उत्सुकता, बारिश और फिल्में: दिलायरी के भावपूर्ण दिन || दिलायरी : १६/०६/२०२५

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"प्रियंवदा, आज आसमान रो रहा है – और मैं भीग रहा हूँ उत्सुकता में..."



फिल्मों में खोया एक लेखक – ‘केसरी चेप्टर २’ की बात

    आसमान के रोने के दिन आ चुके प्रियंवदा ! गर्मियां भी लौटेगी, लेकिन उससे पहले आसमान भर भर के आंसू बहाएगा। आज सुबह से शाम बनाए बैठा। सूरज को धरती का मुख नहीं देखने दिया है उसने। साढ़े छह हो जबरजस्ती जगा हूँ मैं। रात को देर तक मूवी देखता रहा था। मैं वाकई विचित्र हूँ प्रियंवदा। वो बुक लायी पड़ी हुई है, लेकिन मैं आजकल फिल्मे देखने में व्यस्त हूँ। वैसे आजकल नहीं कहना चाहिए। मेरी वो क्रिमिनल जस्टिस भी आधी-अधूरी पड़ी है, पूरी देख नहीं पाया। सिटी ऑफ़ ड्रीम्स भी पूरी नहीं देखी..! बिच में केसरी चेप्टर २ देख ली। बड़ी सही मूवी है। शंकरन नायर को - अनसंग हीरो - को पुनः पहचान दिलाई है। 


    ब्रिटिश हकूमत काल में ऐसे कई सारे हीरोज थे, जिनको उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली। उन्हें तो शायद उनके पड़ोसियों ने भी नहीं याद रखा होगा। क्योंकि आज़ाद भारत में अपनी उन्नति में हर कोई व्यस्त हो गया होगा। जलियाँ वाला हत्याकांड - नाम सबको याद होगा। दायर ने अंधाधुंध गोलियां चलाई थी वह भी सबको याद होगा। सरदार उधम सिंह ने उसे मोत के द्वार पहुँचाया यह भी याद होगा। फिर भी यह केसरी चेप्टर २ के शङ्करं नायर के विषय में मैं नहीं जानता था। क्यों? क्योंकि कहीं कोई खबर सुनी ही नहीं थी उनकी। 


अनकहे नायकों को पर्दे पर लाने की ज़रूरत

    कहानी का दिग्दर्शन बहुत प्रभावकारी लगा मुझे। कैसे एक क्रांतिकारी  व्यक्ति को एक भारतीय वकील जेल हवाले करता है। फिर उसी जेल गए क्रांतिकारी के लड़के से प्रभावित होकर वह जनरल दायर के खिलाफ मुकद्दमा चलाता है। खुद की वकालत को दाव पर लगाकर भी वह, जनरल दायर को गुनहगार साबित करता है। अंत में सबसे सुंदर मेसेज, आज भी जालियां वाला हत्याकांड के लिए अंग्रेजो ने 'सोरी' तक नहीं कहा है। वाकई देखने लायक मूवी है यह। रोंगटे खड़े हो जाते है। आर माधवन, अक्षय कुमार, रेजिना कासनड्रा, और अनन्या पांडे। सबका अभिनय दमदार था। खासकर मजेदार और थोड़ा कुतूहल तब होता है जब गोरे हिंदी बोलते है। कुछ विदेशी कलाकार भी शामिल है इस फिल्म में।


