आधी रात का रोता आसमान
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Garaj..Garaj.. Aaj Megh Ghanan Ghanan Chhayo re.. |
प्रियंवदा ! तुम्हे रोते हुए को चुप कराना आता है? मुझे नही आता। मैं तो रोने देता हूँ, रोने वाला अपने आप एक समय पर चुप हो जाता है। तब तक बस उसके सामने चुपचाप बैठे रहो, या तो इग्नोर करो। रात के डेढ़ बजे छत पर अच्छी भली नींद में था। और अचानक से आसमान रो पड़ा। सिसकियां तो काफी देर से ले रहा था वो, लेकिन मैंने इग्नोर करता रहा। दो बजे तो उसकी गंगा-जमुनी बह पड़ी। बडी जोर से रोया, मैं उसे यूंही रोता छोड़ नीचे घर मे जाकर सो गया..! सुबह तक तो उसने रो-रोकर कीचड़-कीचड़ कर दिया था। गर्मी में अभिवृद्धि कर गया वो अलग से..!
चौसठ जोगणियों का मंदिर और कुंड
रविवार था, ऑफिस पहुंचने की कोई जल्दी नही थी। वैसे भी ऑफिस वाया तीर्थ जाना था। घर से तीसेक किलोमीटर दूर एक प्राचीन मंदिर है, चौसठ जोगणी वहां विराजमान है। एक कुंड है, जिसमे स्वयंभू पानी आता रहता है, खत्म नही होता। कोई भूगर्भ जलस्त्रोत होगा। इस मंदिर से पीछे कुछ ही दूरी पर समंदर है, लेकिन यहां यह जलकुंड मीठे पानी का है। खूब श्रद्धा से लोग यहाँ आते है, दर्शन करते है, कुंड में स्नान करते है, कुछ लोग तर्पणादि विधियां भी करते है। अन्नक्षेत्र चलता है, और गार्डन वगेरह बनाया गया है। फेमिली को वहां छोड़, मैं ऑफिस चला आया। आसमान रोया था, तो शायद बिजली रूठ गयी..! लाइट नही थी, ऑफिस का इनवर्टर भी बैठ गया था, और उमस बेरहम थी।
पुरानी तहसील और हथियारों की मंडी
लगभग दो बजे काम खत्म करके पैंतीस किलोमीटर उन लोगो को लेने गया। चलती कार में तो गर्मी अनुभव नही होती, लेकिन जैसे कहीं ट्रैफिक में फंसे, और गर्मी का आक्रमण शुरू..! बगीचे की लोन में कुँवरुभा खेल रहे थे। मैंने भरी दुपहरी देवी के दर्शन किये। और फिर हम चल पड़े, पास ही दूसरी तहसील है। वह भी बड़ा प्रसिद्ध नगर है, पुरातन काल से। वहां साड़ियां और हथियार का बड़ा बाजार है। शाम को घर पहुंचते हुए छह बज गए। घर से मोटरसायकल उठायी, और पहले तो उस 'वाछटीया' को नहलवाया, काफी दिनों से अघोरी अवस्था मे था। और फिर मैं चला गया नाई के पास। आज नाई इतिहास के मूड में था, बोला,
नाई की बातों में इतिहास की खुशबू
"जागीर ! यह आप लोगो के रजवाड़े गलत चले गए।"
"वो क्यों?"
"आप लोगो के रजवाड़े थे तो, हमें, चारणों को और ब्राह्मणों को सो-दोसो बीघा जमीन ऐसे ही मिल जाया करती थी। सरकार तो कुछ नही देती।"
फिर वो मुझसे इतिहास के प्रश्न करने लगा, उसने सोचा होगा, बापु को अपने इतिहास के ज्ञान से प्रभावित करता हूँ। हाँ, इसे अच्छा ज्ञान है, लेकिन वह कर्णोपकर्ण कहा गया इतिहास था। राजपूतो के विषय मे जो लोगो ने मुंहजबानी कुछ बातें याद रख ली थी वे बाते। इन बातों में थोड़ी सी अतिशयोक्ति सम्मिलित होती है। जैसे कि सौराष्ट्र के रा'नवघण ने सिंध पर चढ़ाई की तब नौ लाख की सेना लेकर गए थे। यह एक अतिशयोक्ति है। सिंध पर आक्रमण करके सिंध को परास्त किया था, यह इतिहास है। लेकिन नौ लाख की सेना उस समय मे अकेले सौराष्ट्रभर की हो यह सम्भव नही। ऐसी ही कई सारी बातें है, जो यह लोग बड़े चाव से सुनाते है। काव्य के रूप में प्रसिद्ध है, और काव्य अलंकारों से बना होता है।
जगन्नाथ मंदिर में भक्ति, भजन और चिलम
फिलहाल अभी ऐसे ही जगन्नाथ के मंदिर चला आया था। और यहां तो भजन कीर्तन चल रहे है। समझ तो कुछ नही आ रहा है, लेकिन सारे नौजवान झांझ बजाते हुए, ढोल या पखावज की ताल पर खूब उत्साह से गा रहे है। बीच बीच मे दोनो हाथ ऊपर करके झांझ बजाते हुए "राधे.. राधे.. राधे.." बोलते है। बड़ा मजेदार है। भजन की गति तीव्र है, तो उत्साह बढ़ता है। नाचने का मन कर जाए ऐसा बजा रहे है। हाँ ! बीच बीच मे चिलम भी चल रही है। एक दूसरे को दाएं हाथ मे दी जा रही चिलम को साफी लगाकर व्यक्ति दम खींचता है, और आसमान की और धुएं का गुब्बार छोड़ दे रहा है। भक्ति के लिये शायद बल ले रहे है।
नींद की दहलीज़ और आसमान की मनोदशा
चलो फिर, अब आ रही है नींद। समय हो चुका रात के साढ़े दस। आज बस आसमान न रोए तो अच्छा। आधी रात को रोता है। दिनभर तो मायूस सा काला मूंह करके बैठता है। दिन में एक आंसू नही टपकता। लेकिन रात होते ही बरस पड़ता है।
शुभरात्रि।
(१५/०६/२०२५)
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