हॉर्स रेजिमेंट में थे वे। हणुतसिंहजी कहा करते थे, 'युद्ध जीतने से पहले उसे मन में जीतो।' मतलब अगर तुम्हारा मनोबल अडिग है, तो बाहरी जीत निश्चित है। 1971 में जब पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान यानि की बंगालीओ पर अत्याचार करने लगी, और भारत के लिए जब बांग्लादेश बनाना अनिवार्य हो गया तब हणुतसिंहजी 17वीं पूना हॉर्स में थे, और शक्करगढ़ की लड़ाई हुई थी। बसंतर नदी की लड़ाई भी कही जाती है इसे। इस युद्ध में पाकिस्तान ने नए नवेले और अविजित माने जाते पैटन टेंक्स मैदान में उतारे थे। यह लड़ाई का क्षेत्र पठानकोट कश्मीर का रास्ता तोड़ देता, अगर पाकिस्तान यह लड़ाई जीत जाता। लेकिन हणुतसिंह के नेतृत्व में १७वीं पूना हॉर्स रेजिमेंट ने शानदार प्रदर्शन किया। वे पाकिस्तान के भारी बख्तरबंद हमलों का डटकर मुकाबला करते रहे। हणुतसिंहजी का युद्ध कौशल अद्भुत था। युद्ध के बिच कोई इतना शांत तथा निर्भीक कैसे रह सकता है उसका उच्च उदाहरण हणुतसिंह थे। उनके नेतृत्व में भारतीय टेंक्स ने ऐसा फॉर्मेशन किया की दुश्मन पूरी तरह से नष्ट हो चूका था। 17वीं पूना हॉर्स ने दुश्मन के कई सारे टेंक्स बर्बाद कर दिए थे। वही अमरीका के पैटन टेंक्स..! इसी युद्ध में उनके शौर्य पर उन्हें भारत का दूसरा सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार 'महावीर चक्र' मिला। 



शकरगढ़ सेक्टर भारत तथा पाकिस्तान दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र था। पाकिस्तान की मनोकामना थी कि इस क्षेत्र से वह भारत का जम्मू-कश्मीर से संपर्क तोड़ देगा..! लेकिन बिच में 17वीं पूना हॉर्स के कमांडिंग अफसर हणुतसिंह आ गए..! युद्ध शुरू हुआ तब हणुतसिंह को आदेश मिला था कि वे बसंतर नदी पार करके पाकिस्तान के भारी टेंको को रोके। पाकिस्तान ने इस इलाके में उस समय दुनिया के सबसे खतरनाक टेंको में से एक पैटन टेंक्स को लगाया हुआ था। 


उनका स्पष्ट मानना था कि 'डर शरीर में नहीं होता, डर मन में होता है, जिस दिन मन निडर हो गया, शरीर भी अमर हो जाता है।' वे मजबूत विश्वास के साथ रणनीति बनाते गए। रात के अँधेरे में भारतीय फौजियों ने बसंतर नदी पार कर ली। और एक मजबूत और सुरक्षात्मक स्थिति बना ली। अगले दिन पाकिस्तानी पैटन टैंक्स आग के गोले बरसाने लगे। हर तरफ से गोलियां और टैंको की गरज दहाड़ रही थी। बड़ा जोरदार हमला था पाकिस्तान की ओर से। पैटन टेंक अपने पुरे स्क्वॉड्रन के साथ थे। 


रणनीति — Camouflage और मन की स्थिति


उस समय हणुतसिंह अपने कमांड टैंक के पास बैठकर शांत मन से ध्यान कर रहे थे। - युद्ध के बिच में भी ! एक जवान ने घबराकर आकर उनसे कहा कि, 'पाकिस्तानी टैंक्स बहुत पास आ गए है, किसी भी पल बड़ा जोरदार हमला होने वाला है।' तब हणुतसिंह ने बड़े शांत और स्थिर स्वर में कहा था कि, 'पहले खुद के डर को हराओ, फिर बाहर के टैंक खुद हार जाएंगे।' फिर उन्होंने आदेश देते हुए कहा, 'अपना ध्यान स्थिर रखो, आग तब बरसाओ जब निशाना साफ़ हो। हड़बड़ाओ मत, जीत हमारी है।' 



लेकिन मुकाबला बड़ा कठिन था। दलदली जमीन में टैंक्स फसने लगे थे। टैंक्स को इस दलदली क्षेत्र में चलाना बड़ा मुश्किल ही काम था। लेकिन हणुतसिंह ने बड़ी खूब रणनीति लगाई थी, अपने भारतीय सारे टैंक्स को बड़ी चालाकी से और समझदारी से छिपा (CAMOUFLAGE कर) दिया था। और इंतजार में ही बैठे थे कि कब शिकार फंसे। जैसे ही उस दलदली जमीन में पाकिस्तान के पैटन टैंक्स फंसे भारतीय टैंक्स ने बड़ा धावा बोल दिया। कई सारे अजित माने जाते पैटन टैंक्स को हणुतसिंह ने लोहे का डिब्बा बना के रख दिया था। इस लड़ाई में भारतीय सेना ने दर्जनों पाकिस्तानी टैंक्स नष्ट कर दिए। कायर पाकिस्तान बड़ा नुकसान झेलते हुए वापिस भागा। हणुतसिंह का नेतृत्व निर्णायक साबित हुआ। उन्ही के संयम, समझदारी और साहस के कारण भारतीय सैनिको का भी मनोबल बुलंद था। अंततः भारतीय सेना की 17वीं पूना हॉर्स को 'बसंतर रिवर बैटल हॉनर' से सम्मानित किया गया। रणनीति तथा साहस से कोई भी दुश्मन पराजित किया जा सकता है। और सच्चा योद्धा अंतिम समय तक डटा रहता है चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। हणुतसिंहजी ने साबित कर दिखाया कि, 'सच्चा नेतृत्व वही है जो संकट की घड़ी में भी शांति और धैर्य बनाए रखे।'


विरासत और जीवन संदेश

उनका कहना था कि, 'ध्यान तथा युद्ध दोनों एकाग्रता मांगते है, बिना ध्यान के कोई असली योद्धा नहीं बन सकता। जनरल हनूत योद्धा होने के साथ साथ एक गहरे साधक भी थे। युद्ध तथा आध्यात्मिकता को उन्होंने एक साथ साधा था। वे गहन योग तथा ध्यान के अभ्यासक थे। रिटायरमेंट के बाद वे देहरादून के पास साधनारत जीवन जीने लगे थे। 'जैसे तलवार को धार चाहिए, वैसे ही आत्मा को साधना चाहिए।' उनकी विशेषता थी कि वे युद्धभूमि में तो निर्भय थे ही, लेकिन निजी जीवन में एक साधक की तरह शांत, आत्मनिष्ठ तथा संयमी थे। उनकी साधना, अनुशासन, और वीरता आज भी भारतीय सेना के लिए एक आदर्श है। उनका मानना था कि, 'सच्चा योद्धा न केवल बाहरी युद्ध लड़ता है, बल्कि अपने भीतर के अंधकार से भी लड़ता है।'


उस SAINT SOLDIER का 11 अप्रैल 2015 को देहरादून में निधन हो गया। उनका जीवन सन्देश यही था, 'साहस, सेवा और साधना - यही असली योद्धा का पथ है।'


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प्रिय पाठक,
क्या आपने कभी सोचा है कि वीरता सिर्फ अस्त्र से नहीं, आत्मा की गहराई से भी होती है?
अगर हणुतसिंह जैसे 'संत–सैनिक' की कहानी आपको प्रेरित करती है —
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