उत्सुकता के बहाने बनी पहली ई-बुक

    रात को बारह बजे तक मूवी देखता रहा, और कल तो उमस भी खूब थी, और हवाएं जैसे थम ही गयी थी। नींद आते आते साढ़े बारह हो गए। सुबह ग्राउंड पहुंचा तब सात बज चुके थे। कुछ देर शारीरिक श्रम किया। और फिर घर। ऑफिस पहुँच कर दिलायरी पोस्ट की। उसके बाद कुछ नया सिखने के चक्कर में आज अपनी साइट पर पहली इ-बुक बनायीं। दो-तीन साल पहले यॉरकोट पर, एक मित्र के दिए टॉपिक पर, एक काल्पनिक और हास्य पूर्ण कहानी लिखी थी। उसे ही पीडीऍफ़ बनाकर अपनी साइट पर एक नया 'E-Books' नामक पेज बनाकर, पब्लिश की। कुछ नई चीजे सिखने मिली। एक बुक के लिए कवर पेज, टाइटल पेज, इंडेक्स, पूर्वभूमिका, आभार, और भी बहुत कुछ बनाना पड़ता है। सोचता हूँ ऐसी दो तीन और बना दू, वैसे भी कौन पढता है? एक स्नेही के अलावा। लेकिन थोड़ा भरा भरा लगे इसी कारन से दिलायरी नाम से एक और पीडीऍफ़ बनाने की सोच रहा हूँ। 


काव्य से पीडीऍफ़ तक – एक रचनात्मक यात्रा

    आज पूरा दिन वैसे तो अपनी पुरानी पोस्ट्स को SEO के लिए अपडेट करने में बिताया है। पूरा दिन, कंप्यूटर स्क्रीन के आगे बैठा रहा हूँ। लंच में आजकल सलाद पर भार है। हाँ ! दोपहर को फिर से एक बार अपनी उस आने वाली ट्रिप के विचारों ने घेर लिया था। लेकिन मैं मानता हूँ, किसी चीज के उतने विचार मत करो, कि फिर उसकी उत्सुकता के साथ समाधान हो जाए। क्योंकि अक्सर हमारी उत्सुकता हमारी हिमत बनती है, कुछ कर गुजरने को। उत्सुकता प्रेरकबल बनती है। बड़ी जरुरी भी है। उत्सुकता के वश हो कर ही मैंने यह वेबसाइट बनायीं, और आज उत्सुकता के वश हो कर ही पहली पीडीऍफ़ बुक। वैसे यह पहली बुक नहीं होगी, दूसरी है। पहली में मेरे अपने चुनिंदा काव्य थे, और उसे नाम दिया था, 'काव्य पुष्प कलिका'.. उसे कहीं भी शेयर नहीं की थी। अपने पास ही संभाल कर रखी है।


उत्सुकता: एक प्रश्नवाचक आत्मा की दास्तान

    यह जो उत्सुकता है न प्रियंवदा, बड़ी मायावी है। बचपन में उत्सुकता होती थी, "क्या चाँद पर कोई बुढ़िया बकरी चरा रही है?" थोड़े बड़े हुए तो उत्सुकता हुई, "क्या बोर्ड के एग्जाम बाघ जितने डरावने होते है?" थोड़े और बड़े होने पर उत्सुकता भी बड़ी हो जाती है, "क्या वो मुझे पसंद करती है?" और जब उम्र घेर लेती है, तो उत्सुकता भी रूप बदल लेती है, "मेरे बाद क्या होगा?".. उत्सुकता वह बर्तन है, जिसका मुँहाना संकरा है। हमे पता है, कि फंसने की सम्भावना है, लेकिन फिर भी उस बर्तन के भीतर क्या है, वह हमे देखना होता है। फिर किसी बिल्ली के तरह भले ही वह बर्तन मुँह पर फंस जाए।


    उत्सुकता के वश होकर ही किसी ने समुद्र खंगाले है। तो किसी ने उत्सुकता के ही अधीन होकर टेलिस्कोप बनाया होगा। हर किसी को उत्सुकता है यह जानने की, कि क्या ब्रह्माण्ड में सिर्फ हम ही अकेले है? किसी को उत्सुकता हुई होगी, इस शरीर के भीतर है क्या? किसी को हुई होगी कि 'माधव मुझे कहाँ मिलेगा?' और कोई प्रेमी उत्सुकतावश पूछ भी लेता है, "क्या तुम भी..?"


    शुभरात्रि। 

    (१६/०६/२०२५)

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"क्या आपकी भी कोई 'उत्सुकता' आपको भीतर से खींचती है? कमेंट में बताइए – क्या आप भी कभी बर्तन में फँसी बिल्ली बन चुके हैं?"

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